किसने लिखा संविधान, और किसने किया उसमें बार बार बदलाव?
राहुल गांधी को यह चिंता खाये जा रही है अगर तीसरी बार नरेन्द्र मोदी सत्ता में आ गये तो संविधान बदल देंगे। बदल क्या देंगे, खत्म ही कर देंगे। इसलिए जिस चुनावी सभा में जा रहे हैं, बस यही रट लगा रहे हैं कि बीजेपीवाले तो संविधान का सम्मान नहीं करते। अबकी सत्ता में आये तो बदल ही देंगे।
मीडिया में राहुल गांधी के इन बयानों की चर्चा तो होती है लेकिन क्या उस जनता पर कोई असर होता है जिसके सामने राहुल गांधी संविधान बचाने की दुहाई देते हैं? असल में इसी सवाल से राहुल गांधी की समझ पर सवाल खड़ा होता है। क्या सचमुच भारत के सामान्य जन मानस पर ऐसी बातों का कोई असर होता है जैसा राहुल गांधी प्रचारित करते रहते हैं? या फिर वो जानबूझकर एक ऐसे समूह को भड़का रहे हैं जो यह तो नहीं जानता कि संविधान कैसे खत्म होगा लेकिन यह जरूर जानता है कि इसे उसके बाबा साहब ने लिखा है।
यह बात इसलिए क्योंकि देश में यह भ्रम खूब अच्छे से प्रचारित कर दिया गया है कि डॉ भीमराव अंबेडकर संविधान निर्माता हैं। अंबेडकर के नाम पर एक खास जाति समूह को गोलबंद करने के लिए कुछ नेताओं ने यह भ्रम फैलाना शुरु किया कि डॉ भीमराव अंबेडकर अकेले संविधान निर्माता हैं। इससे उनका वोटबैंक तो गोलबंद हुआ लेकिन यह इतना अधिक प्रचारित हो गया है कि कोई नेता अब इस नैरेटिव के उलट जाकर सच बोलने का साहस ही नहीं रखता।
बहुत महीन विवरण में न भी जाएं तो हर पढा लिखा व्यक्ति यह जानता है कि भारत के संविधान निर्माण का काम संविधान सभा ने किया है। इस संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद थे और इसकी ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन डॉ भीमराव अंबेडकर। निश्चित रूप से भारत के संविधान निर्माण में डॉ अंबेडकर का योगदान है लेकिन उन्हें संविधान निर्माता बताना पूरे लोकतंत्र पर सवाल उठाने जैसा होगा। संसार में कहीं भी कोई भी ऐसा लोकतंत्र नहीं स्थापित हुआ जहां किसी एक व्यक्ति ने संविधान या कांस्टीट्यूशन लिख दिया हो और उसे पूरे देश पर लागू कर दिया गया हो। अगर ऐसा कहीं होगा तो फिर तानाशाही और लोकतंत्र में फर्क क्या रह जाएगा? एक व्यक्ति किसी एक देश का संविधान लिख ही नहीं सकता। संविधान बनाने की एक सामान्य प्रक्रिया यही रही है कि इसके लिए समाज, राजनीति और कानून के जानकार लोगों की कमेटी या सभा बनती है और वो कई कई महीने चर्चा करके किसी देश का संविधान बनाते हैं। हाल फिलहाल में नेपाल में भी यही हुआ है जहां एक समिति ने ही संविधान बनाया और उसे लागू किया है। फिर भी संविधान में इतना लचीलापन छोड़कर रखा जाता है कि भविष्य में आनेवाली पीढियां अपनी जरूरत और समय की मांग के अनुसार उसमें जैसा चाहें वैसा बदलाव कर सकती हैं। यह लचीलापन ही संविधान को समय के साथ चलने लायक बनाता है वरना सदियों पहले लिखी गयीं मजहबी किताबों और किसी लोकतांत्रिक देश के संविधान में फर्क क्या रह जाएगा? अगर किसी संविधान को इस तरह से लिखा जाए कि इसे भविष्य में कभी बदला नहीं जाएगा तो फिर ऐसा संविधान लोकतंत्र को ही खत्म कर देगा। फिर किस बात का संविधान और किसके लिए? इसीलिए 1973 के ऐतिहासिक केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य के केस में सुप्रीम कोर्ट की 13 जजों की सबसे बड़ी संवैधानिक पीठ ने यह फैसला दिया था कि संविधान में संशोधन हो सकते हैं लेकिन उसके मूल ढांचे में परविर्तन नहीं हो सकता। इस पीठ ने यह माना कि संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, बस संविधान के मूल ढांचे में परिवर्तन नहीं किया जा सकता। सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने संविधान को ‘लिविंग डाक्यूमेन्ट’ कहा था जिसमें बदलते समय और जरूरतों के हिसाब से मूल ढांचे में छेड़छाड़ किये बिना बदलाव किये जा सकते हैं। असल में भारतीय संसद ने 1972 में एक संविधान संशोधन करके केरल भूमि सुधार अधनियम 1971 को मान्य कर दिया था। इसके कारण केरल राज्य धार्मिक मठों और एक सीमा से अधिक जमीन रखनेवालों की जमीन उनसे वापस लेकर भूमिहीनों में बांट रही थी। इसमें केशवानंद भारती का इडनीर मठ भी था जिसकी जमीन केरल सरकार ने जब्त कर ली थी। इसी के खिलाफ वो सुप्रीम कोर्ट आये थे और इसी केस में सुप्रीम कोर्ट ने 7:6 के निर्णय से संविधान में संशोधन के संसदीय अधिकार को मान्य किया था। जो लोकसभा चुनाव होते हैं वो संवैधानिक रूप से कानून बनानेवालों को चुनने के ही चुनाव होते हैं। जो जन प्रतिनिधि होते हैं उन्हें संविधान में संशोधन का पूरा संवैधानिक अधिकार प्राप्त होता है। इसीलिए संविधान लागू होने के बाद से संसद 106 बार संविधान में संसोधन कर चुकी है। पहला संसोधन तो 1951 में संविधान को स्वीकार करने के अगले ही साल खुद जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने ही कर दिया था। इसीलिए नितिन गड़करी कह रहे हैं कि अकेले कांग्रेस की सरकारों में ही 80 संवैधानिक संसोधन किये गये। क्या उस समय किसी ने कहा कि कांग्रेस भारत के संविधान को बदलकर देश पर कब्जा कर रही है? 1973 में सुप्रीम कोर्ट ने भले ही यह कह दिया हो कि संविधान के मूल सिद्धांतों और ढांचे में बदलाव नहीं किया जा सकता लेकिन 1976 में इंदिरा गांधी सरकार ने जो 42 संविधान संशोधन किया उसमें न केवल संविधान के मूल ढांचे में बदलाव किया गया बल्कि संविधान की प्रस्तावना तक को बिना संसद की मंजूरी के बदल दिया गया। इसी संविधान संशोधन में संविधान निर्माताओं की नीति से उलट जाकर प्रस्तावना में सेकुलर और सोशलिस्ट शब्द जोड़ा गया जो भारतीय संविधान के इतिहास की सबसे बड़ी छेड़छाड़ है जिसे उसी राहुल गांधी के पूर्वजों ने किया जिसके नाम की वो राजनीति करते हैं। यह संविधान संशोधन इतना व्यापक था कि इसे मिनी कांस्टीटयूशन तक कहा गया। आर्टिकल 51ए में बदलाव करके 10 नागरिक कर्तव्य जोड़े गये तथा नीति निर्देशक सिद्धांतों को मौलिक अधिकारों के ऊपर कर दिया गया। इस संविधान संशोधन में यहां तक संविधान को बदल दिया गया कि नीति निर्देशक सिद्धांतों में होनेवाले बदलाव की सुप्रीम कोर्ट में भी समीक्षा नहीं हो सकती। 42 संवैधानिक संसोधन में ऐसा नहीं है कि जो कुछ बदलाव हुए वो सब बुरी नीयत से हुए। लेकिन कई ऐसी बातें भी जोड़ी गयी जो उस समय की इंदिरा गांधी सरकार की जरूरत थी। मसलन, अब केन्द्र सरकार बिना राज्य सरकार की सहमति के भी राज्यों में अर्धसैनिक बलों की तैनाती कर सकती है। यह संविधान संशोधन इंदिरा गांधी ने क्यों किया होगा इसे आपातकाल को देखनेवाले अच्छे से समझ सकते हैं। इसलिए यह कहना कि संविधान में बदलाव नहीं हो सकता यह अपने आप में लोकतंत्र विरोधी बात है। लेकिन राहुल गांधी अपने कम्युनिस्ट सलाहकारों की राय पर अगर यह बात बार बार बोल रहे हैं तो उनका उद्देश्य संविधान की रक्षा करने से अधिक उस झूठ की खेती करना है जिसमें समाज की एक जाति को यह समझा दिया गया है कि संविधान का निर्माण बाबा साहेब अंबेडकर ने किया था। इसमें बदलाव का अर्थ होगा अंबेडकर द्वारा लिखी गयी बातों में बदलाव। जब राहुल गांधी बार-बार यह बात बोलते हैं तो वो उसी वर्ग की नजर में संविधान रक्षक बनना चाहते हैं। ऐसे झूठ और गैर लोकतांत्रिक बातों से किसी को फायदा हो न हो लोकतंत्र को नुकासन जरूर पहुंचता है। बहरहाल राहुल गांधी के इस झूठे दुष्प्रचार का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने 16 अप्रैल को बिहार में गया की जनसभा में कम से कम अंबेडकर के साथ डॉ राजेन्द्र प्रसाद का नाम तो लिया है। उन्होंने कहा कि यह (संविधान) डॉ राजेन्द्र प्रसाद के नेतृत्व और बाबा साहेब अंबेडकर की देन है। सीमित सच ही सही लेकिन मोदी ने यह कहने का साहस तो किया है कि संविधान निर्माण कैसे हुआ है। उम्मीद करनी चाहिए कम्युनिस्ट विचारकों और राहुल गांधी जैसे प्रचारकों के जरिए बार-बार संविधान में बदलाव का जो झूठ फैलाया जाता है, उस झूठ से पर्दा जरूर हटेगा।