जब मुंबई में ट्रेन से गोरेगांव जा रही थीं लता मंगेश्कर और पीछे पढ़ गया था एक ‘दुबला-पतला’ लड़का…
जन्म के समय लता जी का नाम हेमा रखा गया था। उन्होंने पांच वर्ष की आयु में पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर के संगीतमय नाटकों में अभिनय करना शुरू कर दिया था। पिता ही पहले संगीत गुरु थे। छह वर्ष की उम्र में पिता जी से ही राग पूरिया धनाश्री सीखी। सुरों की मलिका भारत रत्न लता मंगेशकर आज हमारे साथ नहीं हैं। रविवार को सुबह उनका निधन हो गया।
पूरा नाम: लता दीनानाथ मंगेशकर
जन्म: 28 सितंबर, 1929
जन्म स्थान: इंदौर (वर्तमान मप्र)
पिता: पंडित दीनानाथ मंगेशकर
माता: शुद्धमती मंगेशकर
बहनें: आशा भोसले, मीना खडीकर व उषा मंगेशकर
भाई: हृदयनाथ मंगेशकर
लता ने अपना पहला आधिकारिक गीत मराठी फिल्म (किती हासल) के लिए गाया था, जो 1942 में रिलीज हुई थी। 1945 में मुंबई आईं, जहां उस्ताद अमान अली खां से संगीत की विधिवत शिक्षा ली। उनकी मृत्यु के बाद उस्ताद अमानत खां से संगीत सीखा। 1947 में देश की स्वतंत्रता के साथ हिंदी पाश्र्वगायन में शुरुआत। पहला गीत ‘पा लागूं कर जोरी रे, श्याम मोसे न खेलो होरी.. ’ (फिल्म ‘आपकी सेवा में’) था।
1942 के बाद कई फिल्मों में बतौर बाल कलाकार काम किया। पिता के निधन के बाद लता ने मास्टर विनायक के साथ नवयुग में काम किया। तीन महीने का अनुबंध था। उस दौरान लता ने 300 रुपए कमाए थे। 1942 में उन्होंने प्रफुल्ल पिक्चर्स में 60 रुपए महीने की नौकरी की।
‘भैरवी’ फिल्म का निर्माण लता मंगेशकर ने आरंभ किया था, जिसके संगीतकार के रूप में रोशन का चुनाव हुआ था। इस फिल्म का मुहूर्त उनके पारिवारिक मित्र और वीर सावरकर ने किया था। हालांकि यह फिल्म बाद में बन ही नहीं सकी।
के. एल. सहगल की अनन्य भक्त लता ने उनके तीन गीतों को सबसे महत्त्वपूर्ण माना, जिसे अपनी आवाज में गाकर उन्हें श्रद्धांजलि दी थी। ये तीन गीत हैं- ‘मैं क्या जानूं क्या जादू है’ (जिंदगी, 1940), ‘नैनहीन को राह दिखा प्रभु’ (भक्त सूरदास, 1942) तथा ‘बालम आए बसो मोरे मन में’ (देवदास, 1935)।
1947 में लता ने 18 की उम्र में पहली बार रेडियो खरीदा। रेडियो पर एक दिन केएल सहगल के निधन की खबर सुनी। लता इतना दुखी हुईं कि रेडियो दुकानदार को वापस कर आईं।
1948 में लता जी मुंबई में ट्रेन से गोरेगांव जा रही थीं, तब डिब्बे में उन्हें एक दुबला पतला लड़का दिखा। रेल से उतर कर उन्होंने स्टूडियो जाने के लिए तांगा किया, तो वह लड़का भी उनके पीछे-पीछे आ गया। स्टूडियो पहुंचकर वे संगीतकार खेमचंद प्रकाश से घबरा कर बोलीं – ‘एक लड़का मेरा पीछा कर रहा है’। दोनों को देखकर खेम चंद्र प्रकाश जोर से हंस कर बोले ‘यह तो अशोक कुमार का छोटा भाई है किशोर कुमार, इसी के साथ तो तुम्हें गीत गाना है’। फिर उन दोनों ने पहला युगल गीत ‘यह कौन आया करके सोलह सिंगार’ गाया।
1949 में ‘आएगा आने वाला.. ’ (फिल्म ‘महल’) उनकी सफलता की पहली इबारत रचने वाला गीत बना, जिसे अभिनेत्री मधुबाला पर फिल्माया गया था।
1959 में मदन मोहन के संगीत निर्देशन में लताजी और किशोर कुमार एक हास्य गाने की रिकार्डिग कर रहे थे। इस दौरान किशोर ने रिकार्डिग में ऐसी हरकत की की लता सचमुच खिलखिला पड़ीं। दरअसल मदन मोहन ने किशोर को पहले ही समझा दिया था कि गाने के अंत में कुछ ऐसी हरकत करना कि लता सच में हंस पड़े और किशोर दा तो इस काम में उस्ताद थे ही।
‘तरंग’ (1984) फिल्म के गीत ‘बरसे घन.. पिया आओ संग सो जाओ’, जिसे वनराज भाटिया ने संगीतबद्ध और प्रगतिशील कवि रघुवीर सहाय ने लिखा था, अकेला ऐसा गीत है, जिसे रिकार्डिग के बाद उन्होंने सुनने की इच्छा जाहिर की थी। वे कभी भी अपने रिकार्डेड गीतों को दोबारा नहीं सुनती थीं।
लता मंगेशकर राज्यसभा के सदस्य के रूप में देश सेवा से जुड़ी रहीं। छह साल के कार्यकाल में उन्होंने एक भी रुपया वेतन या किसी भी प्रकार का भत्ता नहीं लिया था। 1999 से 2005 तक सदन का हिस्सा रहीं लता ने भत्ते के रूप में भेजे गए चेक कभी स्वीकार नहीं किए और वापस भिजवा दिए। एक आरटीआइ के जवाब में यह जानकारी सामने आई थी।
लता मंगेशकर ने तिरुपति देवस्थानम में भगवान बालाजी की सेवा में एक एल्बम रिकार्ड करके 2006 में उसे मंदिर ट्रस्ट को अर्पित किया था और उसकी रायल्टी भी मंदिर को समर्पित की थी। यह एल्बम मंदिर में विशेष अवसरों पर बजाया जाता है।
लता जी का जिनके साथ विशेष जुड़ाव था, वह मदन मोहन थे। उन्होंने 2011 में एक साक्षात्कार में कहा, ‘मैंने मदन मोहन के साथ एक विशेष रिश्ता साझा किया, जो एक गायक और एक संगीतकार से काफी ऊपर था। हमारे बीच भाई बहन जैसा रिश्ता था।’ अपने लंबे करियर में लता ने महानतम भारतीय संगीतकारों और संगीत निर्देशकों के साथ काम किया, लेकिन उन्होंने ओपी नैयर के साथ कभी काम नहीं किया।