Diabetes & Fertility: जानें कैसे प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है डायबिटीज़!
Diabetes Affects Fertility: मानव शरीर एक जटिल मशीन है और इसकी किसी भी क्रिया में गड़बड़ी होने पर कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं। डायबिटीज से प्रभावित लोगों को पहले यह परामर्श दिया जाता है कि वो अपने शुगर लेवल को नियंत्रित रखें और इससे संबंधित जटिलताओं के बारे में अच्छी तरह से जानकारी रखें। लेकिन डायबिटीज से प्रभावित ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें यह पता नहीं है कि यह बीमारी प्रजनन क्षमता यानी फर्टिलिटी को भी प्रभावित कर सकती है।
डायबिटीज और पुरुषों की प्रजनन क्षमता
डायबिटीज के चलते, पुरुषों का हॉर्मोन स्तर प्रभावित होता है, शुक्राणु की गुणवत्ता घट जाती है और प्रजनन में समस्या होती है। टाइप-1 और टाइप-2 डायबिटीज़ दोनों ही स्थितियों में वीर्यकोष का कार्य और शुक्राणु का विकास (स्पर्मेटोजेनेसिस) प्रभावित होता है। स्पर्म डीएनए फ्रैगमेंटेशन ऐसी स्थिति है, जिसमें शुक्राणु की आनुवांशिक संरचना प्रभावित होती है। इस समस्या से जुड़े मामले बहुत अधिक देखने को मिल रहे हैं।
टाइप-1 डायबिटीज़ से प्रभावित पुरुष के शुक्राणु उतने गतिशील नहीं होते हैं। यह स्थिति समय के साथ बिगड़ती चली जाती है। शुक्राणु की संख्या में कमी भी आ सकती है। पुरुषों में टेस्टोस्टेलरॉन नामक हार्मोन प्रमुख रूप से पाया जाता है। अगर यह पुरुषों में सामान्य से कम हो जाए, तो मोटापा पैदा करने वाली वसा अधिक जमा हो जाती है। इसके चलते इंसुलिन की प्रतिरोधकता बढ़ जाती है, जिससे टाइप-2 डायबिटीज़ होती है। यही नहीं, टेस्टोनस्टेतरॉन का कंसेंट्रेशन कम होने के चलते शुक्राणु की संख्या और कामेच्छा घट जाती है।
लंबे समय से डायबिटीज़ से प्रभावित व्यक्ति को तंत्रिकाओं की जटिलता (न्यूयरोपैथी) और ब्लड सर्कुलेशन से जुड़ी समस्याएं हो सकती हैं। इससे इरेक्टाइल डिसफंक्शन की समस्याल पैदा हो सकती है, स्खलन से जुड़ी समस्याएं जैसे कि स्खलन में विलंब या क्षीण स्खलन का अनुभव होता है। तंत्रिका समस्या के चलते रेट्रोग्रेड इजेक्यूलेशन भी हो सकता है। इससे गर्भधारण की प्रक्रिया में दिक्कित होती है, क्योंकि स्पर्म, मूत्रमार्ग से निकलने के बजाए मूत्राशय में चला जाता है।
डायबिटीज़ और महिलाओं की जनन क्षमता
डायबिटीज़ का असर महिलाओं के प्रजनन तंत्र पर पड़ता है। यह पाया गया है कि टाइप-1 डायबिटीज से प्रभावित महिलाओं की प्रजनन प्रवृत्तियां, सामान्य महिलाओं से अलग होती है। इससे महिलाओं में मेनार्श (रजोदर्शन), अर्थात यौवनावस्था के आरंभ में देरी होती है और मेनोपॉज़ (रजोनिवृत्ति), अर्थात मासिक धर्म की समाप्ति शीघ्र हो जाती है। इससे महिलाओं की प्रजनन अवधि 17% घट जाती है। इससे गर्भधारण की संभावना घट सकती है, और गर्भपात और स्टिलबर्थ (मृत प्रसव) की संभावना बढ़ सकती है। टाइप-1 डायबिटीज़ को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन लेने वाली महिलाओं को डॉक्टर्स का परामर्श मानना चाहिए।
टाइप-2 डायबिटीज में, इंसुलिन रेजिस्टेंस (प्रतिरोधकता) देखने को मिलती है। शोध से पता चलता है कि इंसुलिन रेजिस्टेंस (प्रतिरोधकता) के चलते महिलाओं में पुरुष एंड्रोजेन्सी का स्राव (हाइपरएंड्रोजेनिज्मश) बढ़ जाता है, जिससे उन हॉर्मोन्स का असंतुलन हो जाता है, जो सही प्रजनन क्रिया के लिए आवश्यक होते हैं।
5-13% महिलाएं अपनी प्रजनन आयु में ही पीसीओएस से प्रभावित हो जाती है। इंसुलिन रेजिस्टेंस और टेस्टोशस्टेंरोन के उच्च स्तर के बीच निकट संबंध है। अधिकांश महिलाओं में यह इंफर्टिलिटी का एक कारण है।
टाइप-1 और टाइप-2 दोनों ही तरह के डायबिटीज के चलते मासिक-धर्म अनियमित हो जाता है या होता ही नहीं है। जिससे सफलतापूर्वक गर्भधारण करने की महिलाओं की क्षमता प्रभावित होती है। इन समस्याओं का निकट संबंध मोटापा से भी है। इंटरनेशनल डायबिटीज फेडरेशन के अनुमान के अनुसार, भारत के 77 मिलियन लोगों को डायबिटीज है और देश के लगभग 27.5 मिलियन कपल्स संतान चाहते हैं, लेकिन इनफर्टाइल होने के चलते, वे संतान प्राप्ति में सक्षम नहीं हैं। हो सकता है कि इन आंकड़ों से स्थिति के बारे में पूरा-पूरा पता न चले। फैमिली प्लानिंग कर रहे कपल्स अच्छी तरह से जांच करा लें, ताकि उसके निहित कारणों का ठीक से पता चल सके। जो कपल्स संतान चाहते हैं, उनका पहले खुद स्वस्थ होना ज़रूरी है, ताकि वे अपने बच्चों के लिए सुरक्षित भविष्य तय कर सकें।