आइएएस संबंधी प्रस्ताव से नौ गैर भाजपा शासित राज्य असहमत, आठ ने जताई सहमति
आइएएस अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर केंद्र के प्रस्ताव के विरोध में अब तक ओडिशा, बंगाल, केरल, तमिलनाडु और झारखंड समेत अब तक नौ गैर- भाजपा शासित खुलकर सामने आ गए हैं। इन राज्यों ने केंद्र के प्रस्ताव को देश के संघीय ढांचे के खिलाफ बताया है। यह जानकारी अधिकारियों ने बुधवार को दी।
दूसरी ओर, केंद्र सरकार ने प्रस्ताव का बचाव करते हुए कहा है कि राज्य प्रतिनियुक्ति के लिए पर्याप्त संख्या में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आइएएस) के अधिकारियों को मुक्त नहीं कर रहे हैं जिससे केंद्र में प्रशासनिक कामकाज प्रभावित हो रहा है।
कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) के सूत्रों ने कहा कि केंद्र में संयुक्त सचिव स्तर तक आइएएस अधिकारियों का प्रतिनिधित्व घट रहा है क्योंकि अधिकतर राज्य केंद्रीय प्रतिनियुक्ति रिजर्व (सीडीआर) के अपने दायित्वों को पूरा नहीं कर रहे हैं और केंद्र में सेवा के लिए उनके द्वारा प्रायोजित अधिकारियों की संख्या बहुत कम है।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को एक कैडर आवंटित किया जाता है जो राज्य या केंद्र शासित प्रदेश होता है। हर कैडर को एक सीडीआर की आवंटित होता है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि अधिकारियों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर काम करने का अवसर मिले। यह व्यवस्था अधिकारियों का अनुभव बढ़ाने के लिए की जाती है।
डीओपीटी ने हाल में आइएएस (कैडर) नियम, 1954 में बदलाव का प्रस्ताव दिया है, जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर अधिकारियों की मांग के लिए केंद्र के अनुरोध को रद करने के लिए राज्यों की शक्ति को छीन लेगा।
विरोध करने वाले राज्यों की सूची में शामिल हुए ओडिशा ने कहा कि यह कदम एक बार लागू होने के बाद राज्यों के प्रशासन को प्रभावित करेगा और विभिन्न विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन पर प्रभाव डालेगा। महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, बंगाल, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान ने भी संशोधनों के खिलाफ आवाज उठाई है।
वहीं दूसरी ओर आठ राज्यों अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश ने केंद्र के इस प्रस्ताव पर अपनी सहमति दे दी है। अधिकारियों ने बताया कि कर्नाटक और मेघालय ने शुरू में पिछले महीने उन्हें भेजे गए प्रस्ताव का विरोध किया था। उनके द्वारा एक संशोधित प्रस्ताव भेजने की उम्मीद है। बिहार ने भी पहले इस कदम का विरोध किया था।
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्रस्तावित संशोधनों को ‘कठोर’ और ‘एकतरफा कार्रवाई को बढ़ावा देने वाला’ बताते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से प्रस्ताव को छोड़ देने के लिए कहा है। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस कदम के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद की। बनर्जी ने मोदी से प्रस्ताव वापस लेने का आग्रह किया क्योंकि यह ‘अधिकारियों के बीच ‘डर की भावना’ पैदा करेगा और उनके प्रदर्शन को प्रभावित करेगा।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन ने भी प्रधानमंत्री से इस कदम को छोड़ने का आग्रह करते हुए कहा है कि यह देश की संघीय नीति और राज्यों की स्वायत्तता की जड़ पर हमला है।
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा है कि प्रस्तावित बदलाव केंद्र और राज्य सरकारों के लिए निर्धारित संवैधानिक अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन करेंगे और अधिकारियों द्वारा बेखौफ तथा ईमानदारी से काम करने की भावना को कम करेंगे।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि प्रस्तावित संशोधन सहयोगात्मक संघवाद की भावना के खिलाफ हैं और यदि इसे लागू किया जाता है तो राज्यों की प्रशासनिक व्यवस्था ‘चरमरा’ सकती है।
महाराष्ट्र कैडर के आइएएस अधिकारी, सूचना एवं प्रसारण सचिव अपूर्व चंद्रा ने शुक्रवार को कहा था कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के साथ काम करने से अधिकारियों का नजरिया व्यापक होता है। अधिकारियों की कमी का हवाला देते हुए डीओपीटी राज्यों को पत्र लिखकर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर अधिकारियों की मांग कर रहा है। डीओपीटी ने पिछले साल जून में सभी राज्य सरकारों को उप सचिव, निदेशक और संयुक्त सचिव के स्तर पर केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए अधिक अधिकारियों को नामित करने को कहा था।
केंद्रीय कर्मचारी योजना (सीएसएस) के तहत आमतौर पर केंद्र सरकार के मंत्रालयों, विभागों (अर्थात केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर) में उप सचिव, निदेशक और उससे ऊपर के स्तर के अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है। डीओपीटी के सूत्रों के अनुसार, सीडीआर पर आइएएस अधिकारियों की संख्या 2011 में 309 से घटकर 223 रह गई है।