क्रिप्टोकरेंसी में निहित तकनीक को प्रोत्साहन, कंप्यूटर आधारित ब्लाकचेन तकनीक की देन है क्रिप्टो मुद्राएं
पिछले कुछ वर्षो से देश और दुनिया में क्रिप्टो मुद्राओं का चलन बढ़ा है। भारत में केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक दोनों का मत यह रहा कि क्रिप्टो मुद्राएं गैरकानूनी हैं। इसलिए इनके लेनदेन को कानूनी मान्यता नहीं दी गई है। इनके लेनदेन में बैंकों की भूमिका को लेकर भारतीय रिजर्व बैंक ने एक सूचना जारी कर, बैंकों से क्रिप्टो मुद्राओं के लेनदेन से दूरी बनाने और अपने ग्राहकों को इसके बारे में सतर्क करने को कहा तो सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि चूंकि सरकार ने कानूनी रूप से इन्हें गैरकानूनी घोषित नहीं किया है, इसलिए बैंकों को दी जाने वाली यह हिदायत कानूनन ठीक नहीं है।
इसके बाद तो क्रिप्टो एक्सचेंजों द्वारा बड़ी मात्रा में क्रिप्टो मुद्राओं में लेनदेन शुरू हो गया। बड़ी मात्र में आमजन की भागीदारी इसमें बढ़ने लगी। यूं तो इसके बारे में कोई आधिकारिक सूचना नहीं है, लेकिन बाजार के हवाले से अनुमान है कि बड़ी संख्या में लोगों द्वारा इसमें पैसा लगाया गया है। युवा इसके प्रति अधिक आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि इसमें पैसा लगाकर उन्हें जल्दी लाभ मिल सकता है।
ब्लाकचेन टेक्नोलाजी और क्रिप्टो : क्रिप्टो वास्तव में एक नई कंप्यूटर टेक्नोलाजी ‘ब्लाकचेन’ की देन है। कहा जाता है कि सबसे पहले बिटक्वाइन नामक क्रिप्टोकरेंसी खुले स्रोत के साफ्टवेयर के माध्यम से वर्ष 2009 में अस्तित्व में आई। इस टेक्नोलाजी का अभी तक अनुभव यह रहा है कि वर्तमान में चल रही क्रिप्टो मुद्राओं के उद्गम, उसके निर्माता आदि का कुछ पता नहीं चलता। इतना ही नहीं, यदि कोई व्यक्ति गैरकानूनी रूप से क्रिप्टो प्राप्त करता है तो उसका पता नहीं लगाया जा सकता। क्रिप्टोकरेंसी निर्माण (जिसे क्वाइन माइनिंग भी कहा जाता है) के पीछे ‘ब्लाकचेन’ तकनीक है। तकनीक का विकास एक निरंतर प्रक्रिया है। इस संदर्भ में ब्लाकचेन तकनीक के कई अभूतपूर्व फायदे हैं। इस तकनीक का उपयोग कर स्वास्थ्य, शिक्षा, कृषि, भूमि रिकार्ड सहित कई प्रकार की नागरिक सुविधाओं को बेहतर बनाया जा सकता है। लेकिन प्रश्न यह है कि क्या इस तकनीक के नाम पर क्रिप्टो को अपनाना भी जरूरी है?
क्रिप्टो के समर्थकों का कहना है कि ‘ब्लाकचेन’ तकनीक का भरपूर लाभ उठाने और इसके विकास को गति देने के लिए क्रिप्टोकरेंसी की माइनिंग एक प्रोत्साहन के रूप में कार्य करती है। इसलिए उनका तर्क यह है कि क्रिप्टो और ‘ब्लाकचेन’ तकनीक को अलग नहीं किया जा सकता। लेकिन क्रिप्टो के विरोधियों का तर्क यह है कि ‘ब्लाकचेन’ तकनीक का उपयोग करने के लिए क्रिप्टो की कोई जरूरी शर्त नहीं होनी चाहिए। यह सही है कि किसी भी कार्य के लिए प्रोत्साहन जरूरी है, लेकिन वह प्रोत्साहन विधिसंगत और नैतिक रूप से सही होना चाहिए। वर्तमान क्रिप्टो मुद्राएं यह शर्त पूर्ण नहीं करतीं, न तो ये विधिसंगत हैं और इन पर कई नैतिक सवाल भी हैं।
क्यों सही नहीं है क्रिप्टो का चलन : सबसे पहली बात यह है कि क्रिप्टोकरेंसी को करेंसी कहना ही गलत है। करेंसी का अभिप्राय है सरकार की गारंटीशुदा और केंद्रीय बैंक द्वारा जारी मुद्रा। जबकि क्रिप्टोकरेंसी निजी तौर पर जारी आभासी सिक्के हैं, जिनकी कोई वैधानिक मान्यता नहीं है। दूसरी बात कि क्रिप्टो का उपयोग अपराधियों, आतंकवादियों, तस्करों और हवाला में संलग्न व्यक्तियों द्वारा किया जा रहा है। हाल ही में पूरी दुनिया में एक कंप्यूटर वायरस के माध्यम से जब साइबर अपराधियों ने कई कंपनियों का डाटा उड़ा दिया और उसे वापस देने के लिए फिरौती बिटक्वाइन में मांगी गई, तो इसके आपराधिक इस्तेमाल की बात दुनिया के सामने आ गई। तीसरी, चूंकि यह एक ऐसी मूल्यवान आभासी संपत्ति है, जिसके धारक को तो उसका पता होता है, लेकिन किसी भी अन्य को इसका पता तभी चलता है, जब इसमें बैंक के माध्यम से लेनदेन होता है। इसके लेनदेन को घोषित करने के बाद इस पर आयकर लगाया जा सकता है, लेकिन यदि इसकी बिक्री देश में न कर, विदेश में की जाए तो उस पर कर नहीं लगेगा। वास्तव में क्रिप्टो एक वैधानिक संपत्ति नहीं है, इसे किसी कंपनी या व्यक्ति की बैलेंसशीट में नहीं दिखाया जा सकता। यानी क्रिप्टो आयकर, जीएसटी एवं अन्य करों की चोरी का माध्यम बन रही है।
चौथा, बिटक्वाइन तथा अन्य प्रकार की क्रिप्टो मुद्राओं की कीमत में लगातार हो रहे उतार-चढ़ाव और उनकी बढ़ती मांग व बढ़ती कीमत के कारण युवा इस ओर आकर्षित हो रहा है। एक मोटे अनुमान के अनुसार अभी तक छह लाख करोड़ रुपया इसमें लग चुका है। यह एक अंधे कुएं की तरह है, क्योंकि यह रुपया कहां जा रहा है, किसी को मालूम नहीं है। कल्पना करें कि यदि यह रुपया देश के विकास में लगे, हमारे युवा उद्योग-धंधे में लगाएं तो हमारी जीडीपी में खासा फायदा हो सकता है। पिछले कुछ समय से देश में पूंजी निर्माण कम हो रहा है। यदि इस प्रकार की आभासी तथाकथित संपत्ति में रकम लगाने की प्रवृत्ति बढ़ी तो यह निवेश और अधिक कम हो सकता है।
क्या किया जाए : क्रिप्टो के समर्थक भी यह बात मानते हैं कि क्रिप्टो का विनियमन करना जरूरी है। लेकिन उनका यह कहना है कि क्रिप्टो को मान्यता देकर इसका विनिमयन किया जाए। क्रिप्टो विरोधियों में से भी एक वर्ग ऐसा है जो मानता है कि हालांकि इसे प्रतिबंधित करने में ही भलाई है, लेकिन इसको प्रतिबंधित करना व्यावहारिक नहीं होगा, क्योंकि इस प्रतिबंध को प्रभावी नहीं किया जा सकता। लेकिन देश में एक वर्ग ऐसा भी है, जो मानता है कि क्रिप्टो को उसके द्वारा गैरकानूनी गतिविधियों को बढ़ावा देने के चलते प्रतिबंधित करना चाहिए और यह संभव है। वे इस बाबत चीन का उदाहरण देते हैं, जहां सरकार ने क्रिप्टो को प्रतिबंधित कर, सरकारी डिजिटल करेंसी जारी करने की ओर कदम बढ़ाए हैं। लगभग इसी मार्ग पर अमेरिका भी चलने को तैयार है। लेकिन क्रिप्टो प्रतिबंधित करते हुए इसकी अंतर्निहित तकनीक से कोई परहेज नहीं होना चाहिए। ‘ब्लाकचेन’ तकनीक का उपयोग तो किया ही जा सकता है। यदि इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का यह तर्क मान भी लिया जाए कि इस प्रौद्योगिकी के विकास को प्रोत्साहन देना जरूरी होगा, तो भी यह प्रोत्साहन किसी निजी क्रिप्टो के बजाय, सरकार द्वारा जारी डिजिटल मुद्राओं के माध्यम से किया जा सकता है। सरकारी डिजिटल मुद्रा देश में लेनदेन के लिए तो इस्तेमाल की ही जा सकती है, साथ ही इसकी वैश्विक मांग भी हो सकती है। सरकारी डिजिटल मुद्रा की कीमत को समान भी रखा जा सकता है। यानी इससे सट्टेबाजी और जुए से भी मुक्ति मिल सकती है।