नीतीश की जीत, मोदी की बाजी: बिहार चुनाव के नतीजों ने हर दल को खुद के अंदर झांकने को कर दिया मजबूर
बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे ने हर दल को खुद के अंदर झांकने को मजबूर कर दिया है। नीतीश चौथी बार बिहार की कमान संभालेंगे, लेकिन श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाएगा। इससे कोई इनकार नहीं कर पाएगा कि प्रधानमंत्री की चुनावी रैलियां नहीं हुई होतीं तो राजग पर जनता का भरोसा शायद कम होता। जदयू और भाजपा के सीटों के आंकड़ों से भी इसकी साफ झलक मिलती है। वहीं राजद नेता तेजस्वी, कांग्रेस नेतृत्व, लोजपा के युवा मुखिया चिराग पासवान, हर किसी को अपनी क्षमता का आकलन करने के मौका मिला है।
बिहार प्रयोग की भूमि रही, लालू काल में सामाजिक न्याय, जदयू-भाजपा काल में विकास का प्रयोग
बिहार प्रयोग की भूमि रही है। यही कारण है कि लालू काल में सामाजिक न्याय का प्रयोग हुआ तो जदयू-भाजपा के काल में विकास का। विकास की बिहार को जरूरत है लेकिन ईमानदारी से आकलन किया जाए तो साफ सुथरे चेहरे के बावजूद नीतीश के खिलाफ एक माहौल बनने लगा था। शायद जनता पंद्रह साल में कुछ ज्यादा अपेक्षा कर रही थी, लेकिन भाजपा और जदयू दोनों को एक दूसरे की जरूरत थी। हाथ थामा और नैया किसी तरह पार लग गई।
बिहार में भाजपा बनी पहली बार नंबर वन पार्टी और जदयू पहली बार नंबर तीन
भाजपा पहली बार बिहार में नंबर वन पार्टी बन गई और जदयू पहली बार नंबर तीन। पिछली बार राजद के साथ लड़ते हुए जदयू नंबर दो था। 2005 से अब तक के इतिहास में जदयू अपने निम्नतम स्कोर पर है।
चेहरा नीतीश थे और लड़ाई की कमान भाजपा ने संभाली थी
अर्थ साफ है कि चेहरा नीतीश थे और लड़ाई की कमान भाजपा ने संभाल रही थी। इस जीत का श्रेय भाजपा को जाएगा और अब यह मानकर चलना चाहिए कि अगले चुनाव में चेहरा और कमान दोनों ही भाजपा का हो। यह इसलिए भी माना जाना चाहिए क्योंकि नीतीश ने खुद ही कह दिया है कि यह उनका आखिरी चुनाव है। इसके बाद जदयू को भी चेहरे की तलाश करनी पडे जो भाजपा की बैसाखी पर चलने को तैयार हो।
कांग्रेस और राहुल गांधी को आत्ममंथन करना चाहिए
कांग्रेस और राहुल गांधी को अब तो गंभीरता से आत्ममंथन करना ही चाहिए। अभी कुछ दिन पहले की ही बात है कि जब उन्होंने फिर से ‘मोदी ईवीएम’ की बात की थी। जनता नेताओं की विश्वसनीयता पर वोट डालती है और राहुल अभी भी ईवीएम पर सवाल खड़ा कर रहे हैं जबकि पंजाब, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। बिहार में भी आखिरी वक्त तक वोटों की सुई इधर उधर घूमती रही। नेताओं और दलों की सासें फूली रहीं।
राज्यों में हुए उपचुनाव में कांग्रेस की हुई बुरी गति
महागठबंधन मजबूत विपक्ष के रूप में खड़ा हो गया, लेकिन राहुल हैं कि मानते नहीं। वह रटे रटाए नारों के साथ जनता के बीच जाते हैं और वापस आ जाते हैं। बिहार में तो तेजस्वी और वामदलों के कंधे पर चढ़कर कांग्रेस थोड़ा हासिल भी कर पाई, लेकिन कई-कई राज्यों में भी उपचुनाव हुए है और कांग्रेस की बुरी गति हुई है। क्या राहुल को सचमुच कोई अहसास नहीं है कि कुछ महीने पहले पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने जो कुछ लिखा था वह सच था। खैर, आत्मचिंतन जब भी कर लिया जाए अच्छा है।
चिराग पासवान की तरह तेजस्वी अभी युवा और अनुभवहीन हैं
तेजस्वी अभी युवा हैं और अनुभवहीन भी। ठीक चिराग पासवान की तरह। यही कारण है कि जाति पाति से उपर उठने की बात कहकर मैदान में उतरे तेजस्वी ने आखिरी क्षण में फिर से वही तार छेड़ दिया था जिसके लिए लालू काल बदनाम हुआ था। उन्हें यह समझना चाहिए कि वोट अर्जन करना अहम है, किसी के खिलाफ पड़े वोटों को संभालना अलग। सकारात्मक वोट और विश्वास हासिल करने के लिए उन्हें लगातार संजीदगी के साथ मैदान में रहना होगा।