नामुमकिन नहीं वर्टिगो से छुटकारा पाना, बस इन बातों का रखें खास ध्यान
र्टिगो एक बैलेंस डिसऑर्डर है, जो ज्यादातर अंदरूनी कान की प्रॉब्लम की वजह से पैदा होती है। यह शरीर के वेस्टिवुलर सिस्टम में बाधा पैदा करता है, जिसका काम होता है, बैलेंस बनाए रखना। जिसके चलते व्यक्ति को चक्कर आने लगते हैं। यह चक्कर एकदम से आ जाता है। जिसकी वजह से फ्रैक्चर होने की पूरी-पूरी संभावना रहती है। पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में वर्टिगो का खतरा दो से तीन गुना ज्यादा होती है।
ऐसे कर सकता है वर्टिगो प्रभावित
वर्टिगो के मरीजों के लिए चलना-फिरना, शॉपिंग, बाहर के काम ही नहीं यहां तक कि रोजमर्रा के काम करना भी मुश्किल हो जाता है। इससे परेशान मरीज दूसरों से मिलने-जुलने में कतराते हैं, घर के अंदर ही रहना पसंद करते हैं जिसकी वजह से वो कई सारी चीज़ों के लिए दूसरों पर डिपेंड हो जाते हैं। जो तनाव और डिप्रेशन की वजह बनने लगती है। महिलाओं के लिए तो यह और भी ज्यादा खतरनाक होता है क्योंकि स्ट्रेस हॉर्मोन- कोर्टिसोल के बढ़ने से वर्टिगो एकदम से ट्रिगर हो जाता है। कई बार तो इसकी वजह से लोगोंं को नौकरी छोड़ने तक की नौबत आ जाती है।
डॉ. जेजॉय करण कुमार, मेडिकल डायरेक्टर, एबॅट इंडिया का कहना है, “वैसे, वर्टिगो कमजोर कर देने वाली समस्या है, जो किसी की जिंदगी को काफी प्रभावित कर सकती है, लेकिन सही देखभाल से इसका प्रबंधन किया जा सकता है। एबॅट में हम वर्टिगो को लेकर जागरूकता फैलाने और भरोसेमंद समाधान देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। इसलिए, हम पढ़ने योग्य सामग्री उपलब्ध करा रहे हैं, जिसमें वेस्टिवुलर एक्सरसाइज के वीडियो ट्यूटोरियल शामिल हैं, जिससे रोगी आत्मविश्वास के साथ आगे कदम बढ़ पाएं। वे अपना संतुलन दोबारा हासिल कर पाएं और जिंदगी को खुलकर, सेहतमंद तरीके से जी पाएं।”
जिस तरह इस समस्या से इतने ज्यादा लोग प्रभावित है उस तरह से इसे लेकर लोग जागरूक नहीं हैं। लोग चक्कर आने की समस्या को नॉर्मल समझकर नजरअंदाज कर देते हैं, जिसकी वजह से सही समय पर इसकी पहचान नहीं हो पाती और न ही इलाज हो पाता है। इतना ही नहीं, वर्टिगो की पहचान कर पाना मुश्किल होता है, क्योंकि मितली और उल्टी जैसे लक्षणों को लोग नॉर्मली लेते हैं। लेकिन सुकून वाली बात ये है कि वर्टिगो को फिजिकल थैरेपी, डाइट में जरूर बदलावों और लाइफस्टाइल में सुधार, दवाओं, फिजियोथैरेपी या कुछ मामलों में सर्जरी से भी इसे ठीक किया जा सकता है। इसमें वेस्टिवुलर रिहैबिलिएशन एक्सरसाइज शामिल है, जिसे डॉक्टर की सलाह पर किया जा सकता है।
डॉ शमशेर द्विवेदी, वरिष्ठ सलाहकार न्यूरोलॉजिस्ट, मूलचंद अस्पताल, नई दिल्ली का कहना है, “वर्टिगो को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है, ताकि लोग जल्द से जल्द मदद ले पाएं। यह खासकर काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह अन्य बीमारियों के भी लक्षण हो सकते हैं, रोजमर्रा की जिंदगी प्रभावित हो सकती है और गंभीर परिणाम हो सकते हैं और फ्रैक्चर या गिरने जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। एक्सरसाइज-आधारित और चिकित्सकीय उपचार करवाने से, उनकी जीवनशैली को बेहतर बनाने में मदद मिल सकती है।”
लाइफस्टाइल में बदलाव से इस समस्या पर काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है। लेकिन अगर आप डॉक्टर द्वारा बताए गए उपचार को फॉलो नहीं करते तो ये समस्या लंबे समय तक बनी रह सकती है। अटैक की फ्रीक्वेंसी कम करने के लिए समय पर दवाएं लेना और डॉक्टर की सलाह मानना भी बहुत जरूरी है।
इसके अलावा इन चीज़ों पर भी दें ध्यान:-
– तनाव कम लें।
– पर्याप्त नींद लें।
– हेल्दी डाइट लें।
– योग व मेडिटेशन लें।
– डाइट में नमक व चीनी की मात्रा कम कर दें।
– एल्कोहल का सेवन भी अवॉयड करें।