कोटा संभाग के लहसुन उत्पादक किसानों को नहीं मिल पा रहा लागत मूल्य
राजस्थान के कोटा संभाग की प्रमुख कृषि उपज में शामिल लहसुन के दामों में भारी गिरावट के चलते किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच गई किसानों को लहसुन का लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है।
लहसुन के कुछ किस्मों के दाम आढ़तिये इतने निचले स्तर पर ले आए हैं कि किसानों के लिए तो उनकी फसल की लागत वसूल कर पाना ही मुश्किल हो रहा है और लहसुन की तो सरकारी समर्थन मूल्य पर खरीद की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण किसानों को किसी सरकारी राहत की उम्मीद भी नहीं है।
हाडोती किसान यूनियन के महामंत्री दशरथ कुमार ने ‘यूनीवार्ता’ को बताया कि हाडोती संभाग के लहसुन उत्पादक किसानों के ऐसे ही हालात वर्ष 2016-2017, 2017-18 में बने थे जो लहसुन की व्यापक बुवाई के बाद बंपर उत्पादन होने से भावों के औंधे मुंह गिर जाने से उत्पन्न हुए थे और कर्जे में डूबे कई किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। श्री कुमार ने बताया कि इस बार भी हालत बदतर हैं। किसान लागत तो क्या ढुलाई मूल्य भी नहीं निकाल पा रहे हैं। ऐसे में लहसुन उत्पादक किसानों को कोई आत्मघाती कदम उठाने से रोकने के लिए पहले ही से केन्द्र-राज्य सरकारों को बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत नैफेड के जरिए अभी भी किसानों के स्टॉक में बचे कम से कम 8 से 10 लाख मीट्रिक टन लहसुन को चार हजार से पांच हजार रुपए प्रति किव्ंटल की दर से खरीद की व्यवस्था करनी चाहिए। पूर्व में भी बाजार भाव में भारी गिरावट के चलते बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत नैफेड हाडोती संभाग के किसानों से 3200 रुपए प्रति क्विंटल के भाव पर लहसुन की खरीद कर चुका है।
लहसुन उत्पादक किसानों की हालत यह हो गई है कि कोटा संभाग की कई मंडियों में तो थोक में आढतिये उनकी उपज का दाम पांच रुपए प्रति किलो तक लगा रहे हैं। हालांकि यह दीगर बात है कि अपने मनमाफिक सस्ते दामों पर लहसुन को खरीद कर किसानों के आर्थिक हितों पर आघात करने वाले यह बिचौलिये लहसुन के इन कम दामों का कोई सीधा लाभ आम उपभोक्ता तक नहीं पहुंचने देते। यह छोटी कली का लहसुन बाजार में आम उपभोक्ता को 20 से 25 रुपए प्रति किलो पर ही खरीदना पड़ रहा है।
हाडोती संभाग के ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश से भी बड़ी संख्या में लहसुन उत्पादक किसान अपनी उपज को अच्छे भाव मिलने की उम्मीद में झालावाड़ जिले के भवानीमंडी, अकलेरा, मनोहरथाना, बारां जिले में लहसुन की खरीद-फरोख्त की दृष्टि से सबसे अधिक महत्वपूर्ण माने जाने वाली छबडा़-छीपाबड़ोद की मंडियों में पहुंचते रहे हैं लेकिन मंडी में लहसुन के दाम इतने गिर गए हैं कि मध्यप्रदेश से आने वाले इन किसानों के लिए उत्पादन लागत निकालना तो दूर लहसुन की ढुलाई में खर्च होने वाला किराया-भाड़ा निकालना भी मुश्किल हो रहा है। कोटा जिले में सांगोद क्षेत्र के दल्लीपुरा गांव में बीते दिनों एक ऐसा ही वाकया सामने आया जब ट्रैक्टर में लादकर सांगोद की मंडी में लहसुन बेचने पहुंचे एक किसान को जब डीजल खर्च जितने भी दाम नहीं मिल पाए तो उस हताश किसान ने लहसुन बेचने के बजाय वापस दल्लीपुरा लौटकर गांव के बाहर सड़क पर अपनी सारी उपज को फेंक कर अपनी निराशा की अभिव्यक्ति की।
हाडोती संभाग के कोटा, बूंदी, बारां, झालावाड़ जिले के करीब एक लाख किसान परिवारों ने 1.20 लाख हेक्टेयर से भी अधिक कृषि भूमि पर लहसुन की बुवाई की थी।