कैसे किसानों की आय बढ़ाने में मददगार साबित होंगे तीनों कृषि कानून, बता रहे हैं देश के नामी वैज्ञानिक
नए कृषि कानूनों में किए गए प्रविधानों से कृषि विज्ञानी खासा उत्साहित हैं और खेती किसानी के आगे बढ़ने की दिशा में इसे महत्वपूर्ण करार दे रहे हैं। साथ ही कांट्रेक्ट फार्मिग को समय के हिसाब से उठाया गया एक उचित कदम बता रहे हैं। पिछले कुछ समय से कृषि कानून के हो रहे विरोध पर विज्ञानी का साफ कहना है कि यह कानून किसानों के हित में है, यदि कहीं संशोधन की आवश्यकता है तो उसके लिए भी सरकार तैयार है, ऐसे में शुरुआत में ही इसका विरोध अनुचित है। इन सभी मुद्दों पर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के प्रधान विज्ञानी डॉ. जेपीएस डबास से गौतम कुमार मिश्र ने बातचीत की। पेश है बातचीत के मुख्य अंश..
कृषि कानूनों से किसानों को कैसे लाभ मिलेगा?
-मोटे तौर पर कृषि कानूनों के तीन पहलू हैं। पहले में कांट्रैक्ट फॉर्मिंग की बात आती है। कांट्रेक्ट फॉर्मिंग हमारे देश के लिए कोई नई बात नहीं है। इस कानून में केवल इसे संगठित किया गया है। किसानों को यह अधिकार दिया गया है कि वे दिक्कत आने पर अब अधिकारियों के समक्ष दूसरे पक्ष की शिकायत कर सकेंगे। दूसरे पहलू में यह कानून किसानों को अपनी उपज कहीं भी बेचने की आजादी देता है। जहां किसान को अच्छी कीमत मिलेगी, अब वह वहां अपनी उपज बेचने को स्वतंत्र है। पहले यह आजादी नहीं थी। कानून का तीसरा पहलू किसानों को सीधे तौर पर तो नहीं, लेकिन अप्रत्यक्ष तौर पर फायदा पहुंचाएगा। इसके अंतर्गत भंडारण को लेकर सीमा खत्म कर दी गई, लेकिन सवाल यह है कि व्यापारी जिस भी उपज का भंडारण करेगा, वह किसानों से ही तो खरीदेगा। कहीं न कहीं इसका लाभ किसानों को ही मिलेगा। आपको बता दें कि सरकार भी अपनी जरूरतों के लिए किसानों के साथ कांट्रेक्ट खेती का सहारा लेती है। उदाहरण के तौर पर राष्ट्रीय बीज निगम किसानों के साथ विभिन्न फसलों के बीज के लिए कांट्रेक्ट करता है। कांट्रेक्ट में बीज के लिए निर्धारित राशि बाजार भाव से अधिक होती है। देश के कई हिस्सों में किसान राष्ट्रीय बीज निगम के अलावा अपने-अपने राज्यों के बीज निगम के लिए भी उत्साह से कांट्रेक्ट फॉर्मिंग करते हैं। आप पता लगा लीजिए, इनमें से कितने किसानों की जमीनें गई हैं। यह केवल एक मनगढंत बात है। कांट्रेक्ट फॉर्मिंग का दायरा अब केवल सरकारी एजेंसी तक नहीं रहा। अब निजी क्षेत्र की कंपनियां भी इस क्षेत्र में आएंगी और इसका सीधा लाभ किसानों को ही मिलेगा।
प्रदर्शनकारी कह रहे हैं कांट्रेक्ट फार्मिग से किसानों की आजादी चली जाएगी?
-समस्या यह है कि कृषि कानून विरोध करने वालों ने इन कानूनों को ठीक से जाना ही नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि वे कानून के बजाय सरकार का विरोध कर रहे हैं। यदि कानून की तमाम बातों को वे ठीक से पढ़ लें तो यह कानून उन्हें समय की जरूरत व फायदे पहुंचाने वाला लगेगा। कांट्रेक्ट फार्मिग केवल दो पक्षों के बीच हुआ एक करार है। कोई भी करार तभी होगा, जब दोनों पक्ष सहमत होंगे। सहमत तभी होंगे जब दोनों को यह फायदे का सौदा लगेगा। ऐसे में किसानों की आजादी छीनने की बात कहां से आ गई। कांट्रेक्ट फार्मिग में यह भी है कि यदि आपको यह सही नहीं लगे तो आप इससे अलग भी हो सकते हैं।
कांट्रेक्ट फार्मिग का फायदा सबसे अधिक किस क्षेत्र को मिलेगा?
-हमारे देश में खाद्य प्रसंस्करण का बाजार तेजी से फैल रहा है। इस क्षेत्र में निर्यात की भी प्रचुर संभावनाएं हैं। कई निजी कंपनियां इस क्षेत्र में कदम रख रही हैं। ऐसी स्थिति में कांट्रेक्ट फार्मिग न सिर्फ उद्यमी को बल्कि सीधे तौर पर किसानों को भी फायदा पहुंचाएगा। उदाहरण के तौर पर आलू के चिप्स को ही लें। चिप्स निर्माण के लिए जरूरी है कि ऐसा आलू मिले जिसमें शुष्क तत्व की मात्र अधिकतम हो। तभी बेहतर गुणवत्ता वाला चिप्स बनेगा। अब कंपनी जब किसानों से करार करेगी तो वह किसानों को अपनी जरूरत से अवगत कराएगी। उन्हें आवश्यक संसाधन भी देगी और तकनीक भी दी जाएगी जिससे जो उत्पाद हो वह बेहतर चिप्स निर्माण के अनुकूल हो। इससे चिप्स निर्माण के लिए फैक्टियां खोली जाएंगी और वहां रोजगार की संभावनाएं भी बनेंगी। साथ ही आधारभूत संरचना का भी विकास होगा।
प्रधानमंत्री अक्सर लैब टू लैंड की बात कहते हैं। इस दिशा में भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान क्या कर रही है?
-विज्ञानी अपनी मेहनत से नई नई किस्मों का इजाद करते हैं। खेती में बेहतरी के लिए कई तकनीक भी विकसित करते हैं, लेकिन इसका फायदा तभी होगा जब ये तकनीक या उपलब्धियां किसानों तक पहुंचे। पूसा संस्थान इस दिशा में लगातार प्रयास करता है। समय समय पर संस्थान के विज्ञानी किसानों के बीच जाकर उन्हें नई तकनीक से अवगत कराते हैं। पूसा संस्थान ने अपना एक यूट्यूब चैनल शुरू किया है, जिसमें किसानों को नई तकनीकों के साथ-साथ फसलों की गुणवत्ता कैसे बढ़ाएं, इसके बारे में भी जानकारी दी जाती है। पूसा का किसान मेला इस दिशा में मील का पत्थर साबित हो चुका है। इसमें पूरे देश से किसान शामिल होने आते हैं और फसल के साथ-साथ कृषि से जुड़े सभी आयाम जैसे पशुपालन, मत्स्यपालन, मधुमक्खी पालन, समेकित कृषि सहित कई जानकारियां हासिल करते हैं।