01 November, 2024 (Friday)

सुप्रीम कोर्ट में शिंदे की ‘अयोग्यता’ पर सुनवाई 11 को

नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत 16 विधानसभा सदस्यों की अयोग्यता संबंधी विवाद पर अंतिम निर्णय आने तक उन्हें निलंबित करने तथा विधानसभा की कार्यवाही में भाग नहीं लेने का निर्देश देने की मांग संबंधी शिवसेना की याचिका पर 11 जुलाई को सुनवाई करेगा। न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की अवकाशकालीन पीठ ने विशेष उल्लेख के दौरान शिवसेना के मुख्य सचेतक सुनील प्रभु की याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की शीघ्र सुनवाई करने की अर्जी पर कहा, हमने अपनी आंखें बंद नहीं की हैं हम मामले की जांच करेंगे। पीठ ने सुनवाई की तारीख मुकर्रर करते हुए कहा, आइए देखते हैं क्या प्रक्रिया है…अगर यह दोषपूर्ण है तो हम जांच करेंगे। श्री प्रभु ने शिवसेना से बगावत करके मुख्यमंत्री बने शिंदे एवं 15 अन्य विधायकों को उनकी अयोग्यता पर अंतिम निर्णय होने तक निलंबित करने का निर्देश देने की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। न्यायमूर्ति सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष शिवसेना मुख्य सचेतक का पक्ष रखते हुए श्री सिब्बल ने कहा कि चूंकि श्री शिंदे ने जब मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी, तब तक उनके गुट का भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) में विलय नहीं हुआ था।

इस तरह यहां संविधान की दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) का उल्लंघन किया। शीर्ष अदालत के समक्ष दलील देते हुए श्री सिब्बल ने कहा, वह (शिंदे) पार्टी नहीं है… यह लोकतंत्र का नृत्य नहीं है। श्री प्रभु के पक्ष की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने शिंदे गुट की याचिकाओं के साथ पहले से तय तारीख 11 जुलाई को मामले की सुनवाई के लिए सहमति व्यक्त की। श्री शिंदे ने विधानसभा के उपाध्यक्ष की ओर से जारी अयोग्यता की कार्यवाही से संबंधी नोटिस के खिलाफ शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। श्री सिब्बल ने कहा, असली शिवसेना कौन है, इसका फैसला चुनाव आयोग कर सकता है। अगर ऐसा है तो दो तरफ से व्हिप जारी किए जाने के बाद विश्वास मत के दौरान वोटों की गिनती कैसे होगी। शिवसेना नेता श्री प्रभु ने अपनी याचिका में दावा किया गया है कि दोषी विधायकों ने भाजपा के मोहरे की तरह काम किया है। दलील दी गई कि जिन विधायकों ने दलबदल का संवैधानिक पाप किया है, उन्हें विधानसभा के सदस्य के रूप में बने रहने की अनुमति देकर उन्हें एक दिन के लिए भी अपने पाप को कायम रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

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