02 November, 2024 (Saturday)

मिशन वैक्सीन, कोरोना संक्रमण से पूरी सुरक्षा तभी मिलेगी जब कोविड रोधी वैक्सीन की दोनों डोज लगी होगी

विश्व स्वास्थ्य संगठन से लेकर बिल गेट्स तक आज अगर भारत को रिकार्ड नौ महीने में 100 करोड़ कोविड रोधी वैक्सीन लगाए जाने के लिए आश्चर्य मिश्रित बधाइयां दे रहे हैं तो यकीनन भारत इसका हकदार है। 16 जनवरी 2021 को जब यह अभियान शुरू हुआ था तो सबको आशंका थी कि क्या भारत इस साल दिसंबर तक यह मिशन पूरा कर लेगा? तमाम विदेशी एक्सपर्ट ही नहीं देशी एक्सपर्ट और साथ ही विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी शक था कि भारत इस मिशन को समय रहते पूरा कर लेगा। लेकिन सचमुच भारत की विशाल श्रमशक्ति ने यह कर दिखाया।

यह सचमुच खुशी से आह्लादित कर देने वाली उपलब्धि है। इतने कम समय में यह उपलब्धि हासिल करके भारत ने सचमुच अजूबा कर दिखाया है। 19 अक्टूबर 2021 तक दुनिया के 212 देशों में जिन लोगों को कोविड रोधी वैक्सीन की कम से कम एक डोज दी जा चुकी थी, ऐसे लोगों की कुल संख्या तीन अरब 78 करोड़ 35 लाख थी। इनमें से चीन के बाद अकेले भारत के 1,00,15,65,895 (पहली और दूसरी डोज सहित) लोग थे। हालांकि चीन का दावा भी संदिग्ध है, क्योंकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है।

भारत ने कोरोना टीकाकरण के मामले में सचमुच दुनिया को हैरान कर दिया है। हालांकि टीकाकरण के मामले में भारत की यह कोई पहली उपलब्धि नहीं है, देश इसके पहले पोलियो उन्मूलन अभियान में भी अपनी यह ताकत दिखा चुका और हर साल सामान्य समय में भी दिखाता है। भारत में हर साल दुनिया का सबसे बड़ा सरकारी टीकाकरण अभियान चलता है, जिसमें करीब 2.7 करोड़ नवजातों को और लगभग 10 करोड़ बच्चों को टीका लगता है। लेकिन व्यावहारिक क्षमता के बावजूद लोगों को यकीन नहीं था कि कोविड रोधी वैक्सीन अभियान इस कामयाबी के साथ निपट जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिल्कुल सही कहा है कि दुनियाभर में लोग भारत की तरह तरह से असफलता की कल्पना कर रहे थे। किसी को लग रहा था भारत सप्लाई चेन नहीं मेंटेन कर पाएगा। किसी को लग रहा था कि इसके लिए जरूरी इन्फ्रास्ट्रक्चर ध्वस्त हो जाएगा, तो किसी का मानना था कि टीका लगवाने का लोग जबरदस्त विरोध करेंगे। लेकिन इनमें से कोई समस्या सामने नहीं आई।

आज भारत की करीब 73 प्रतिशत वयस्क आबादी को कम से कम एक डोज लग चुका है, जबकि 30 फीसद को दोनों डोज मिल चुकी है। यह वास्तव में दुनिया का सबसे बड़ा सार्वभौमिक टीकाकरण अभियान है। देश में इसके लिए 3,48,000 सरकारी, जबकि करीब 28,000 निजी टीकाकरण केंद्र काम कर रहे हैं। यही नहीं, इस पूरे अभियान में 23 लाख आशा कार्यकर्ताओं और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं की भी अथक मेहनत शामिल है। इतने कम समय में अगर यह अभियान पूरा हुआ तो इसमें दो और छिपी हुई बड़ी वजहें हैं। एक वजह है भारत की उन्नत सूचना प्रौद्योगिकी और दक्ष भारतीय युवा तथा कारपोरेट जगत की टीका बनाने की दक्षता।

भारत ने 100 वर्षो की इस सबसे बड़ी और रहस्यमयी बीमारी से निपटने वाले टीकों का सबसे ज्यादा उत्पादन किया है। दुनिया का कोई देश इस मामले में भारत की बराबरी नहीं कर सका है, न चीन और न ही अमेरिका। दुनिया के बाकी देशों की तो कोई तुलना ही नहीं है।

देश में मौजूद एक बेहद मजबूत सप्लाई चेन की भी इस उपलब्धि में बड़ी भूमिका है। भारत के पास इस समय विश्व की तीसरे नंबर की सबसे बड़ी कोल्ड स्टोरेज सप्लाई चेन है। व्यापक रेल नेटवर्क, सड़कों का संजाल और हवाई यातायात ने भी हमारी इस उपलब्धि में भूमिका निभाई है। कुल मिलाकर यह समूचे भारत की उपलब्धि है। लेकिन इस उपलब्धि के आखिर क्या मायने हैं? यह तय है कि करीब 30 करोड़ वयस्कों को पूरी तरह टीका लग चुका है। जबकि 70 करोड़ वयस्कों को पहली डोज मिल चुकी है, मगर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अभी करीब 20 करोड़ ऐसे भारतीय भी हैं, जिन्हें एक टीका भी नहीं लगा। भले इसका कारण वैक्सीन को लेकर हिचक हो या लापरवाही। हमें ध्यान रखना चाहिए ये लोग इस अभियान की कमजोर कड़ी भी साबित हो सकते हैं। उनकी हिचक तोड़ना जरूरी है। इसी तरह खबरें आ रही हैं कि लोग दूसरा डोज नहीं लगवा रहे, इस पर फोकस करने की आवश्यकता है। लोगों को समझाना होगा कि इस बीमारी से पूरी तरह सुरक्षा तभी मिलेगी जब दोनों डोज लगे होंगे।

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस महामारी का वायरस भी लगातार अपना स्वरूप बदल रहा है। उस पर काबू रखने के लिए हमें वैक्सीनेशन का दायरा बढ़ाना होगा। देश में अब तक करीब 68 प्रतिशत लोगों को कोरोना संक्रमण हो चुका है। जिन्हें संक्रमण हो चुका है, उन्हें एक खुराक भी काफी हद तक सुरक्षा देती है। देखा जाय तो हम उस दिशा में जा रहे हैं, जहां ज्यादातर लोगों को एक खुराक से सुरक्षा मिली हुई है। इसके बाद भी लंबे समय तक बचाव के लिए लगभग तीन-चौथाई आबादी को कम से कम एक खुराक और आधी को दोनों खुराक लेनी चाहिए। कहने का मतलब यह कि अभी भी हमें किसी भी कीमत पर लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए।

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