National Pollution Prevention Day 2020: IQAir की 2019 रिपोर्ट के अनुसार भारत है 5वां सबसे प्रदूषित देश
वायु प्रदूषण का प्रभाव मानव शरीर पर लगातार घातक होता जा रहा है। साल 1990 तक जहां 60 फीसदी बीमारियों की हिस्सेदारी संक्रामक रोग, मातृ और नवजात रोग या पोषण की कमी से होने वाले रोगों की होती थी, वहीं अब हृदय तथा सांस की गंभीर बीमारियों के अलावा भी बहुत सी बीमारियां एयर पॉल्यूशन के कारण ही पनपती हैं। सिर के बालों से लेकर पैरों के नाखून तक अब वायु प्रदूषण की जद में होते हैं। भारत में वायु प्रदूषण की स्थिति लगातार भयावह हो रही है।
भारत है दुनिया का 5वां सबसे प्रदूषित देश
स्विट्जरलैंड के IQAir द्वारा जारी की गई 2019 की विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट में भारत को पिछले साल अपनी हवा में PM2. 5 (पार्टिकुलेट मैटर) की मात्रा के आधार पर दुनिया के 5वें सबसे प्रदूषित देश के रूप में शामिल किया गया है। जबकि बांग्लादेश (83.3 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) के साथ नंबर वन पर था।
वायु प्रदूषण पर शिकागो यूनिवर्सिटी की रिसर्च
अमेरिका की शिकागो यूनिवर्सिटी के द एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट ने एक रिसर्च के बाद खुलासा किया है कि वायु प्रदूषण के ही कारण भारत में लोगों की औसत आयु कम हो रही है, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के अनुसार 5.2 वर्ष और राष्ट्रीय मानकों के अनुसार 2.3 साल कम हो रही है। बांग्लादेश के बाद भारत दुनिया में दूसरा ऐसा देश है, जहां लोगों की उम्र तेजी से घट रही है। एक अध्ययन के अनुसार भारत की कुल 1.4 अरब आबादी का बड़ा हिस्सा ऐसी जगहों पर रहता है, जहां पार्टिकुलेट प्रदूषण का औसत स्तर WHO के मानकों से ज्यादा है। 84 फीसदी व्यक्ति ऐसी जगहों पर रहते हैं, जहां प्रदूषण का स्तर भारत द्वारा तय मानकों से ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की एक चौथाई आबादी बेहद प्रदूषित वायु में जीने को मजबूर है।
वायु प्रदूषण से बढ़ रही हैं सांस संबंधी बीमारियां
नेशनल हेल्थ प्रोफाइल 2018 की रिपोर्ट के अनुसार देश में होने वाली संक्रामक बीमारियों में सांस संबंधी बीमारियों का प्रतिशत करीब 69 फीसदी है और देशभर में 23 फीसदी से भी ज्यादा मौतें अब वायु प्रदूषण के कारण ही होती हैं। विभिन्न रिपोर्ट्स में यह तथ्य भी सामने आया है कि भारत। में लोगों पर पीएम 2.5 का औसत प्रकोप 90 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है। पिछले दो दशकों में देशभर में वायु में प्रदूषक कणों की मात्रा में करीब 69 फीसदी तक की वृद्धि हुई है और जीवन प्रत्याशा सूचकांक, जो 1998 में 2.2 वर्ष कम था, उसके मुकाबले अब शिकागो यूनिवर्सिटी के अध्ययन के अनुसार 5.2 वर्ष तक कमी आई है। शोधकर्ता कहते हैं कि एयर क्वालिटी में सुधार लाकर इस स्थिति को सुधारा जा सकता है।