24 April, 2025 (Thursday)

सुप्रीम कोर्ट ने बिल्डर को छह फीसद सालाना की दर से मुआवजा देने का दिया आदेश

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि डेवलपर के रिफंड ऑफर से फ्लैट खरीदार के मुआवजे का दावा करने का अधिकार खत्म नहीं होता है। कोर्ट ने कहा कि डेवलपर ये नहीं कह सकता कि फ्लैट मिलने में देरी के बदले उसने खरीदार को ब्याज सहित पैसा वापस करने की पेशकश की थी।

अदालत ने कहा- ब्याज सहित पैसा वापस करने का प्रस्ताव उचित भरपाई नहीं

कोर्ट ने कहा कि जो खरीदार लगातार खरीद समझौते (एग्रीमेंट फॉर पर्चेज) का पालन करता रहा है, उससे जो खरीदार प्रोजेक्ट के प्रति वचनबद्ध रहा है और कब्जा पाने की इच्छा रखता है, उसके लिए सिर्फ ब्याज सहित पैसा वापस करने का प्रस्ताव उचित भरपाई नहीं होगी।

एनसीडीआरसी ने फ्लैट खरीदारों को देरी का मुआवजा देने को कहा था

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, इंदू मल्होत्रा और इंदिरा बनर्जी की पीठ ने डीएलएफ होम डेवलपर्स (जो कि पहले डीएलएफ यूनिवर्सल लिमिटेड था) की ओर से राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका का निपटारा करते हुए यह बात कही। एनसीडीआरसी ने फ्लैट खरीदारों को देरी का मुआवजा देने का फैसला सुनाया था।

एनसीडीआरसी द्वारा तय मुआवजे की सात फीसद सालाना दर घटाकर छह फीसद की

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने एनसीडीआरसी द्वारा तय मुआवजे की सात फीसद की सालाना दर घटाकर छह फीसद कर दी है। इसके अलावा कोर्ट ने एनसीडीआरसी के आदेश का वह अंश रद कर दिया है, जिसमें डेवलपर को पार्किंग और क्लब चार्ज की रकम ब्याज सहित वापस करने को कहा गया था। यह मामला डीएलएफ होम डेवलपर्स की दिल्ली शिवाजी मार्ग मोती नगर की रिहायशी परियोजना का था। इसमें फ्लैट देने में देरी पर एनसीडीआरसी ने डेवलपर को मुआवजा देने का आदेश दिया था। फ्लैट खरीदारों की ओर से कैपिटल ग्रीन फ्लैट बायर्स एसोसिएशन ने मुकदमा लड़ा था।

डेवलपर ने दो आधारों पर एनसीडीआरसी के आदेश को दी थी चुनौती 

डेवलपर ने दो आधारों पर एनसीडीआरसी के आदेश को चुनौती दी थी। पहला कि फोर्स मेज्योरे यानी ऐसी परिस्थितियां थीं जो कि डेवलपर के वश में नहीं थीं, जिनके कारण परियोजना में देरी हुई। दूसरा कि फ्लैट खरीदारों को दो बार एक्जिट ऑफर दिया गया था। जब डेवलपर को लगा कि तय 36 महीने में निर्माण पूरा नहीं हो पाएगा तो उसने एक्जिट ऑफर दिया था और नौ फीसद सालाना ब्याज सहित पैसा वापस करने का प्रस्ताव दिया था।

कोर्ट ने फोर्स मेज्योरे की दलील नकार दी

डेवलपर ने कहा कि ब्याज सहित पैसा वापस करने का प्रस्ताव देने के बाद 45 फीसद खरीदारों ने अपने फ्लैट बेच दिए थे। इसलिए देरी का मुआवजा नहीं दिया जा सकता, लेकिन कोर्ट ने फोर्स मेज्योरे की दलील यह कह कर नकार दी कि निर्माण परियोजनाओं की मंजूरी में देरी एक सामान्य घटना है। डेवलपर को इसका अहसास रहता है। इसलिए इसे बचाव में नहीं ले सकते। दूसरी दलील कि साइट पर घातक दुर्घटना हुई थी, जिसके कारण देरी हुई, पर कोर्ट ने कहा कि इसमें भी कोई कानूनी त्रुटि का मामला नहीं बल्कि तथ्यों की जांच का मुद्दा है। ये फोर्स मेज्योरे का आधार नहीं हो सकते।

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