02 November, 2024 (Saturday)

बैठे-बैठे सो जाना कितना होता है ख़तरनाक, क्या जा सकती है जान?

क्या कभी आप अपने डेस्क पर काम करते-करते वहीं सोए हैं? आपको उस वक्त नींद भले ही अच्छी आई हो, लेकिन क्या उसके बाद पीठ दर्द, गर्दन में अकड़न और कंधों में दर्द जैसी दिक्कतों का सामना किया है? अगर हां, तो यह लंबे समय तक एक ही जगह पर बैठे रहने और न हिलने की वजह से हुआ है। जानवरों की दुनिया में बैठे-बैठे या खड़े-खड़े सो जाना आम बात है, लेकिन इंसानों का शरीर इसके लिए नहीं बना है।

लगातार एक ही जगह पर बैठे रहने से आपके जोड़ों पर बुरा असर डाल सकता है, इससे उनमें अकड़न महसूस हो सकती है। इसकी वजह से डीप-वेन थ्रॉम्बोसिस जैसी गंभीर बीमारी भी हो सकती है। यही वजह है कि आज हम इस लेख में बैठे-बैठे सो जाने से जुड़े ख़तरों के बारे में बात करेंगे।

बैठे-बैठे सो जाना आरामदायक ज़रूर लग सकता है, लेकिन जोड़ों पर डालता है बुरा असर

अक्सर हमें अपनी कुर्सी इतनी आरामदायक लगती है, कि हम काम करते-करते उस पर सो जाते हैं। स्कूल में बच्चे अक्सर ऐसे सो जाते हैं, लेकिन ऐसा लगातार करेंगे तो आपकी सेहत को नुकसान पहुंच सकता है। इस तरह सोने से हमारी पीठ, कमर के साथ शरीर के कई हिस्सों में दर्द शुरू हो सकता है, साथ ही इससे हमारा पॉश्चर भी ख़राब होता है। एक्टिविटी न होने की वजह से जोड़ों में अकड़न हो सकती है और लगातार दर्द रह सकता है।

ऐसा इसलिए होता है क्योंकि लेटकर सोने में हम अपने शरीर को कई तरह से स्ट्रेच कर पाते हैं, जिसकी वजह से ब्लड सर्क्यूलेशन बना रहता है, पॉश्चर ख़राब नहीं होता और जोड़ों में अकड़न भी नहीं आती। वहीं, बैठे हुए सोने पर आपकी पॉज़ीशन एक ही तरह की रहती है, जिससे शरीर में ब्लड सर्क्यूलेशन रुक जाता है।

डीप-वेन थ्रॉम्बोसिस से रहें बच कर

शरीर के कई हिस्सों में दर्द के अलावा, बैठकर सोने से डीप-वेन थ्रॉम्बोसिस जैसी गंभीर बीमारी का ख़तरा भी बढ़ता है। जो तब होता है जब रक्त का थक्का, जिसे थ्रोम्बस के रूप में भी जाना जाता है, आपके शरीर की एक या अधिक गहरी नसों में, विशेष रूप से पैरों में बनता है। यह बिना किसी हलचल के लंबे समय तक एक ही स्थिति में सोने या बैठने के दौरान सोने का नकारात्मक परिणाम हो सकता है।

अगर इसका समय पर इलाज न कराया जाए, तो इसकी वजह से जान को भी ख़तरा पैदा हो सकता है, कई मामलों में इससे मौत तक हो चुकी है। यह जानलेवा तब हो जाता है, जब खून का थक्का टूट कर फेफड़ों या दिमाग़ तक पहुंच जाता है, जिससे ज़्यादा नुकसान पहुंचता है और अचानक मौत हो जाती है। नेशनल ब्लड क्लॉट एलायंस के मुताबिक, ख़ून के थक्के के कारण हर दिन 200 से ज़्यादा लोगों की मौत होती है। व्यक्ति 25 का हो या फिर 85 साल का, ख़ून का थक्का किसी भी उम्र में विकसित हो सकता है।

इन लक्षणों पर दें ध्यान

डीप-वेन थ्रॉम्बोसिस के अहम लक्षण

– टांगों, टखनों या फिर पैर में सूजन और दर्द।

– सूजन की वजह से त्वचा का गर्म और लाल होना।

– अचानक टखने या फिर पैर में दर्द होना

क्या बैठे-बैठे सोने के कोई फायदे भी हो सकते हैं?

अगर आप रेक्लाइनर पर बैठे हैं, तो इस पॉज़ीशन पर सो सकते हैं। हालांकि, इस तरह न ही सोएं तो बेहतर है, जब आप प्रेग्नेंट न हों, क्योंकि प्रेग्नेंसी में महिलाओं के लिए लेटकर सोना कई बार मुश्किल हो जाता है। साथ ही जो लोग स्लीप एपनिया से जूझ रहे हैं, उनके लिए बैठे हुए रेक्लाइनर पर सो जाना फायदेमंद हो सकता है। क्योंकि इस बीमारी में सोते हुए मरीज़ की सांस में बाधा आती है। जो लोग गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल से जुड़ी दिक्कतों से जूझ रहे हैं, अगर वे बैठी हुई पॉज़ीशन पर सोएं तो उन्हें एसिड रीफ्लक्स में आराम मिल सकता है और बेहतर नींद आ सकती है।

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