02 November, 2024 (Saturday)

सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की सजा पूरी होने से पहले रिहाई की लंबित अर्जियों का लिया संज्ञान

सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की सजा पूरी होने से पहले रिहाई के लिए छूट के बाबत दायर लंबित अर्जियों का संज्ञान लिया है। कोर्ट ने राज्यों से कहा है कि वे इस मामले पर राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (नालसा) को अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें, ताकि प्रक्रिया को सुव्यवस्थित किया जा सके। कोर्ट ने कहा कि कैदियों को उपलब्ध उपाय, विशेष तौर पर सजा पूरी होने से पहले रिहाई के संबंध में जल्द से जल्द उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

सजा पूरी होने से पहले रिहाई के लिए दोषियों के  1,649 आवेदन लंबित हैं

जस्टिस संजय किशन कौल और हृषिकेश रॉय की पीठ ने नालसा की रिपोर्ट के साथ दायर किए गए आंकड़ों का हवाला दिया है। इसके अनुसार सजा पूरी होने से पहले रिहाई के लिए दोषियों के 1,649 आवेदन लंबित हैं।

पीठ ने कहा- 431 कैदियों ने सजा पूरी होने से पहले रिहाई के लिए आवेदन ही नहीं किया 

पीठ ने कहा कि यह सत्यापित किया जाना चाहिए कि ये आवेदन कब से लंबित हैं ताकि हमें इस मुद्दे पर जानकारी प्राप्त हो सके। हमने यह भी पाया है कि 431 कैदियों ने सजा पूरी होने से पहले रिहाई के लिए आवेदन ही नहीं किया और हो सकता है कि उन्हें अपने अधिकारों की जानकारी नहीं हो। ऐसे में हमने पेश मामले में जो दिशा-निर्देश दिए हैं, वे छत्तीसगढ़ से संबंधित हैं, लेकिन यह सिद्धांत सभी जगह लागू होते हैं।

याचिकाकर्ता ने 2017 में 14 साल की सजा पूरी कर ली थी, लेकिन 2020 में जेल से हुआ रिहा 

कोर्ट ने छत्तीसगढ़ से संबंधित एक मामले की सुनवाई कर रहा था। याचिकाकर्ता ने मार्च 2017 में 14 साल की सजा पूरी कर ली थी, लेकिन उसे अक्टूबर 2020 में जेल से रिहा किया गया, जब उसकी सजा पूरी होने से पहले रिहाई के लिए याचिका स्वीकार की गई।

कोर्ट ने कहा- जेल अधीक्षक को सभी मामलों पर गौर करना चाहिए

कोर्ट ने कहा कि हमारा मानना है कि इस तरह के मामलों में जेल अधीक्षक को ऐसे सभी मामलों पर गौर करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कैदी को बचाव के लिए उपाय उपलब्ध हों।

याचिकाकर्ता की अर्जी ढाई साल बाद भेजी गई थी

पीठ ने उल्लेख किया कि याचिकाकर्ता की अर्जी ढाई साल बाद सितंबर 2019 में भेजी गई थी और उसके बाद, इसे स्वीकार करने में राज्य के गृह विभाग को एक साल और लग गए और आखिरकार उसे पिछले साल अक्टूबर में जेल से रिहा किया जा सका। पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों को जेल अधीक्षकों को देखना चाहिए और सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि बंदी को उपाय उपलब्ध हों।

पीठ ने कहा- समय सीमा तय की जाए

पीठ ने कहा कि हम यह भी चाहते हैं कि समय सीमा तय की जाए, जिसके तहत इस तरह के आवेदन को गृह विभाग प्रोसेस करे और इसमें दो-तीन महीने से अधिक का समय नहीं लगना चाहिए।

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