Reform in UP: योगी आदित्यनाथ सरकार खत्म करेगी 1920 में बना कानून, लाभान्वित होंगे उद्योग लगाने वाले
उत्तर प्रदेश में औद्योगिकीकरण को बढ़ाने की खातिर सिंगिल विंडो को लागू करने वाली उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार अब बेकार पड़े कानूनों को भी खत्म कर देगी। इससे उद्यमी को बेकार पड़े कई नियमों के कागज एकत्र नहीं करने पड़ेंगे और काम भी आसान होगा।
प्रदेश के अवस्थापना व औद्योगिक विकास आयुक्त, आलोक टंडन ने कहा कि केंद्र सरकार का निर्देश है कि अनुपयोगी अधिनियम, नियम कानून की समीक्षा कर उनको समाप्त किया जाए। नीति आयोग ने इस संबंध में गाइडलाइंस जारी की है। इसी कारण अब उत्तर प्रदेश में इस तरह के अनपुयोगी व अप्रसांगिक एक्ट व नियमावली के संबंध में विभाग समीक्षा कर उसे खत्म करने के संबंध में संस्तुति दे रहे हैं। इस महत्वपूर्ण मामले पर जल्द प्रधानमंत्री कार्यालय भी समीक्षा बैठक करेगा।
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार बरसों पुराने व अनुपयोगी कानून खत्म करने जा रही है। इसकी योजना संविधान दिवस पर बनी है। इस प्रक्रिया में सौ वर्ष पुराने तमाम सरकारी नियम व कायदे हैं। यह सब आज के दौर में बेकार साबित हो रहे हैं। इनसे सर्वाधिक प्रभावित उद्योग विभाग है। प्रदेश सरकार के बेकार नियमों को किनारे करने से कारोबार करने वाले अपने उद्यमी अपना उद्योग जल्द लगा सकेंगे और उन्हेंं नियमों के जंजाल से मुक्ति मिलेगी। इसके साथ ही आम जनता को भी नियम-कानून कम होने से राहत मिलेगी। संबंधित विभाग अपने यहां इस तरह के मामलों की समीक्षा कर खुद ही बता रहें कि फलां कानून को रखा जाए या खत्म किया जाए। या इन्हेंं दूसरे संबंधित अधिनियम में शामिल कर लिया जाए। यह सारी कवायद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के निर्देश पर की जा रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यह काम करने का जिम्मा औद्योगिक विकास विभाग को दिया है।
प्रदेश सरकार इंडियन फारेस्ट यूपी रूल 1964, यूपी कलेक्शन एंड डिस्पोजल आफ ड्रिफ्ट एंड स्टैंडर्ड वुड एण्ड टिंबर रूल्स, यूपी कंट्रोल आफ सप्लाई डिस्ट्रब्यूशन एंड मूवमेंट आफ फ्रूट प्लांटस आर्डर-1975, यूपी फारेस्ट टिंबर एंड ट्रांजिट आन यमुना, टन व पबर नदी रूल्स 1963, यूपी प्रोडयूस कंट्रोल तथा यूपी प्रोविंसेस प्राइवेट फारेस्ट एक्ट को समाप्त करने की तैयारी में है।
इसी तरह यूपी रूल्स रेगुलेटिंग द ट्रांसपोर्ट टिंबर इन कुमाऊं सिविल डिवीजन -1920 कानून को बने सौ साल हो गए। 20 वर्ष पहले तो कुमाऊं क्षेत्र समेत पूरा उत्तराखंड अलग राज्य बन गया। वन विभाग का यह नियम अभी उत्तर प्रदेश में बरकरार है। इतना ही नहीं 82 वर्ष पुराना यूपी रूल्स रेगुलेटिंग ट्रांजिट आफ टिंबर आन द रिवर गंगा एबब गढ़मुक्तेश्वर इन मेरठ डिस्ट्रिक एंड आन इटस ट्रिब्यूटेरिस इन इंडियन टेरिटेरी एबब ऋषिकेश- 1938 का नाम ही इतना लंबा है और उपयोगिता न के बराकर है।
इसके साथ ही खाद्य एवं रसद विभाग में भी कई इसी तरह के एक्ट व नियमावली हैं। कई तो एक जैसे हैं। मसलन, यूपी इशेंसियल कॉमोडिटीज से जुड़े चार नियम हैं। अब इनको एक किया जा सकता है। यूपी शिड्यूल्ड कॉमोडिटीज से जुड़े चार आदेश हैं। इनको भी विलय किया जा सकता है। यूपी कैरोसीन कंट्रोल आर्डर 1962, यूपी सेल्स आफ मोटर स्प्टि , डीजल आयल, एंड अल्कोहल टैक्सेशन एक्ट के तहत होने वाला काम कुछ विभाग दूसरे विभाग के जिम्मे है।
औद्योगिक विकास विभाग ने प्रदेश के कई विभागों से बेकार हो चुके नियमों की सूची मांगी थी। विभागों से पूछा था कि नियम वर्तमान में लागू है या नहीं। क्या इसे खत्म किया जा सकता है या फिर इसका किसी अन्य कानून अधिनियम में विलय किया जा सकता है। एक दर्जन विभागों ने जवाब भेज दिया है। माना जा रहा है कि करीब 50 से ज्यादा कानून खत्म हो जाएंगे।