मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना : इशरत खान



गुरसहायगंज कन्नौज। क्षेत्र के एक कॉलेज में हिंदुस्तान के मशहूर शायर एक फिलॉस्फर शायरी के नाम से जाने जाने वाले डॉ अल्लामा इकबाल का जन्म दिवस मनाया गया। जिसमें मजलिस के जिलाध्यक्ष ने पुष्प अर्पित कर उनके जीवन पर प्रकाश डाला।
सोमवार 9 नवंबर को क्षेत्र के ग्राम मझपुरवा स्थित एस यू एन नेशनल कॉलेज में फरोग ए उर्दू अदब कमेटी की जानिब से देश के मशहूर शायर डॉक्टर अल्लामा इकबाल का जन्म दिवस मनाया गया जिसमें उनके जीवन पर रोशनी डालते हुए व उनको पुष्प अर्पित कर एमआईएम के जिलाध्यक्ष इशरत खान ने कहा की अल्लामा इकबाल को अधिकांश शायरी में देशभक्ति व आपसी भाईचारा से ओतप्रोत भावनाएं महसूस की जा सकती हैं उनके शेर से ही पता चलता है कि वह बहुत ही सच्चे और पक्के देशभक्त थे जब उनके द्वारा लिखी गई शायरी सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तां हमारा उन्होंने आगे भी कहा कि अल्लामा इकबाल साहब ने लिखा है कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना हिंदी हैं हम वतन है हिंदुस्तां हमारा इस दौरान कालेज प्रबंधक आरिफ खान ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि डॉ अल्लामा इकबाल अपनी नज़्म में लिखा है कि यूनान मिस्र रोमा सब मिट गए जहां से अब तक मगर है बाकी नामोनिशां हमारा मतलब यह की दुनिया के बहुत से देशों की हालत बदतर हो चुकी है लेकिन हमारे देश की संस्कृति यहां का भाईचारा आज भी सलामत है इस दौरान उमर इदरीसी ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया कि डॉक्टर अल्लामा इकबाल के पूर्वज कश्मीरी ब्राह्मण थे बाद में वह सिलाई बुनाई का काम करने लगे उन्होंने कहा कि डॉ अल्लामा इकबाल ने एक शेर कहा कि नानक ने जिस जमीन पर पैगाम ए हक सुनाया वतन है वही है मेरा वतन वही है। वही कार्यक्रम का संचालन करते हुए आफताब खान ने कहा कि डॉक्टर अल्लामा इकबाल एक अच्छे शायर होने के साथ-साथ एक फ्लासफार भी थे उनकी शायरी सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में पढ़ी और सुनी जाती हैं। उनके शेर मे सितारों के आगे जहां और भी हैं अभी इश्क के इम्तिहान और भी हैं इस अवसर पर मीम के जिला उपाध्यक्ष आसिफ खान जावेद हुसैन शबनूर दऊआ अकबर खान मास्टर रमन सर मास्टर हाफिज नासिर खान सहित तमाम लोग मौजूद थे।