किडनी ट्रांसप्लांट को लेकर घबराने की नहीं बल्कि जागरूक होने की है जरूरत, आसान है इलाज
किडनी संबंधित बीमारियां लोगों में तेजी से बढ़ रही हैं, लेकिन उतनी तेजी से बढ़ा है इसका उपचार। आज मेडिकल साइंस के कारण इस बीमारी को थोड़ी सजगता और जागरुकता के साथ ठीक किया जा रहा है। आमतौर पर किडनी संबंधी रोगों के इलाज की शुरुआत में दवाओं व डायलिसिस की मदद लेते हैं। लेकिन इनसे राहत न मिलने पर इलाज के कई अन्य तरीके भी अपनाए जाते हैं। इनमें से आखिरी ऑप्शन होता है किडनी ट्रांसप्लांट। अक्सर ये नाम आते ही लोगों में भय बन जाता है लेकिन इससे घबराने की नहीं, बल्कि हिम्मत और जागरुकता के साथ ट्रांसप्लांट के लिए आगे आने की जरूरत है।
लॉस्ट ऑप्शन
किडनी फेल हो जाने के बाद आखिरी ऑप्शन ही किडनी ट्रांसप्लांट है। पेशेंट के रिश्तेदार (ब्लड रिलेशन) अपनी किडनी डोनट कर जान बचा सकते हैं। सीकेडी रोग वाले मरीजों का समय रहते ट्रांसप्लांट जरूरी है, नहीं तो कुछ बाद में जान का जोखिम बहुत ज्यादा होता है।
अन्य ब्लड ग्रूप की किडनी
सेम ब्लड ग्रूप डोनर न मिलने की सिचुएशन में एबीओ इंकॉम्पेटिबल किडनी ट्रांसप्लांट का प्रोसेस अपनाया जाता है। जिसमें प्लाज्मा में से ब्लड के अंदर की एंटीबॉडीज को घटाते हैं जिससे उसका ब्लड दूसरे ब्लड ग्रूप की किडनी को ट्रांसप्लांट के बाद स्वीकार कर ले।
क्रॉस ट्रांसप्लांट
जब पेशेंट और डोनर का ब्लड ग्रूप मैच नहीं करता तो एक कानूनी प्रक्रिया का इस्तेमाल किया जाता है जिसके बाद रोगी की जान बचाने के लिए क्रॉस ट्रांसप्लांट किया जाता है।
कैडेवर ट्रांसप्लांट
इस प्रोसेस में ब्रेन डेड मरीज की किडनी को जरूरतमंद मरीजों को लगाकर उन्हें बचाने का काम हो रहा है।
हेपेटाइटिस-सी से संक्रमित किडनी भी काम की
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने डोनर न मिलने से लंबे समय से किडनी ट्रांसप्लांट का इंतजार कर रहे मरीजों को नई उम्मीद दी है। जिसमें हेपेटाइटिस-सी से संक्रमित किडनी रोगी के इलाज का तरीका इजात किया है और उनकी किडनी को ट्रांसप्लांट से जरूरतमंद के लिए उपयोगी बनाने का प्रयास किया। 10 हेपेटाइटिस-सी से संक्रमित किडनी रोगी को रिसर्च के दौरान एंटीवायरल दवा दी गई जिससे इंफेक्शन बॉडी में न फैले। ये दवाएं ट्रांसप्लांट के बाद भी 12 हफ्तों तक देते रहें। जिससे थोड़े समय बाद संक्रमण का असर कम होता गया।