दुनियाभर में आतंकवादियों के मनोबल को बढ़ाएगी अफगानिस्तान में तालिबान का खतरनाक उभार
अमेरिका सदैव अपनी लड़ाई दूसरों की भूमि पर लड़ता आया है तथा अपने नवीन सैन्य उपकरणों की क्षमता का परीक्षण विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में करता रहा है। इसका एक तो सीधा फायदा उसके हथियार निर्यात पर पड़ता है और दूसरा उन हथियारों को और भी परिष्कृत करने हेतु नवोन्मेषी विचार मिल जाते हैं। इस तरह से वह अगली पीढ़ी का हथियार बनाता जाता है तथा पुरानी पीढ़ी के हथियारों को बेचता रहता है। इस कार्य के लिए वह समुद्री द्वीपों पर सैन्य अड्डों का निर्माण करता है तथा अपने क्षेत्रीय एवं वैश्विक समीकरणों को साधने का कार्य करता है।
वहीं पाकिस्तान एक धूर्त राष्ट्र है। वह अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु भारत के खिलाफ किसी भी स्तर पर जा सकता है। उसका जन्म जहां द्वि-राष्ट्र के सिद्धांत पर धार्मिक आधार पर हुआ, वहीं अपने शैशवावस्था में ही अंधभारत विरोधवश पश्चिमी प्रभुत्व वाले क्षेत्रीय सैन्य संगठनों का हिस्सा बन गया। इन सभी प्रयासों से वह स्वयं को इस्लामिक राष्ट्रों का नेता मानने लगा। भारत से कई युद्धों में हारने और 1971 में बांग्लादेश के रूप में खंडित होने के बाद उसको यह समझ आ गया कि प्रत्यक्ष युद्ध में वह भारत से मुकाबला नहीं कर सकता। अत: उसने छद्म युद्ध के तौर पर राज्य प्रायोजित आतंकवाद को प्रश्रय देना प्रारंभ कर दिया।