25 November, 2024 (Monday)

समय कठिन हो तो आपको हर वक्त अच्छा महसूस करें, खुश रहने का दबाव ना मानें

‘समय कठिन हो तो आपको हर वक्त अच्छा महसूस होना चाहिए। संकल्प पक्का हो। बुरे खयाल न आएं और न ही वे हमें प्रभावित करें। हम कभी नकारात्मक न हों। हर समय आह्लादित महसूस करें।’ यह सुनकर जाहिर है आप यह सोच रहे होंगे कि वास्तव में ऐसा संभव नहीं। पर आमतौर पर यही सलाह दी जाती है और आप हर वक्त सकारात्मक और खुश रहने के दबाव में आ जाते हैं। हालांकि सलाह देने वाले यह नहीं बताते कि यह कैसे संभव है।

भावों का सहअस्तित्व:

दरअसल, अच्छा महसूस करना और बुरे एहसास का होना, ये दोनों हमारे मन के ही दो पक्ष हैं। एहसास के स्तर पर इन भावों का सहअस्तित्व होता है यानी दोनों मन में साथ होते हैं। यदि यह कहा जाता है कि हर व्यक्ति में दैवी और आसुरी प्रवृत्तियां हैं तो यह भी इसी बात की पुष्टि करता है। मनोवैज्ञानिक रूप से किसका सापेक्षिक प्रभुत्व अधिक है, उसका हमारे व्यवहार पर असर दिखता है। जब हम सकारात्मक अनुभव करेंगे तो हम अच्छा सोच पाते हैं। हमारे कार्य में वह नजर आता है। पर हमेशा सकारात्मक और खुश रहना व्यावहारिक नहीं। हमारी भावना जैसी होगी, वैसा ही हम देख पाएंगे। आपके मन में दोनों भाव हैं। सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलू हैं, पर आप ध्यान किस पर देते हैं, यह अधिक मायने रखता है।

संतुलन रखने से आसान होगा समायोजन :

हमारे लिए खुशी महत्वपूर्ण है तो दुख के भाव भी। बस, इनमें एक संतुलन होना चाहिए, अन्यथा जीवन समायोजन में परेशानी आएगी। आप सामान्य नहीं रह पाएंगे। आपको चिकित्सा की जरूरत पड़ जाएगी। कारोना हो गया तो हमेशा जानलेवा होगा, यह सोचते रहेंगे तो आप बचाव के जरूरी और सार्थक उपाय नहीं कर सकेंगे।

किसी की नौकरी चली गई है तो दोबारा उठ खड़े होने का जज्बा काम आएगा। दरअसल, आपको नकारात्मक होने के बजाय अपने भाव को फंक्शनल यानी कार्य रूप में ढालना होगा। जैसे किसी मजदूर को दिहाड़ी काम मिलना बंद हुआ तो वह सब्जी बेचने की सोचने लगा और उसने करके दिखाया। यही है हमारी भावनात्मक बुद्धि यानी इमोशनल इंटेलिजेंस। यह आपको भावनाओं पर समुचित नियंत्रण करना सिखाता है न कि नकारात्मक को नकार देना।

अंतत: क्या करें

नकारात्मकता महसूस हो तो उन विचारों को हटा दें जो आपको नकारात्मक बना रहे हैं।

नकारात्मकता अधिक हो जाए तो दलदल बन जाती है। जितना निकलने का प्रयास करेंगे, फंसते जाएंगे। नकारात्मकता को स्वीकार कर लें। कोई न कोई आपको दलदल से बाहर निकाल लाएगा।

नकारात्मकता को दबाएं नहीं, रिजॉल्व करें। सकारात्मक होने के प्रयास में नकारात्मक विचारों से जूझना या उन्हें अनदेखा करना सही नहीं…।

यह है ऊर्जा का खेल :

मनोविज्ञान में एक सिद्धांत है, जिसे आर्किस्ट डॉडसन लॉ कहा जाता है। इस नियम के अनुसार, एक निश्चित स्तर तक चिंता करना आपकी सफलता के लिए बहुत जरूरी है। हां, बहुत कम या बहुत ज्यादा तनाव दोनों ही स्थितियां किसी के लिए भी अच्छी नहीं हो सकतीं। दुनिया की जानी-मानी सेल्फ हेल्प पुस्तक ’द सीक्रेट’ में लेखक रोंडा बिरने ने कहा है कि आप प्रकृति को जो भी कहेंगे, उससे जो भी मांगेंगे, वह आपको दे देगी। ब्रह्मांड में आप जैसी ऊर्जा भेजेंगे, वह आपको वापस वही लौटा देगी, क्योंकि ब्रह्मांड में भी सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रकार की ऊर्जा मौजूद है।

नकारात्मकता से सकारात्मकता की ओर :

यदि सकारात्मक भाव को आप महत्वपूर्ण मान रहे हैं तो नकारात्मक भाव का भी अपना महत्व है। इसे नकारने का मतलब विचार के स्तर पर खुद को असंतुलित करना है। यदि आपको किसी बात की चिंता नहीं होगी तो आप कार्य के बारे में योजना नहीं बना पाएंगे। कार्य को पूरा करने का अंतिम समय निर्धारित नहीं होगा तो आप पर दबाव नहीं होगा और आप आगे नहीं बढ़ पाएंगे। याद रहे, सांप से भय होता है तो ही हम भागते हैं। न भागें तो बचाव नहीं होगा। कोई प्रियजन चला जाए तो शोक न हो, ऐसा नहीं होता।

हर परंपरा में शोक मनाने की प्रथा है। लेकिन उसके बाद नकारात्मक को सकारात्मक बनाने की प्रक्रिया भी होती है। हिंदू धर्म मेंगरुड़ पुराण सुनकर जीवन का सच जानते-समझते हैं। खानपान विशेष होता है। प्रियजनों के घर आने के बाद सबके मिलनेजु लने के बाद शोक का भाव कमतर होने लगता है। दुख, शोक, असफलता, निराशा के क्षण हर किसी के जीवन में आते हैं, लेकिन हमें खुद को संतुलित रखते हुए धीरे-धीरे उससे बाहर निकलने और सकारात्मकता के साथ आगे बढ़ने का प्रयत्न करना होता है।

[प्रो. राकेश पांडेय, वरिष्ठ मनोविज्ञानी, बीएचयू, वाराणसी]

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *