नागपंचमी पर ब्रह्मवंशज अष्टनागों की पूजा आपको बनाएगी भयमुक्त
इस बार नागपंचमी श्रावण शुक्ल पंचमी यानी शुक्रवार 13 अगस्त को पड़ रही है. मान्यताओं के अनुसार हिन्दू धर्म में पौराणिक काल से ही नागों को देवता के रूप में पूजा गया है, ऐेसे में नाग पंचमी के दिन नाग पूजन का विशेष महत्व है. कहा जाता है कि नाग पंचमी पर नाग पूजन करने वाले को सांप के डसने का भय नहीं होता. इस दिन उन्हें दूध से स्नान करवा कर पूजा के बाद दूध पिलाने से अक्षय-पुण्य मिलता है. इस दिन घर के प्रवेश द्वार पर नाग चित्र भी बनाए जाते हैं, जिससे माना जाता है कि वह घर नाग की कृपा से सुरक्षित रहता है. ज्योतिषियों के अनुसार पंचमी तिथि के स्वामी नाग हैं, इसलिए अष्टनागों की पूजा विशेष फलदायी रहती है. मगर नागों की पूजा के पहले मां मनसा देवी की पूजा जरूरी है.
क्या हैं अष्टनाग
अग्निपुराण में 80 प्रकार के नाग कुल बताए गए हैं. मगर अष्टनाग में विष्णु के सेवक अनन्त, शिव के सेवक वासुकि, पद्म, महापद्म, तक्षक, कुलीर, कर्कोटक और शंख. मगर पुराणों के अनुसार सांप दो प्रकार होते हैं, दिव्य और भौम. दिव्य सर्प वासुकि और तक्षक आदि हैं. इन्हें पृथ्वी का बोझ उठाने वाला और अग्नि समान तेजस्वी माना जाता है. इनके नाराज होने पर फुफकार से पूरी दुनिया खत्म हो सकती है. जमीन पर पैदा होने वाले सांपों की दाढ़ में जहर होता है, यही सांप जीवों को काटते हैं.
माना जाता है कि भारत में इन्हीं आठ सर्पों का कुल विस्तारित हुआ, जिसमें महापद्म, कुलिक, नल, कवर्धा, फणि-नाग, भोगिन, सदाचंद्र, धनधर्मा, भूतनंदि, शिशुनंदि या यशनंदि तनक, तुश्त, ऐरावत, धृतराष्ट्र, अहि, मणिभद्र, अलापत्र, शंख चूड़, कम्बल, अंशतर, धनंजय, कालिया, सौंफू, दौद्धिया, काली, तखतू, धूमल, फाहल, काना, गुलिका, सरकोटा आदि नाग वंश हैं.
नाग पंचमी का मुहूर्त
श्रावण शुक्ल पंचमी को नागव्रत रखा जाता है. अब पंचमी तीन मुहूर्त से कम हो और पहले दिन तीन मुहूर्त से कम रहने वाली चतुर्थी से युक्त हो तो पहले ही दिन व्रत होता है. मान्यता है कि अगर पहले दिन पंचमी तीन मुहूर्त से ज्यादा रहने वाली चतुर्थी से युक्त हो तो दूसरे दिन दो मुहूर्त तक रहने वाली पंचमी में भी व्रत किया जा सकता है.
पूजन विधि
चतुर्थी के दिन सिर्फ एक बार भोजन और पंचमी को उपवास रखकर शाम में भोजन करना चाहिए. पूजा के लिए नाग चित्र या मिट्टी की सर्प मूर्ति लकड़ी की चौकी पर रखकर ही पूजा करें. हल्दी, रोली (लाल सिंदूर), चावल और फूल चढ़कर नाग देवता की पूजा करें. कच्चा दूध, घी, चीनी मिलाकर नाग देवता को अर्पित करना चाहिए. पूजा के बाद नाग की आरती उतारें. पूजा के अंत में नाग पंचमी की कथा सुननी चाहिए.