01 November, 2024 (Friday)

एससीओ बैठक में बीआरआई पर चीन को भारत की ना, पाकिस्तान को भी आतंकवाद के मुद्दे पर दी कड़ी नसीहत

चीन के वर्चस्व वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की शीर्ष बैठक में भारत ने सोमवार को फिर साफ कर दिया कि वह चीन की विस्तारवादी नीतियों के समक्ष कोई समझौता करने को तैयार नहीं है। एससीओ के सदस्य देशों के सरकारों के प्रमुखों की इस बैठक में भारत ने चीन की बोर्डर रोड इनिसिएटिव (दुनिया के तमाम देशों को समुद्री, सड़क व रेल मार्ग से जोड़ने की परियोजना) का समर्थन नहीं करेगा। यह भी उल्लेखनीय तथ्य है कि बैठक में एससीओ के रूस, पाकिस्तान समेत अन्य सभी देशों ने चीन की इस नीति के समर्थन का ऐलान किया है। साफ है कि इस क्षेत्रीय संगठन में भारत की भावी भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं। लेकिन भारतीय विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि भारत इस संगठन को लेकर सकारात्मक है और आगे भी रहेगा।

भारत की अध्यक्षता में हुई एससीओ के सदस्य देशों की सरकारों के प्रमुखों की यह पहली बैठक थी। भारत का प्रतिनिधित्व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने किया। इसमें चीन, रूस, कजाखिस्तान, उज्बेकिस्तान, किर्गिजस्तान, ताजिकिस्तान के अलावा ईरान, अफगानिस्तान, मंगोलिया व बेलारूस की सरकारों के बेहद वरिष्ठ प्रतिनिधियो ने हिस्सा लिया। सिर्फ पाकिस्तान ने सचिव स्तर पर प्रतिनिधि भेजा।

आंतकवाद पनपने से चिंतित है भारत: वेंकैया नायडू

नायडू ने अपनी अध्यक्षीय भाषण में पाकिस्तान को नसीसत देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पाकिस्तान का नाम लिये बगैर उन्होंने कहा कि, भारत कई जगहों से आतंकवाद के पनपने से चिंतित है, खास तौर पर कुछ जगहों से आतंकवाद को एक सरकारी नीति के तौर पर बढ़ावा दिया जा रहा है जो ज्यादा चिंता की बात है। इस तरह का रवैया एससीओ के सिद्धांत और विचारों के खिलाफ है।

उन्होंने पाकिस्तान की तरफ से एससीओ जैसे दूसरे बहुराष्ट्रीय संगठनों की बैठक में द्विपक्षीय मुद्दों को उठाने को लेकर भी अपना रोष व्यक्त किया। नायडू ने कहा कि, एससीओ एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन है। यह दुर्भाग्य की बात है कि कुछ सदस्य देश इसमें द्विपक्षीय मुद्दों को उठाने की कोशिश करते हैं। इस तरह का प्रयास एससीओ के मान्य सिद्धांतों के खिलाफ है जो हर सदस्य देश की संप्रभुता व भौगोलिक अखंडता की सुरक्षा का वचन देता है। यह भरोसा व सहयोग को बढ़ावा देने की एससीओ की कोशिशों को उल्टा नुकसान पहुंचा सकता है। बैठक के संपन्न होने के बाद जारी संयुक्त घोषणा पत्र में कहा गया है कि, कजाखिस्तान, कार्गिज रिपब्लिक, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान ने चीन की वन बेल्ट, वन रोड (ओबोर) इनसिएटिव (बीआरआइ) के प्रति अपना समर्थन दिया है।

ओबोर का सबसे पहला विरोध भारत ने 2016 में किया था

इन देशों ने इसके तहत जारी परियोजनाओं पर चर्चा की जिसमें द यूरिसिएशन इकॉनोमिक यूनियन और वन बेल्ट वन रोड भी शामिल है।च्ज् यह भी ध्यान देने वाली बात है कि चीन ने काफी समय के अंतराल पर किसी अंतरराष्ट्रीय मंच पर ‘ओबोर’ का जिक्र किया है। “ओबोर” के विरोध की वजह से चीन की सरकार इस परियोजना को बीआरआइ के नाम से प्रचारित व संचालित कर रही है। हो सकता है कि एससीओ की बैठक में जानबूझ कर ‘ओबोर’ का जिक्र किया गया है। यह भारत को संदेश देने की कोशिश भी हो सकती है। क्योंकि “ओबोर” का सबसे पहला विरोध भारत ने ही वर्ष 2016 में किया था। चीन की तरफ से पाकिस्तान में बनाये जा रहे चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कारिडोर इस ‘ओबोर’ का ही हिस्सा है।

भारत का कहना है कि इसमें जम्मू व कश्मीर के उस हिस्से का इस्तेमाल हो रहा है जिसे पाकिस्तान ने अपने कब्जे में ले रखा है। भारत के विरोध की शुरुआत के बाद अमेरिका, फ्रांस, आस्ट्रेलिया, जापान समेत कई देशों ने चीन की इन परियोजनाओं को लेकर सवाल उठाये हैं जो किसी दूसरे देश की संप्रभुता का आदर नहीं करता।

कई जानकार यह मानते हैं कि भारत के विरोध को देख कर ही बाद में चीन का रवैया ज्यादा आक्रामक हुआ और उसने वर्ष 2017 में डोकलाम संकट पैदा किया और अब (मई, 2020 से) पूर्वी लद्दाख स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को लेकर विवाद खड़ा कर चुका है। दोनो देशों की सेनाएं भयंकर सर्दी में भी आमने सामने तैनात हैं।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *