DU Admission 2020: पढ़ने का सपना संजोए देश-विदेश से छात्र दिल्ली का करते हैं रुख



बारहवीं में अच्छे अंक प्राप्त कर अभी खुशी-खुशी दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला हो जाने का सपना ही देख ही रहे थे कि इस बार कटआफ और ऊंची चढ़ाई चढ़ सपनों के ऊपर काली घटा बनकर बैठ गया। कुछ कालेज में चुनिंदा विषयों पर मामला 100 फीसद से नीचे ही नहीं उतर पाया। प्रतियोगिता बढ़ी तो प्रतिद्वंद्वी भी बढ़े, भला बारहवीं में 100 फीसद अंक हासिल करने वालों का पैमाना बढ़ता देख कटआफ नीचे भी कैसे रह जाता? अब सवाल यह है कि अंकों की इस प्रतिस्पर्धा में मेधावी होने की परिभाषा क्या रह गई? दिल्ली विवि के टाप कालेज के कपाट तो 100 फीसद पर ही बंद हो रहे हैं। हर साल प्रतिस्पर्धा का स्तर आसमान छू रहा है।
इस साल भी देखिए, सीटें महज 70 हजार और आवेदक साढ़े तीन लाख। इसी से प्रति सीट आवेदकों का अंदाजा लगा लीजिए। भला किसके हाथ क्या लगेगा। एक और खास बात है बढ़ते आवेदक इस बात के भी गवाह हैं कि दिल्ली विवि के प्रति उनका आकर्षण बढ़ा है, वहां तक जाने की बाधाएं तो दूर हुई हैं लेकिन अंक अनुपात के खेल में लाखों छात्र वंचित ही रह जाते हैं। निश्चित ही सभी को दाखिला देना जिम्मेदारी भी नहीं, लेकिन क्या डीयू को तकरीबन 80 कालेज के अपने दायरे को विस्तार नहीं देना चाहिए? क्योंकि डीयू प्रशासन ही तो दाखिला न होने के पीछे कालेजों की कमी का भी हवाला देता है। नए कालेज खोलने की क्या है कानूनी प्रक्रिया? क्यों आखिर कालेज विस्तार करने को राजनीतिक दृष्टि से देखा जाता है? इसी की पड़ताल करना हमारा आज का मुद्दा है :
दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने का सपना संजोए देश-विदेश से छात्र दिल्ली का रुख करते हैं। इस उम्मीद के साथ विवि में आवेदन करते हैं कि कटआफ में उनका नाम आ जाए तो उन्हें सेंट्रल यूनिवर्सिटी में पढ़ने और का सौभाग्य प्राप्त होगा। लेकिन यहां 100 फीसद कटआफ और एक-एक सीट पर छात्रों के बीच प्रतिस्पर्धा देख उनके सपने चकनाचूर हो जाते हैं। समस्या यह है कि साल दर साल डीयू में प्रतिस्पर्धा बढ़ती ही जा रही है। इस बार भी स्नातक पाठ्यक्रमों की 70 हजार सीटों पर दाखिले हो रहे हैं, जबकि डीयू के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि तीन विषयों की कटआफ लिस्ट 100 फीसद जारी हुई। अधिकतर कालेजों में पहली कटआफ लिस्ट 99 फीसद से शुरू हुई। हैरानी की बात यह है कि ऊंची कटआफ लिस्ट के बावजूद अधिकतर कालेजों में कामर्स, इतिहास, मनोविज्ञान, अंग्रेजी, रसायन और भौतिक विज्ञान की सीटें भर चुकी हैं। डीयू ने पिछले साल के मुकाबले स साल आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए चार हजार सीटें बढ़ाई भी हैं, लेकिन कालेजों में आधारभूत संरचना पुरानी ही है।
हमें छात्रों की मनोदशा समझने की जरूरत है। एक-एक सीट पर दाखिले के लिए संघर्ष है। बड़ी संख्या में छात्रों को दाखिला नहीं मिल पाता। दिल्ली की लड़कियों को दाखिला दिलवाने के लिए नान कालेजिएट वीमेन एजुकेशन बोर्ड गठित करना पड़ा। इसमें डीयू की नियमित पढ़ाई से वंचित छात्रओं को दाखिला दिया जाता है। इस समय करीब 15 हजार छात्रएं इसमें पढ़ रही हैं। इसी तरह स्कूल आफ ओपन लर्निग में बड़ी संख्या में दिल्ली के छात्र दाखिला लेते हैं। कभी एसओएल में 50 हजार सीटें थीं, लेकिन अब डेढ़ से दो लाख छात्र पढ़ते हैं। इन सबके पीछे एक बड़ी वजह है विगत 30 सालों में नए कालेज नहीं खुलना। दिल्ली विवि द्वारा खोले गए आखिरी कालेजों में केशव महाविद्यालय, भगिनी निवेदिता और अदिति महाविद्यालय सरीखे नाम हैं, जबकि इन सालों में छात्रों की संख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है।
कानून में संशोधन की जरूरत : दिल्ली विश्वविद्यालय अपने कालेज खुद खोलता है और सरकार अनुदान देती है। दिल्ली सरकार तो नए कालेज खोलना चाहती है, लेकिन इसके लिए डीयू एक्ट की धारा 5 का उपबंध 2 आड़े आ रहा है। ब्रितानिया हुकूमत के दौरान बनी डीयू अधिनियम की धारा 5 (2) के तहत शहर में स्थापित नए कालेजों को दिल्ली विवि से संबद्ध करना होगा। लेकिन अंग्रेजों के बनाए इस कानून में अब संशोधन की जरूरत है। कानून के मुताबिक अगर डीयू से संबंद्ध कालेज खोलना है तो पहले केंद्र से इजाजत लेनी पड़ेगी। हालांकि बवाना, अलीपुर, शाहदरा, साकेत समेत कई अन्य जगहों पर कालेज खोलने के लिए पर्याप्त जमीन है। यदि डीयू अपने कानून में संशोधन करे तो कालेज खोले जा सकते हैं। यह समय की मांग है कि नए कालेज खोले जाएं, क्योंकि साल दर साल छात्रों की संख्या बढ़ रही है। दिल्ली में ही हर साल ढाई लाख छात्र 12वीं पास करते हैं, लेकिन सिर्फ 1.25 लाख छात्रों को ही शहर के कालेजों में प्रवेश मिल पाता है।
स्थाई समाधान की दरकार : दिल्ली विवि में इस समय 28 कालेज पूरी तरह दिल्ली सरकार द्वारा वित्त पोषित हैं। सरकार और कालेज खोलना चाहती है, लेकिन प्रक्रिया बहुत जटिल है। ऐसे में छात्रों के हितों को ध्यान में रखकर दिल्ली सरकार, डीयू के उच्च पदस्थ अधिकारियों एवं केंद्र सरकार को मिलकर पहल करने की जरूरत है। किसी किसी विषय में तो सीट से ज्यादा बच्चों का दाखिला हो जाता है। ऐसे में पढ़ाई भी प्रभावित होती है। कुछ कालेज एक विषय में अधिक दाखिला होने पर छात्रों को दो समूहों में बांटकर पढ़ा रहे हैं, लेकिन यह स्थाई समाधान नहीं है। स्थाई समाधान पर ध्यान देने की जरूरत है। छात्रों का भविष्य बेहतर बन सके, उन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले इसके लिए नए कालेज खोलना बेहद जरूरी है।