22 November, 2024 (Friday)

क्यों मौसम विभाग कह रहा कि अबकी बार अधिक गर्मी पड़ेगी

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भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने घोषणा की है कि भारत में इस साल गर्मी के मौसम (अप्रैल से जून) में औसत से अधिक गर्मी के दिन देखने को मिलेंगे. देश के अधिकांश हिस्सों में सामान्य से अधिक तापमान दर्ज किए जाने की आशंका है. अनुमान है कि गर्मी का सबसे अधिक असर दक्षिणी हिस्से, मध्य भारत, पूर्वी भारत और उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों पर पड़ेगा. इसका मतलब ये हुआ कि देश के मैदानी इलाके इस बार हर साल से ज्यादा तपने वाले हैं

ये घोषणा तब की गई है जब भारत पहले से ही अपनी बिजली की मांग को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहा है, जो गर्मी के मौसम में काफी बढ़ जाती है. रॉयटर्स के एक विश्लेषण में बताया गया कि 31 मार्च, 2024 को समाप्त होने वाले वर्ष में भारत का जलविद्युत उत्पादन कम से कम 38 वर्षों में सबसे तेज गति से गिरा है.

आने वाले महीनों में भी जलविद्युत उत्पादन शायद सबसे कम रहेगा, जिससे कोयले पर निर्भरता बढ़ जाएगी. इससे वायु प्रदूषण अगर बढेगा तो ये गर्मी में और योगदान देगा.

सवाल – भारतीय मौसम विभाग का पूर्वानुमान क्या कहता है?
– आईएमडी के पूर्वानुमान में कहा गया है कि पूर्व और उत्तर-पूर्व के कुछ हिस्सों और उत्तर-पश्चिम के कुछ हिस्सों को छोड़कर भारत के ज्यादातर इलाकों में गर्मी ज्यादा ही रहेगी. अधिकतम और न्यूनतम तापमान सामान्य से ऊपर रहेगा.

सवाल – इससे क्या परेशानियां होने वाली हैं?
– इससे लोगों में गर्मी से संबंधित बीमारियां हो सकती हैं. कृषि उत्पादन प्रभावित हो सकता है, पानी की कमी हो सकती है, ऊर्जा की मांग बढ़ सकती है और पारिस्थितिकी तंत्र और वायु गुणवत्ता प्रभावित होगी.

सवाल – गर्मी की ये तपिश कब से फील होनी शुरू हो जाएगी?
– ऐसा अप्रैल से ही हो सकता है. उत्तर-पश्चिम मध्य भारत, पूर्वी भारत और उत्तर-पश्चिमी मैदानी इलाकों के कुछ हिस्सों में गर्मी की लहर ज्यादा लगने लगेगी और तपिश महसूस होनी शुरू हो जाएगी.

सवाल – इस बार भारत में ज्यादा गर्मी क्यों?
– अल नीनो भारत में कम वर्षा और अधिक गर्मी का कारण बनती है. भूमध्यरेखीय प्रशांत क्षेत्र में मध्यम अल नीनो स्थितियां अभी मौजूद हैं, जिसकी वजह से समुद्र की सतह के तापमान में लगातार बढोतरी हो रही है. समुद्र के ऊपर सतह की गर्मी समुद्र के ऊपर वायु प्रवाह को प्रभावित करता है. चूंकि प्रशांत महासागर पृथ्वी के लगभग एक तिहाई हिस्से को कवर करता है, लिहाजा इसके तापमान में बदलाव और उसके बाद हवा के पैटर्न में बदलाव दुनियाभर में मौसम को बाधित करता रहा है.

यूएस नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा कि इस साल की जनवरी 175 वर्षों में सबसे गर्म जनवरी थी. हालांकि अगले सीज़न के दौरान अल नीनो के कमजोर होने और ‘तटस्थ’ होने की संभावना है. कुछ मॉडलों ने मानसून के दौरान ला नीना की स्थिति विकसित होने की भी संभावना जताई है, जिससे पूरे दक्षिण एशिया में, विशेषकर भारत के उत्तर-पश्चिम और बांग्लादेश में वर्षा तेज हो सकती है.

सवाल – गर्मी की लहर क्या है? ये कैसे बनती है?
– असामान्य रूप से उच्च तापमान की अवधि को हीट वेव कहा जाता है. यदि मैदानी इलाकों में अधिकतम तापमान कम से कम 40 डिग्री सेल्सियस और पहाड़ी क्षेत्रों में कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है, तो आईएमडी लू यानि हीट वेब्स की घोषणा करता है, जिसमें सामान्य अधिकतम तापमान से लगभग 4.5-6.4 डिग्री सेल्सियस का अंतर होता है.

अगर वास्तविक अधिकतम तापमान 45 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है तो आईएमडी लू की घोषणा भी कर सकता है. यदि तापमान 47 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाता है तो ‘गंभीर गर्मी की लहर’ भी घोषित कर सकता है. लू में हवा का तापमान मानव शरीर के लिए घातक हो जाता है. भारत में गर्मी की लहरें आमतौर पर मार्च और जून के बीच दर्ज की जाती हैं और मई में चरम पर होती हैं. अल नीनो मौसम की स्थिति भी सामान्य से अधिक तापमान में योगदान करती है, जिससे गर्मी की लहरों में वृद्धि होती है.

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