25 November, 2024 (Monday)

आक्सीजन की कमी से उखड़ती सांसें

देश में कोरोना मरीजों की उखड़ती सांसों को थामने के लिए आक्सीजन कम पड़ रही है। मामले की गंभीरता को देखते हुए, मोर्चा स्वयं प्रधानमंत्री ने संभाल रखा है। बावजूद इसके आक्सीजन को लेकर देशभर में हाहाकार की स्थिति बनी हुई है। आक्सीजन संकट के मद्देनजर दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायिक पीठ को कहना पड़ा है कि ऑक्सीजन रोकने वालों को हम लटका देंगे, अर्थात फांसी की सजा देंगे, तो संयम टूटने की यह पराकाष्ठा है। न्यायमूर्ति संवेदनशीलता के साथ-साथ बेहद सख्त भी प्रतीत हुए। अधिकारी बड़ा हो या छोटा, हम किसी को नहीं छोड़ेंगे। उन्हें लटका देंगे, जो ऑक्सीजन की आपूर्ति में रोड़ा बन रहे हैं। न्यायिक पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि कोरोना वायरस की मौजूदा स्थिति सिर्फ ‘दूसरी लहर’ नहीं, बल्कि ‘सुनामी’ है। कोर्ट की इस टिप्पणी से मामले की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है।
आक्सीजन से तोड़ने वालों की खबरें सुर्खियां बन रही हैं। बीते दिनों महाराष्ट्र के जाकिर हुसैन अस्पताल में ऑक्सीजन के टैंकर से ही लीकेज शुरू हुआ और प्राण-वायु का रिसाव होने लगा। सफेद गुब्बार चारों तरफ फैल गया, अंततः गैस ही थी, बेशक जीवनदायिनी साबित होती रही थी, लेकिन एक किस्म की घुटन से अफरातफरी मच गई। दहशत और खौफ के उस मंजर में ऑक्सीजन की आपूर्ति बंद करनी पड़ी, नतीजतन वेंटिलेटर पर रखे गए और प्राण-वायु के सहारे जिंदगी जी रहे 24 मरीजों की ‘आखिरी सांस’ भी उखड़ गई। राजधानी दिल्ली के जयपुर गोल्डन अस्पताल में बीते शुक्रवार आक्सीजन न मिलने की वजह से 20 कोरोना मरीजों की मौत हो गई। ऐसे में सवाल यह है कि सरकारी हो या प्राईवेट अस्पताल इनकी जिम्मेदारी कौन तय करेगा? क्या आम आदमी को यूं ही मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा।
इन सारे तथ्यों के आलोक में यह अहम है कि आखिरकार एकाएक देश में आक्सीजन की इतनी कमी पैदा कैसे हो गई? क्या इसके पीछे सरकारी व्यवस्था की बदइंतजामी है या फिर वजह कोई और है? राज्य सरकारों को उदासीनता को आलम यह है कि पीएम केयर कोष द्वारा जनवरी में देश के विभिन्न शहरों के सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन संयंत्र लगवाने हेतु दी गई राशि का उपयोग न हो पाना वाकई दुःख का विषय है। जैसी जानकारी है उसके मुताबिक जनवरी में विभिन्न राज्यों के सरकारी अस्पतालों में 162 संयंत्र लगाने के लिए उक्त कोष से 200 करोड़ रु. जारी किये गये किन्तु अपवाद स्वरुप छोड़कर या तो संयंत्र का काम शुरू नहीं हुआ अथवा मंथर गति से चल रहा है। किसी काम को समय पर करने के लिए आपात्कालीन परिस्थितियों का इंतजार क्यों किया जाये ये बड़ा सवाल है। जिन अधिकारियों अथवा सत्ताधारी नेताओं के कारण आक्सीजन संयंत्रों के निर्माण में अनावश्यक विलम्ब हुआ , काश वे इस बात का पश्चाताप करें कि उनकी लापरवाही ने कितने जीवन दीप बुझा दिए। गत दिवस प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने देश के 551 जिलों के सरकारी अस्पतालों में आक्सीजन संयंत्र लगाने के लिए फिर राशि स्वीकृत कर दी है जिनके प्रारम्भ हो जाने के बाद से देश के तकरीबन सभी हिस्सों में आक्सीजन की आपूर्ति और परिवहन आसान हो जाएगा।
महामारी की दूसरी लहर ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। बढ़ते मौत के आंकड़े सच्चाई को बयां कर रहे हैं। यह सब हमारी लापरवाही और लचर व्यवस्था को उजागर कर रहा है। श्मशान और अस्पताल के बीच चंद फंसी सांसें जीवन के साथ संघर्ष करती हुई नजर आ रही हैं। ऑक्सीजन के सिलेंडर, इंजेक्शन और बेड को लेकर मारामारी मची हुई है। ऐसे मुसीबत के दौर में भ्रष्टाचार, चोरी, लापरवाही और अपने ईमान को बेचने वाले तथाकथित लोगों ने मानवता को शर्मसार कर दिया है। मीडिया रिपोर्ट और अनुभव के आधार पर ये कहा जा सकता है कि सरकारी कुप्रबंधन के अलावा लोगों के मन में कोरोना को लेकर डर का माहौल भी है। ऐसे बहुत से मामलों में बिना जरूरत के आक्सीजन और आवश्यक दवाईयां स्टोरेज की गई है। जिसके चलते जरूरतमंद इससे वंचित हो रहे हैं और बाजार में आक्सजीन, दवाईयों व अन्य सामानों की कमी देखने को मिल रही है। स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों के अनुसार गंभीर मरीजों को ही केवल आक्सीजन की जरूरत होती है, लेकिन डर और आशंका के चलते कोई सुनने को तैयार नहीं है।
प्रधानमंत्री ने कई फैसले किए हैं, कई आदेश दिए हैं। ऑक्सीजन की आपूर्ति के कई तरीके सामने दिखाई दे रहे हैं-रेलवे, विमान, सड़क। इसमें सेना के तीनों अंग भी जुट चुके हैं। जर्मनी से मदद आनी है। सिंगापुर से 4 क्रायोजेनिक टैंकर भारत में आ चुके हैं। 50,000 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आयात के लिए ग्लोबल टेंडर की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। ऑक्सीजन संकट को देखते हुए रेलवे ने भी आक्सीजन एक्सप्रेस चलाने का निर्णय लिया है। जिसके जरिये तरल ऑक्सीजन व ऑक्सीजन सिलेंडरों का परिवहन किया जा सकेगा। इसकी गति में कोई अवरोध पैदा ना हो, इसलिये ग्रीन कॉरिडोर तैयार किया जा रहा है। विभिन्न राज्यों मेें आक्सीजन एक्सप्रेस पहुंचने भी लगी हैं। संभव है कि कुछ दिनों में स्थिति सुधर जाए, लेकिन तब तक उन सांसों और आंसुओं की जवाबदेही किसकी तय की जाए, ये अहम सवाल है।
देश में कोरोना मरीजों का आंकड़ा नित नए रिकार्ड बना रहा है। वरिष्ठ डॉक्टर चेतावनी देने लगे हैं कि अभी तो संक्रमण बहुत बढ़ेगा, लिहाजा वेंटिलेटर की जरूरत बढ़ेगी। उनकी कमी हो सकती है, लिहाजा अभी से केंद्रीय कमान बनाई जाए और सभी अनिवार्य सेवाओं को उसके तहत रखा जाए। अभी तो इंजेक्शन, ऑक्सीजन सिलेंडर और कोरोना टीके ही चोरी किए जा रहे हैं, पीक वाली स्थिति में अराजकता किसी भी हद तक पहुंच सकती है। यह चेतावनी डॉक्टरों की ओर से आई है, लिहाजा महामारी के ऐसे दौर में राज्यों की सीमाएं भी बेमानी हो जानी चाहिए। कोरोना के बावजूद बौने स्वार्थ और क्षुद्र राजनीति जारी है। टाटा की तरह दूसरे औद्योगिक घरानों को सामने आकर जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए।
सरकारी कुप्रबंधन और राज्यों की उदासीनता से ऐसे हालात पैदा हुए हैं, इसमें कोई दो राय नहीं है। वर्तमान संकट तब है, जब भारत में ऑक्सीजन उत्पादन की कमी नहीं है। हम औसतन 7500 एमटी ऑक्सीजन रोजाना पैदा करते हैं, जबकि अभी तक मांग करीब 5000 एमटी की ही रही है। कोरोना के इस दौर में मांग 8-10 फीसदी बढ़ गई होगी। उतना तो भंडारण भी होगा। विडंबना है कि जिन राज्यों में कोरोना संक्रमण का असर और फैलाव कम है, वे भी स्थानीय भावनाओं, राजनीति और चिंताओं के मद्देनजर अपने स्टॉक को दबाए रखना चाहते हैं। सभी राज्यों को नहीं भूलना चाहिए कि यह राष्ट्रीय आपदा का दौर है और संक्रमण के दंश किसी को भी भुगतने पड़ सकते हैं। दरअसल संकट व्यवस्था का है। प्रधानमंत्री ने कई बदलाव किए हैं, लिहाजा अब चिकित्सा व्यवस्था का ढांचा बदलने की बारी है। वहीं वर्तमान व्यवस्था के साथ ही साथ भविष्य को भी ध्यान में रखकर तैयारियों की जानी चाहिए। आने वाले समय में भी हमें ऐसे नये संक्रमणों का सामना करने के लिये तैयार रहना पड़ सकता है।
-लेखक उप्र राज्य मुख्यालय पर मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *