22 November, 2024 (Friday)

रईसों को कैंसर का खतरा ज्यादा ! गरीबों को इन 5 बीमारियों का हाई रिस्क

अक्सर माना जाता है कि बीमारियां गरीबों को जल्दी घेर लेती हैं, क्योंकि उनके पास सुविधाओं की कमी होती है. हालांकि एक नई रिसर्च में बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है. फिनलैंड में की गई इस रिसर्च के शोधकर्ताओं का दावा है कि अमीर लोगों को कैंसर का खतरा ज्यादा होता है. यह रिसर्च सामने आने के बाद दुनियाभर में इस पर चर्चाओं का दौर शुरू हो गया है. लोग जानना चाहते हैं कि तमाम सुविधाओं के बावजूद अमीरों को इस जानलेवा बीमारी का खतरा ज्यादा क्यों होता है. इस बारे में विस्तार से जान लेते हैं.

न्यूयॉर्क पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक एक हालिया स्टडी में खुलासा हुआ है कि गरीबों की अपेक्षा अमीरों को आनुवांशिक रूप से कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का खतरा ज्यादा होता है. फिनलैंड की यूनिवर्सिटी ऑफ हेलसिंकी के शोधकर्ताओं का कहना है कि अमीरों को ब्रेस्ट, प्रोस्टेट और अन्य तरह के कैंसर का खतरा जेनेटिकली ज्यादा होता है. जबकि मिडिल क्लास और गरीब लोगों को आनुवांशिक रूप से डिप्रेशन, डायबिटीज, आर्थराइटिस, लंग कैंसर और शराब की लत का जोखिम ज्यादा होता है. वैज्ञानिकों ने सोशियो इकोनॉमिक स्टेटस और बीमारियों को लेकर की गई स्टडी के आधार पर यह दावा किया है.

हेलसिंकी यूनिवर्सिटी के इंस्टीट्यूट फॉर मॉलिक्यूलर मेडिसिन के लीड ऑथर डॉ. फियोना हेगनबीक का कहना है कि इस रिसर्च का प्रारंभिक रिजल्ट पॉलीजेनिक रिस्क स्कोर का पता लगाने में मददगार हो सकता है. पॉलीजेनिक रिस्क स्कोर का उपयोग आनुवंशिकी के आधार पर बीमारी के जोखिम को मापने के लिए किया जाता है. इस स्कोर को कुछ बीमारियों के लिए स्क्रीनिंग प्रोटोकॉल में शामिल किया जा रहा है. रिसर्च करने वाले टीम ने इस रिसर्च में 35 से 80 साल के लगभग 280,000 लोगों के जीनोमिक्स, सोशल इकोनॉमिक स्टेटस और हेल्थ डाटा इकट्ठा करने के बाद रिजल्ट जारी किया है.

वैज्ञानिकों ने इस रिसर्च को हाई इनकम वाले देशों में होने वाली 19 कॉमन बीमारियों के लिंक की खोज करने वाला पहला अध्ययन माना गया है. शोध करने वाले एक्सपर्ट्स का मानना है कि किसी बीमारी के इलाज के लिए आनुवांशिक डाटा का एनालिसिस करना बहुत जरूरी हो सकता है. इसके आधार पर कई बीमारियों की स्क्रीनिंग में मदद मिल सकती है और कई जानलेवा बीमारियों से बचाव करने में मदद मिल सकती है. हालांकि इस बारे में ज्यादा रिसर्च की जरूरत है. यह रिसर्च जर्मनी में आयोजित हुई यूरोपियन सोसाइटी ऑफ ह्यून जेनेटिक्स की एनुअल कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत की गई थी.

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