वैक्सीन,आक्सीजन,रैली,चुनाव और मौत
वैक्सीन,आक्सीजन,रैली,चुनाव और मौत
प्रेम शर्मा
पहले अचानक वैक्सीन की मारामारी फिर आक्सीजन की कमी, कोविड बेड की कमी के बीच अचानक मृत्युदरों में बढ़ोत्तरी और अत्येष्टि स्थलों और श्मशानों में शव की कतारे और ध्वस्त हो चुकी चिकित्सा व्यवस्था की कहनी अब देश तक सीमित नही रही बल्कि इसकी चर्चा अब सात समुद्र पार होने लगी है। भारत की संक्रमण काल की चर्चा न्यू यार्क टाइम्स, द गर्जियन, द लन्दन टाइम्स, ग्लोबल प्रेस, द टाइम्स और द वाश्ंिागटन की सुर्खिया बन रही है। इस बीच भारत सरकार द्वारा 9000 मैट्रिक आक्सीजन के निर्यात की खबर आक्सीजन के वर्तमान हालत पर नासूर की तरह जनमानस को चुभ रही है। संक्रमण और मौत की यही रफ्तार रही तो दो मई के बाद केन्द्र सरकार वाकई बड़े निर्णय लेगी ? ऐसा इसलिए कि दो मई तक चार राज्यों और उत्तर प्रदेश के पंचायती राज्य चुनाव के परिणाम आ जाएगे। इसके पहले एक संकेत जरूर है कि प्रधानमंत्री ने अचानक कई चुनावी रैलियों को स्थगित कर राज्यों के मुख्यमंत्रत्री से वार्ता कर कई अहम निर्णय लिए और 26 हजार का राहत पैकेज देने के साथ देश के 80 करोड़ लोगों को पिछले लाॅक डाउन की तरह मुफ्त अनाज देने का निर्णय लिया है। पूरे देश में आक्सीजन की कमी हो रही रही मौतों को देखते हुए प्रधानमंत्री ने युद्ध स्तर पर आक्सीजन आपूर्ति के लिए वायुसेना और रेलवे का उपयोग शुरू करने के निर्देश दिए। यह अलग बाॅत है कि लगातार चुनाव रोकने, रैलियों को रोकने, कुम्भ को छोटा करने, यूपी के पंचायत चुनाव रोकने जैसी तमाम मांगों के बीच बढ़े संक्रमण और मौते को लेकर जनता में सरकार के प्रति कुछ निराशाजनक माहौल अवश्य बना, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को लाॅकडाउन के बारे में सोचने को कहा है और आक्सीजन और दवाओं कीइ कमी को संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार अक्सीजन आपूर्ति, जरूरी दवाओं, टीकाकरण के तरीके ओर लाॅकडाउन के अधिकार की कार्ययोजना तलब की है। यानि स्थिति ने न्यायालय भी अंजान नही है। यही नही इलाहाबाद हाईकोर्ट कार्यवाहक मुख्य न्यायमूर्ति संजय यादव एवं न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की खंडपीठ ने कोरोनो संक्रमण की स्थिति के मदेनजरराज्य सरकार, नगर निकाय, स्थानीय निकाय, सरकारी एजेंसी, विभागों आदि के बेदखली, खाली कराने के आदेशों व ध्वस्तीकरण कार्रवाई पर भी 31 मई तक रोक लगा दी है। इसके अलावा सभी बैंकों, वित्तीय संस्थाओं को संपत्ति या व्यक्ति के खिलाफ 31 मई तक उत्पीड़नात्मक कार्रवाई करने से रोक दिया है। जिस समय इस परिपेक्ष्य में लिखा जा रहा है उस समय देश में 3,46,786 नए केस मिलने और 2624 मौतों का आकड़ा,आक्सीजन की मारामारी, आपूर्ति, बेड़ की संख्या में बढ़ोत्तरी, बेड के अभाव जैसी तमाम उपल्बधि और हानि सामने थी। 25 अप्रैल को मन की बाॅत कोरोना पर आधारित रही, स्वंय प्रधानमंत्री मान रहे है कि देश को दूसरी लहर ने झकझोर दिया है। इस दौरान उन्होंने देश के वरिष्ठ चिकित्सकों,फ्रंट लाइन वर्कर और पीड़ितों से कोविड 19 पर चर्चा कर लोगों के दिल से डर निकालने का प्रयास किया।
सबसे पहले हम बाॅत कर ले आक्सीजन की कमी तो यह वाकई दर्दनाक है। यह सबक है कि हम अपनी स्वास्थ्य व्यवस्था को इस तरह दुरुस्त करने में लग जाएं कि फिर कभी ऐसी महामारी आए भी, तो हमें परेशान न करे। देश के नामी गंगाराम अस्पताल में अगर 24 घंटे में 25 मरीजों की मौत के बाद दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल में आक्सीजन की कमी से 20 हुई , तो देश के दूसरे अस्पतालों में क्या हो रहा होगा ? आखिर इस दर्दनाक स्थिति पर दिल्ली हाईकोर्ट को यहाॅ तक कहना पड़ा कि आक्सीजन की सप्लाई रोकने वालों को फाॅसी पर चढ़ा देगें। इसके पहले दिल्ली हाईकोर्ट तो आक्सीजन की कमी को लेकर इतना नाराज नजर आया कि उसने आदेश में कहा कि अगर आक्सीजन की कमी से कोई मरा तो यह अपराध माना जाएगा। प्रधानमंत्री की उस बैठक के बाद (जिसमें एक मुख्यमंत्री की खासी चर्चा रही) राज्यों एवं केन्द्र के जिम्मेदारों में कुछ हलचल तो दिखी लेकिन जरूरत के हिसाब से आवश्यकताए पूरी नही हो पा रही। भारत कोरोना ही नहीं, अभावों का भी एक बड़ा केंद्र नजर आ रहा है। सरकारी सिस्टम किस तरह फेल हो चुका है यह बाॅत अब सत्तारूढ़ केन्द्र और राज्य सरकार के प्रतिनिधि भी उठा रहे है। कभी कोई मंत्री,सांसद तो कभी को विधायक सवाल खड़े कर रहे है। अब बाॅत वैक्सीन को लेकर कर ले अभी महीने भर पहले ही हम दवाओं और टीके का अंतरराष्ट्रीय वितरण कर वाहवाही बटोर रहे थे। अब समय आ गया है कि हम अपनी मांग पहले पूरी करें। क्ैक्सीन की कालाबाजारी और कमी से जनता परेशान है। सब जानते है कि जब अमेरिका या यूरोपीय देशों में कोरोना की लहर चरम पर थी, तब वहां भी चिकित्सा सेवाओं का ऐसा ही हाल था। पर उन देशों ने युद्ध स्तर पर इंतजाम किए। लेकिन यहाॅ यह प्रश्न उठता है कि जब इस बाॅत का पूरा अन्दाजा था कि दूसरी लहर आएगी तो भारत में चुनाव, कुम्भ और अन्य गतिविधियों की तैयारी तरह संसाधन जुटाने कोविड बेड़, आक्सीजन, पर्याप्त मात्रा में वैक्सीन का स्टाक क्यो नही किया गया। लोगों को याद होगा जब वैक्सीन के लिए डोनाल्ड ट्रंप भारत पर लगभग भड़क उठे थे। भारतीय इस पर भड़के भी थे लेकिन एक राष्ट्राध्यक्ष का अपनी जनता की रक्षा के लिए भड़कना उनकी नैतिकता थी। ऐसे मंे इन तथ्यों पर सरकार, विपक्ष और जनता को विचार करना होगा कि एक तरफ, जब देश में कोविड-19 के कारण रोजाना 1,500 से अधिक लोगों की जान जाने लगी है। कई राज्यों से टीके के अभाव की शिकायतें सुनने को मिल रही है उस देश में 11 अप्रैल तक देश में टीके की 44.5 लाख से अधिक खुराकें बरबादी का खुलासा एक आरटीआई के जरिए होना व्यवस्था पर प्रश्न चिन्ह है। हैरत की बात है कि ऐसा उन राज्यों में सर्वाधिक हुआ, जो इस वक्त महामारी से पस्त नजर आ रहे हैं। राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, बिहार, हरियाणा जैसे प्रदेशों के नाम इस सूची में ऊपर हैं। यह सूचना हमारी विशाल आबादी के लिहाज से भी काफी चिंताजनक है। यह समय सख्ती का है और अगर सरकार के प्रति देश की सर्वोच्च न्यायालय ने सख्त रुख अपनाया तो क्या गलत किया। कोरोना के बढ़ते मामले और उसके साथ ही, इलाज, दवाओं और ऑक्सीजन के बढ़ते अभाव से निपटने के लिए सिवाय सख्त रुख अपनाने के कोई उपाय नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने स्वंय संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके पूछा है कि कोरोना महामारी से निपटने के लिए सरकार के पास क्या योजना है ? इस सख्ती के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में ऑक्सीजन की उपलब्धता और इसकी आपूर्ति को लेकर 22 अप्रैल 2021 को उचित ही एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की है। केन्द्र ने जो निर्णय लिया है उनके अमलीजामा पहनाने के लिए केन्द्र के मंत्रियों, सांसदों, राज्य के मंत्रियों और सांसदों को घर से निकलकर अपने क्षेत्र में निकलना होगा और उच्च अधिकारियों को भी अब जमीनी हकीकत नजर आनी चाहिए। मंत्रियों, अफसरो, सांसद, विधायकों और विरोधी दलों के नेताओं को अब बंद कमरों में बैठकर संवाद करने या भाषण देने का कोई मतलब नहीं है। जिम्मेदार अगर प्रतिदिन किन्हीं दो-तीन अस्पतालों का भी मुआयना अगर ढंग से कर लिया जाए, तो वस्तुस्थिति सामने आ जाएगी। बडे नेताओं को भाषणबाजी और दोषारोपण को छोड़कर सीधे जुड़कर काम करना होगा। केवल कागजों पर इंतजाम कर देना किसी अपराध से कम नहीं है। आदेशों-निर्देशों को जमीन पर उतारना होगा।