भ्रष्टाचार के खिलाफ मोदी की लड़ाई की धार भोथरी क्यों
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी हर चुनावी सभा में कह रहे हैं कि वह भ्रष्टाचारियों को जेल की सलाखों के पीछे भेजेंगे, फिर वह कोई कितना भी प्रभावशाली व्यक्ति क्यों न हो| हालांकि चुनावों के दौरान उन्होंने जिस तरह कांग्रेस और अन्य दलों के दागियों के लिए भाजपा के दरवाजे खोले हैं, उससे उनकी करनी और कथनी में अंतर साफ़ दिखाई देता है|
कांग्रेस के जिन नेताओं के खिलाफ भाजपा के बड़े बड़े नेता बोलते रहे, उन पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाते रहे, वे अब भाजपा के नेता हो चुके हैं| यहाँ तक कि उनमें से कुछ तो ऐसे भी हैं, जिनके खिलाफ पिछले चुनावों में खुद नरेंद्र मोदी ने बड़े आरोप लगाए थे| बड़ी तादाद में ऐसे कांग्रेसियों के लिए भाजपा के दरवाजे खुलने से नरेंद्र मोदी की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के दावे में खोखलापन दिखाई देता है|
विपक्ष के नेता ऐसे कई नेताओं के नाम भी गिनाते हैं, हालांकि जब वे कांग्रेस के पूर्व नेताओं की तरफ उंगली उठाते हैं, तो उनकी चार उंगलियाँ खुद की तरफ होती हैं, जो पूछ रही होती हैं कि जब वे कांग्रेस में थे, तो क्या दूध के धुले थे| कहने का मतलब है कि जब कोई दागी सामने वाली पार्टी में होता है तो उस पर उंगली उठाई जाती है, लेकिन जब वह खुद की पार्टी में होता है, तो चुप्पी साध ली जाती है|
भ्रष्टाचारियों के लिए दरवाजे खोल देने के बाद नरेंद्र मोदी की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई भोथरी हो गई है| चुनाव की शुरुआत में भाजपा को भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ लड़ाई का जितना लाभ होता दिख रहा था, वह अब उतना नहीं रहा, क्योंकि खुद भारतीय जनता पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भ्रष्टाचारियों की भीड़ से खुद को शर्मिंदा महसूस करने लगे हैं|
अब तक तो उन्हें सिर्फ बंगारू लक्ष्मण की एक गलती के कारण शर्मिन्दगी उठानी पड़ती थी, लेकिन अब उन नेताओं का भी बचाव करते हुए शर्मिन्दगी उठानी पड़ती है, जिन्होंने कांग्रेस में रहते हुए व्यापक भ्रष्टाचार किया था| चुनावों के मौके पर अगर अशोक चव्हाण जैसे नेताओं को भाजपा में शामिल करके राज्यसभा नहीं भेजा गया होता, तो हेमंत सोरेन और केजरीवाल की गिरफ्तारी की लोग तारीफ़ करते और कांग्रेस के लिए उनके इन दोनों सहयोगी दलों के मुख्यमंत्रियों का बचाव करना मुश्किल हो जाता| लेकिन आदर्श हाउसिंग सोसायटी जैसे घोटाले में फंसे अशोक चव्हाण जैसे नेताओं को पार्टी में शामिल करके मोदी ने केजरीवाल, सिसोदिया और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया|
मनमोहन सिंह सरकार के समय जब लालू यादव को चारा घोटाले में सजा हुई थी, और सजायाफ्ता होने पर उनकी सांसदी जा रही थी, तो उनकी सांसदी बचाने के लिए मनमोहन सरकार ने एक अध्यादेश को मंजूरी दी थी, जिसके कारण उनकी सांसदी बनी रहती| उस अध्यादेश को फाड़ कर राहुल गांधी ने एक संदेश दिया था कि वह स्वच्छ राजनीति चाहते हैं| हालांकि उन का संदेश भी बहुत दिखावटी साबित हुआ, क्योंकि वह उन्हीं लालू यादव के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हैं, जो इस समय भी चारा घोटाले में सजा भुगत रहे हैं, और बीमारी के बहाने जेल से बाहर हैं|
जिन राहुल गांधी ने उस समय अध्यादेश फाड़ कर मनमोहन सरकार और उनके मंत्रिमंडल को अध्यादेश वापस लेने को मजबूर किया था, वही अब भ्रष्टाचार के आरोपों में गिरफ्तार हेमंत सोरेन और अरविन्द केजरीवाल जैसों की गिरफ्तारी के खिलाफ क़ानून बनाने का चुनावी वायदा कर रहे हैं| इंडी एलायंस की अब तक दो ही रैलियां हुई हैं, एक केजरीवाल की गिरफ्तारी के खिलाफ, और दूसरी हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के खिलाफ| अगर लोग मोदी की भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई पर विश्वास कर रहे होते, तो विपक्षी दलों की ऐसी हिम्मत न होती कि वे इन दोनों के पक्ष में रैलियाँ करते|
मनीष सिसोदिया को लगातार जमानत न मिलने और दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी को जायज ठहरा दिए जाने के बाद माना जा रहा था कि कांग्रेस उनके बचाव में आने से परहेज करेगी| लेकिन पी. चिदंबरम ने केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और हेमंत सोरेन को जमानत नहीं दिए जाने पर अदालतों की आलोचना करके साफ़ कर दिया है कि कांग्रेस आम आदमी पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के चार्जशीटेड नेताओं के साथ मजबूती के साथ खड़ी है|
चिदंबरम ने कहा है कि इंडी एलायंस सत्ता में आया तो सुप्रीमकोर्ट के उस सिद्धांत को कानूनी जामा पहनाया जाएगा कि जमानत नियम है और जेल अपवाद है| जस्टिस कृष्णा अय्यर की यह टिप्पणी हमेशा सिद्धांत के तौर पर पेश की जाती है कि बहुत विकट परिस्थिति में ही किसी को जेल भेजा जाना चाहिए, जब तक दोष साबित न हो किसी को जेल नहीं भेजा जाना चाहिए|
कांग्रेस ने खुद सत्ता में रहते हुए कभी इस सिद्धांत पर क़ानून बनाने पर विचार नहीं किया, लेकिन अब जब वह सत्ता से बाहर हैं, और उसके दो बड़े सहयोगी दलों के शीर्ष नेता भ्रष्टाचार के मामलों में जेल में हैं, तो कांग्रेस ने वायदा किया है कि वह इस पर क़ानून बना देगी, ताकि निचली अदालतें, और यहाँ तक कि बड़ी अदालतें भी आसानी से किसी को जेल नहीं भेज सकें, अगर वे किसी को जेल भेजेंगी तो उन्हें बताना पड़ेगा कि जेल भेजना क्यों जरूरी है|
राजनीतिक नेताओं की भ्रष्टाचार में गिरफ्तारियों को छोड़ भी दिया जाए, तो इसमें कोई शक नहीं कि इस समय जितने लोग जेलों में हैं, उनमें से 65 प्रतिशत पर अभी मुकद्दमें चल रहे हैं, 35 प्रतिशत ही ऐसे लोग हैं, जिन्हें सजा हुई है| पी. चिदंबरम का यह आरोप बहुत ही गंभीर है कि जो 65 प्रतिशत लोग बिना फैसला हुए जेलों में हैं, उनमें से 90 प्रतिशत दलित, आदिवासी और ओबीसी हैं|
अगर यह आंकड़ा सच है, तो यह भारतीय क़ानून व्यवस्था पर भी सवाल खड़ा करता है कि भारत की न्यायपालिका उन संपन्न लोगों की मदद करती हैं, जो महंगे वकील कर सकते हैं| इसका मतलब यह भी है कि गरीबों की मदद करने के लिए सुप्रीमकोर्ट की निगरानी में बने जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण और राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण जैसे संस्थान पूरी तरह फेल हो गए हैं|