मनमोहन मुस्लिम हितैषी तो क्या मोदी मुस्लिम विरोधी हैं?
घूम फिरकर आम चुनाव फिर वहीं आ गया जहां से 2014 में चला था। 2014 में मोदी की प्रचंड जीत के पीछे कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति बताई गयी थी। अब दस साल बाद मोदी याद दिला रहे हैं कि कैसे कांग्रेस ने मुस्लिम हित को सर्वोपरि कर दिया था।
इसके लिए उन्होंने राजस्थान की एक जनसभा में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का एक भाषण याद दिलाया है जो लगभग भूला बिसरा सा भाषण है। 9 दिसंबर 2006 को दिल्ली के विज्ञान भवन में राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में बोलते हुए मनमोहन सिंह ने कहा था कि “विकास का लाभ हर वर्ग तक सही तरीके से पहुंचे इसके लिए मॉइनॉरिटी खासकर मुस्लिम मॉइनरिटी की चिंता किये जाने की जरुरत है। हमारे संसाधनों पर सबसे पहला अधिकार उनका ही होना चाहिए।”
इस भाषण का प्रचार 2009 के चुनाव में नहीं हुआ कि कांग्रेस देश के संसाधनों पर मुसलमानों का पहला हक जताने की बात कह रही है। उस समय आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा चुनाव लड़ रही थी और इस बात को कहीं भी मुद्दा नहीं बनाया गया। मनमोहन सिंह के भाषण के बाद पहली बार इसकी चर्चा 2014 में हुई। उस समय स्वयं मोदी ने तो नहीं लेकिन उनकी पार्टी के नेताओं और प्रवक्ताओं ने अलग अलग मंचों से यह बात उठाई थी।
आज फिर दस साल बाद 2024 में स्वयं नरेन्द्र मोदी ने मनमोहन सिंह का वह पुराना भाषण लोगों को याद दिलाया है। मोदी ने जिस संदर्भ में यह बात उठायी है वह कांग्रेस का चुनावी घोषणापत्र है जिसमें बतौर मोदी कहा गया है कि संसाधनों का बंटवारा उनके साथ किया जाएगा जिनके अधिक बच्चे होंगे। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनौती दी है कि मोदी उनके घोषणापत्र में वह दिखा दें जो बोल रहे हैं। लेकिन यही बात बोलते हुए मोदी ने मनमोहन सिंह वाला वह पुराना भाषण भी कोट कर दिया जिसके बाद से सोशल मीडिया पर बहुप्रतिक्षित हिन्दू मुस्लिम की बहस चल पड़ी है।
19 अप्रैल को पहले चरण का चुनाव हो गया लेकिन न तो राजनीति के मैदान में और न ही सोशल मीडिया में हिन्दू मुस्लिम वाला बंटवारा हो पा रहा था। अब जबकि स्वयं मोदी ने अपने समर्थकों को खाद पानी दे दिया है तो निश्चित रूप से उनके भीतर नया जोश आया है। उम्मीद की जा रही है कि बीजेपी कैडर के लिए ही सुस्त पड़ा चुनाव इसके बाद थोड़ा सक्रिय चुनाव बन जाएगा।
लेकिन यहां एक बुनियादी सवाल यह पैदा होता है कि अगर कांग्रेस मुस्लिम हितैषी है तो क्या भाजपा मुस्लिम विरोधी है जो रिलिजियस मॉइनॉरिटी (खासकर मुस्लिम) का उत्थान नहीं चाहती है? आंकड़े और तथ्य इसकी गवाही नहीं देते हैं। किसी पार्टी का किसी जाति, समुदाय या धर्म को लेकर क्या रुख है, यह एक अलग बात है लेकिन देखना यह होता है कि वही दल सरकार में आने के बाद क्या करता है?
इस लिहाज से देखें तो बीजेपी ने रिलिजियस मॉइनरिटी उसमें भी खासकर मुस्लिम मॉइमॉरिटी के लिए पिछली सरकारों से कहीं बढ़कर काम किया है। 7 फरवरी 2022 को पीआईबी की सरकारी रिलीज में अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से बताया गया था कि मोदी सरकार किस प्रकार से धार्मिक अल्पसंख्यकों के उत्थान के लिए 15 सूत्रीय कार्यक्रम का संचालन कर रही है। इसमें मुख्य रूप से तीन चार बातें गिनाई गयी हैं।
पहला अल्पसंख्यकों के लिए शिक्षा के अवसरों को बढ़ाना, दूसरा, ऋण उपलब्ध कराने में अल्पसंख्यकों की मदद करना, तीसरा, सरकारी नौकरियों में अल्पसंख्यकों के लिए समान हिस्सेदारी सुनिश्चित करना, चौथा, बुनियादी ढांचा विकास योजनाओं में अल्पसंख्यकों के लिए उचित हिस्सेदारी सुनिश्चित करना और पांचवा, सांप्रदायिक वैमनस्य और हिंसा की रोकथाम और नियंत्रण।
अगर मोदी सरकार द्वारा अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए ये योजनाएं चलायी गयीं तो सवाल यह है कि इससे उलट मनमोहन सिंह ने ऐसा क्या कहा था जिसके कारण उनकी आलोचना होनी चाहिए? वो भी तो यही बोल रहे थे कि विकास में अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिम अल्पसंख्यकों की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए। धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए जो सरकारी कार्यक्रम चलाये जाते हैं उसमें मुस्लिम अल्पसंख्यक ही सबसे बड़ा लाभार्थी होता है क्योंकि वह सबसे बड़ी रिलिजियस मॉइनॉरिटी है।
मतलब मनमोहन सिंह मुस्लिम अल्पसंख्यकों के लिए 2006 में जो किये जाने की बात कर रहे थे, मोदी सरकार ने 2022 में अपने कार्यकाल के दौरान उसे पूरा किये जाने की सूचना भी दे दी। तो फिर अगर ऐसे में मनमोहन सरकार पर मुस्लिम तुष्टीकरण का आरोप लग सकता है तो भला मोदी सरकार पाक साफ कैसे हो सकती है? उन्होंने भी सबसे बड़े धार्मिक अल्पसंख्यक मुसलमानों के लिए बढ़ चढ़कर काम किया है।
भाजपा माइनॉरिटी सेल के महासचिव सूफी एमके चिश्ती ने जुलाई 2023 में दावा किया था कि 2014 तक सरकारी नौकरियों में मुस्लिमों की हिस्सेदारी 4.5 प्रतिशत थी लेकिन 2014 के बाद अब वह हिस्सेदारी बढकर 10.5 प्रतिशत हो गयी है। बात सिर्फ सरकारी नौकरी तक सीमित नहीं है। मुस्लिम मॉइनरिटी को लाभ सुनिश्चित करने के लिए पीएम मुद्रा योजना, नयी रोशनी योजना, पीएम किसान योजना, पीएम आवास योजना, पीएम उज्ज्वला योजना, पीएम विकास योजना और मॉइनॉरिटी स्कॉलरशिप में बिना किसी भेदभाव के मुस्लिम मॉइनॉरिटी तक लाभ पहुंचाया गया।
मोदी सरकार में धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए बजट आवंटन में 65.4 प्रतिशत की बढोत्तरी की गयी। पीएम आवास योजना में 31 प्रतिशत लाभार्थी, पीएम उज्ज्वला योजना में 37 प्रतिशत, मुद्रा योजना में 36 प्रतिशत माइनॉरिटी या मुख्यत: मुस्लिम अल्पसंख्यक ही लाभार्थी हैं। नेशनल मॉइनारिटी डेवलपमेंट एण्ड फाइनेन्स कॉरपोरेशन की ओर से मनमोहन सरकार के दौरान 76 हजार लोगों को लोन दिया गया था लेकिन मोदी सरकार के दस साल के कार्यकाल में 2 लाख से अधिक अल्पसंख्यकों को लोन मुहैया कराया गया।
ये वो कुछ चंद आंकड़े हैं जो साबित करते हैं कि मनमोहन सिंह ने संसाधनों के ऊपर मॉइनारिटी के अधिकार की जो बात कही थी, उसे मोदी सरकार ने बिना किसी भेदभाव के सुनिश्चित करने का ही काम किया है। ऐसे में मनमोहन सिंह या फिर कांग्रेस के ऊपर मुस्लिम मॉइनॉरिटी को लेकर सवाल उठाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। राजनीतिक बयानबाजी चाहे जो हो लेकिन कांग्रेस सरकारों से अधिक बढ़ चढकर मोदी सरकार ने मॉइनॉरिटी और खासकर मुस्लिम मॉइनॉरिटी का हित करने का प्रयास किया है।
मोदी की इसी नीति के कारण अरब देशों से उन्हें सर्वाधिक नागरिक सम्मान भी मिला है। यूएई, सऊदी अरब और मिस्र ने अपने अपने देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान देकर यही साबित किया है कि मोदी को मुस्लिम विरोधी समझने की भूल न की जाए। यहां तक कि नुपुर शर्मा के एक बयान पर मोदी सरकार कतर जैसे बिचौलिया देश के इतने अधिक दबाव में आ गयी कि अपनी ही पार्टी के प्रवक्ताओं को फ्रिंज एलीमेन्ट बताते हुए पार्टी से बाहर कर दिया था। क्या भाजपा द्वारा किया गया यह कार्य मुस्लिम तुष्टीकरण नहीं कहा जाएगा?
मोदी सरकार में मुस्लिम हित में किये गये कामों का ही परिणाम है कि 2019 में उन्हें 8 प्रतिशत मुस्लिमों ने मतदान किया था। इस बार कुछ सर्वेक्षणों का अनुमान था कि यह बढकर 15 प्रतिशत तक भी जा सकता है। लेकिन इस बयान के बाद उनके मुस्लिम समर्थक नाराज ही होंगे और बीते कुछ सालों में पसमांदा मुस्लिमों के बीच भाजपा ने जो काम किया है, उसका कोई बहुत फायदा नहीं मिलेगा।
इस बात का अहसास खुद मोदी को भी हुआ होगा इसलिए सोमवार को अलीगढ की रैली में उन्होंने अपना रुख बदल दिया। सोमवार को अलीगढ में रैली के दौरान मोदी ने न केवल तीन तलाक को खत्म करना अपनी उपलब्धि बताया बल्कि पसमांदा मुसलमानों का भी मामला उठाया। उन्होंने यह भी बताया कि कैसे मुसलमानों का हज कोटा बढ़ाने के लिए खुद उन्होंने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान से सिफारिश की थी ताकि अधिक से अधिक भारतीय मुस्लिम हज पर जा सकें।
मतलब यही है कि मोदी ने मुस्लिम मॉइनॉरिटी को लेकर मनमोहन सिंह सरकार पर सवाल भले ही उठा दिया हो लेकिन अब संभवत: वो भी मुस्लिम विरोधी ठप्पे को अपने ऊपर लगवाना पसंद नहीं करेंगे। इसलिए हंगामा बढ़ते ही अपनी सरकार में मुस्लिम समुदाय के लिए किये गये काम को बताना करना शुरु कर दिया। अब देखना यह है कि पिटारे में से जो सांप निकल गया है, वह कहां जाकर रुकता है।