अरुणाचल में जदयू के विधायकों को तोड़ भाजपा ने बिहार में दिया विपक्ष को बोलने का मौका
पिछले वर्षो की तरह यह वर्ष भी चला जाएगा। पीछे छोड़ जाएगा कुछ खट्टी और कुछ मीठी यादें। यादें..कोरोना की.. कोरोना काल में अपनों को अपनों का अहसास कराने की.. प्रतिबंधों के साथ हुए चुनाव की.. और भी बहुत सी यादें। इन यादों की पोटली थामे अब बिहार नए वर्ष में नए संकल्पों के साथ दौड़ने के लिए तैयार खड़ा है, लेकिन जाते-जाते अरुणाचल प्रदेश के घटनाक्रम के जरिये राजनीतिक दोस्ती की परिभाषा को भी स्पष्ट कर गया है। क्रिसमस के दिन अरुणाचल प्रदेश में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के सात में से छह विधायकों को तोड़कर भाजपा ने बिहार में विपक्ष को बोलने और सहयोगियों को सोचने का काम दे दिया। अवसर की ताक में बैठा विपक्ष इसे नीतीश को क्रिसमस गिफ्ट बताकर खिल्ली उड़ाने में जुट गया है।
बिहार में इस बार सत्ता के समीकरण में भाजपा का पलड़ा भारी है। मुख्यमंत्री भले ही नीतीश कुमार हों, लेकिन मंत्रियों की संख्या भाजपा की ही ज्यादा रहने वाली है। संख्या को लेकर अभी तक पेंच फंसा है और इसीलिए मंत्रिमंडल विस्तार नहीं हो सका है। इसी बीच क्रिसमस के दिन यह खबर आई कि अरुणाचल प्रदेश में मुख्य विपक्षी दल की भूमिका निभा रहे जदयू के सात में से छह विधायक भाजपा ने तोड़ लिए। अरुणाचल प्रदेश में दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था और साठ के सदन में 41 भाजपा के पास तथा सात जदयू के खाते में थे। वहां पंचायत चुनाव होने हैं, इसलिए राजनीतिक नफा-नुकसान के तहत यह घटनाक्रम हो गया। वैसे तो इसे सामान्य माना जाता, लेकिन यह ऐसे समय में हुआ जब बिहार में 26 तथा 27 को जदयू की राष्ट्रीय कार्यसमिति और राष्ट्रीय कार्यपरिषद की बैठक होने वाली है।
जदयू इसे लेकर खफा है और इसे गलत ठहरा रहा है, जबकि भाजपा अभी तक चुप्पी साधे है। विपक्ष को तो बोलने का मौका चाहिए, सो उसे मिल गया। कोई इसे क्रिसमस गिफ्ट बता रहा है तो कोई ऊंट पहाड़ के नीचे कहकर खिल्ली उड़ा रहा है। भाजपा के दोनों उप मुख्यमंत्री तारकिशोर सिन्हा और रेणु देवी बुधवार तथा गुरुवार को दिल्ली में डेरा डाले थे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह सहित कई वरिष्ठों से उन्होंने मुलाकात की। भले ही यह सामान्य शिष्टाचार हो, लेकिन अरुणाचल प्रदेश के घटनाक्रम के बाद सियासी गलियारे में इस मुलाकात को लेकर बिहार की भावी राजनीति पर भी अटकलें लगने लगी हैं।
वैक्सीन तैयार होने की खुशी के बीच ब्रिटेन में कोरोना का नया स्ट्रेन मिलने से जहां दुनिया भर में एक बार फिर दहशत तारी हो रही है, वहीं बिहार में न पहले ही कोई घबराहट थी और न अभी है। कोरोना काल में ही नई सरकार तक चुन ली गई और वोट प्रतिशत भी बेहतर रहा। धीरे-धीरे पटरी पर लौट रही व्यवस्था के बीच केवल स्कूल और कोचिंग संस्थान ही खुलने बाकी थे। अब चार जनवरी से उन्हें भी खोलने की तैयारी है। इसके लिए हर स्तर पर विचार-विमर्श करके गाइडलाइन जारी कर दी गई है।
गाइडलाइन के अनुसार पहले कक्षा नौ से 12 तक की पढ़ाई शुरू होगी। उपस्थिति 50 फीसद ही रखी जाएगी। अभिभावकों की मंजूरी के बाद ही छात्रों को स्कूल आने की अनुमति होगी। जो नहीं आना चाहेंगे, उनके लिए ऑनलाइन व्यवस्था होगी। इसकी सफलता के बाद निचली कक्षाओं को 18 के बाद खोलने पर विचार किया जाएगा। बंदी के कारण बदहाली ङोल रहे कोंचिंग संस्थानों को भी सुरक्षा के प्रबंधों के साथ खोलने की अनुमति दे दी गई है।
चौथी बार लगातार मुख्यमंत्री बने नीतीश कुमार की सरकार का कामकाज पूरी तरह गति में तो नहीं आया है, लेकिन नए रोडमैप पर सभी विभागों की शुरुआत हो गई है। पूरी गति में इसलिए नहीं, क्योंकि मंत्रिमंडल विस्तार न होने के कारण अभी एक-एक मंत्री के पास चार-चार विभाग हैं। विस्तार के बाद उनमें से कौन हाथ में रहेगा और कौन जाएगा, इससे सभी अनजान हैं। इसलिए जरूरी कामकाज पर ही जोर है। इस बीच चोरी तथा हत्याओं की वारदातें बढने से इस समय नीतीश का फोकस कानून व्यवस्था दुरुस्त करने पर ज्यादा है।
डेढ़ महीने के कार्यकाल में विधि व्यवस्था को लेकर अब तक तीन बार बैठकें हो चुकी हैं और बुधवार को वे पुलिस मुख्यालय जाकर भी तमाम निर्देश देकर आए हैं, जिसका नतीजा है कि अब पुलिस मुख्यालय में बैठे अधिकारी टेलीफोन पर अपने संबंधित जिले का हाल ही नहीं लेंगे, बल्कि वहां जाकर कानून व्यवस्था की समीक्षा भी करेंगे। इसकी शुरुआत गुरुवार से हो गई। शराब तस्करी पर लगाम लगाने के लिए भी प्रदेश की सीमा पर चेकपोस्टों की संख्या दोगुनी करने की तैयारी है।