कोरोना महामारी के खिलाफ सरकार की लड़ाई का मुश्किल लक्ष्य हुआ आसान
धुन..दृढ़ इच्छाशक्ति..रणनीति..लगन..राष्ट्रभक्ति, जो भी आप कहना चाहे, शब्दों का चयन कर सकते हैं, लेकिन ये सारे भाव कोरोना महामारी के खिलाफ सरकार की लड़ाई को सार्थक करते हैं। महामारी से सुरक्षा कवच देने की बात आते ही भारत की विशाल आबादी और संसाधनों के अभाव पर गाड़ी रुक जाती थी। लेकिन देश ने न सिर्फ कई विकसित मुल्कों की तरह सबसे पहले स्वदेशी टीका विकसित कर लिया, टीकाकरण में भी उसने तमाम देशों के कान काट दिए।
अमेरिका सहित कई देशों में लोग टीके लगवा नहीं रहे हैं। अब उनकी छोटी आबादी ही उनके लिए संकट बन चुकी है। अगर क्रमबद्ध, सुव्यवस्थित और सुसंगठित ज्ञान को विज्ञान कहते हैं तो भारत सरकार ने टीकाकरण के राह की चुनौतियों को बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से निपटाया। टीके का विकास, आपूर्ति, कीमतों, लोगों को जागरूक करने में उसने यही रणनीति अपनाई। पेश है एक नजर:
शुरुआत और लक्ष्य : भारत में पहला टीका 16 जनवरी 2021 को लगाया गया। कीमत, आपूर्ति आदि को लेकर तमाम चुनौतियां आईं। केंद्रीयकृत व्यवस्था तय की गई। लक्ष्य रखा गया कि देश की कुल वयस्क आबादी को इस साल के दिसंबर तक टीके से सुरक्षित कर दिया जाएगा। देश में इस आयुवर्ग की कुल संख्या 94 करोड़ है।
समय से पहले : आइसीएमआर का हालिया शोध बताता है कि अगर किसी व्यक्ति को एक भी टीका लगा है तो उसकी कोरोना से मौत की आशंका 97 फीसद कम हो जाती है। देश में अब तक 38.24 करोड़ लोगों को केवल पहली और 17.39 करोड़ को पहली व दूसरी दोनों डोज लग चुकी है।
अगर मान लिया जाए कि औसतन हर दिन देश में साठ लाख टीके लगाए जा रहे हैं तो दिसंबर तक हमारे पास करीब 110 दिन हैं। इतने दिन में हम 66 करोड़ टीके लगाने में सक्षम होंगे। यानी शेष बचे एक डोज वाले करीब 38 करोड़ के अलावा 28 करोड़ को और सुरक्षित कर सकेंगे। ये 28 करोड़ की संख्या दूसरी डोज लेने वालों के हिस्से में आएगी तो उनकी मौजूदा संख्या 17.39 करोड़ से बढ़कर 45 करोड़ को पार कर जाएगी। इस तरह हम दिसंबर तक अपनी सभी वयस्क आबादी को पहली डोज तो पूरी तरह लगा देंगे और 45 करोड़ लोग दूसरी डोज का भी सुरक्षा कवच हासिल कर सकेंगे।