लखनऊ में दूसरे के डाक्यूमेंट्स पर पीएसी में 15 साल से नौकरी कर रहा था फर्जी सिपाही, ऐसे आया पकड़ में
विभूतिखण्ड पुलिस ने मंगलवार को एक ऐसे जालसाज को गिरफ्तार किया है जो एसटीएफ में तैनात मनीष कुमार के शैक्षिक दस्तावेजों व प्रपत्रों से पीएसी में 15 साल से नौकरी कर रहा था। जबकि उसका असली नाम अमित है। इसका राजफाश तब हुआ जब असली मनीष के पास बैंक से क्रेडिट कार्ड से जुड़ी जानकारी के लिए फोन आया। नौकरी के दौरान उसने करीब 75 लाख रुपये वेतन भी उठाया। पुलिस ने आरोपित को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।
विभूतिखण्ड इंस्पेक्टर चन्द्रशेखर सिंह ने बताया कि बलिया के रेवती निवासी मनीष कुमार सिंह पुत्र निर्मल सिंह यूपी एसटीएफ में हेड कांस्टेबल के पद पर तैनात हैं। इन्होंने 21 मार्च 2021 को गांव धतुरी टोला पोस्ट सोनकी भाट, थाना दोकटी जनपद बलिया निवासी अमित कुमार सिंह उर्फ मनीष कुमार सिंह पुत्र भगवान सिंह के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। इसमें बताया गया कि उनका फर्जी दस्तावेज तैयार कर अमित कुमार सिंह उर्फ मनीष कुमार सिंह पीएसी की 32वीं बटालियन में सिपाही के पद पर 2006 से नौकरी कर रहा था। इसकी जानकारी तब हुई जब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से फोन आया कि आपके क्रेडिट कार्ड का अमाउंट ड्यू है। मनीष ने बताया कि पहली बार तो बैंक द्वारा आए फोन की अनदेखी किया लेकिन जब बैंक से लगातार फोन आने लगे तो बैंक पहुंचा। बैंक से पता चला मेरे ही नाम व पते पर एक अन्य शख्स का बैंक में खाता है और बैंक वाले उसे फोन न करके मुझे कर दिया। इस दौरान मैं बैंक द्वारा भी उस जालसाज के बारे में पता करने की कोशिश की लेकिन पता नहीं चला। इसके बाद साइबर सेल के कुछ साथियों की मदद से यूपी पुलिस की ऑफिशियल वेबसाइट पर मनीष नाम के दूसरे शख्स का नाम सर्च किया तो उसकी पोल खुल गई। मामले की जानकारी विभाग को दी। विभाग ने जांच की जालसाल की पहचान हुई। उप निरीक्षक पवन सिंह ने बताया कि आरोपित मार्च से ही फरार चल रहा था। गिरफ्तारी के लिए पुलिस अलग-अलग जगहों पर कई बार छापेमारी की गई पर हर बार यह बच जाता था। मंगलवार को मुखबिर की सूचना पर आरोपित को लोहिया पुल के पास से गिरफ्तार किया गया और जेल भेज दिया गया।
विभाग की भूमिका संदिग्ध: करीब 15 साल से फर्जी दस्तावेज लगाकर वेतन लेने वाला तो गिरफ्तार हो गया लेकिन 15 सालों से सरकार को चूना लगाने वाले इस शख्स के साथ विभाग की भी भूमिका संदिग्ध नजर आ रही है। विभागीय लोगों की मिलीभगत के बिना 15 सालों तक फर्जी तरीके से वेतन भला कोई कैसे ले सकता है यह गंभीर सवाल उठ रहा है।