24 November, 2024 (Sunday)

चीन पर लगाम लगाने में कारगर साबित होंगे क्‍वाड और आकस, जानें- क्‍या है इस पर एक्‍सपर्ट व्‍यू

क्‍वाड और आकस को लेकर भले ही आस्‍ट्रेलिया, ब्रिटेन और अमेरिका की आलोचना की जा रही हो लेकिन जानकार इन आलोचनाओं को सही नहीं मानते हैं। आपको बता दें कि इन दोनों का ही लक्ष्‍य चीन के बढ़ते कदमों को साधना है। क्‍वाड में भारत भी शामिल है। क्‍वाड को लेकर पहले से ही चीन ने अपनी आंखें चढ़ाई हुई हैं। लेकिन अब आकस के बन जाने के बाद और इनको लेकर होने वाली आलोचनाओं से चीन का मनोबल भी बढ़ गया है। ऑब्‍जरवर रिसर्च फाउंडेशन के प्रोफेसर हर्ष वी पंत का मानना है कि बीते कुछ दिनों से आकस और क्‍वाड को लेकर काफी कुछ बयानबाजी की गई है।

प्रोफेसर पंत का मानना है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा और स्थिरता को लेकर सामने आए आकस और क्‍वाड में समान विचारों वाले लोकतांत्रिक देशों की सहभागिता है। चीन पर लगाम लगाने को लेकर भी इन संगठनों से उम्‍मीदें काफी बढ़ गई हैं। चीन को रोकने के लिए एक से अधिक संगठनों की गुंजाइश भी थी। ये दोनों ही संगठन एक लक्ष्‍य को लेकर एक साथ काम कर सकते हैं। उनके मुताबिक क्‍वाड का जहां पर विस्‍तार किया गया है वहीं आकस पूरी तरह से सामरिक साझेदारी वाला मंच है। आकस के गठन को लेकर जल्‍दबाजी करने और इसको लेकर जो देश अमेरिका की आलोचना कर रहे हैं उन्‍हें इसकी वजह समझने की जरूरत है।

प्रोफेसर पंत का ये भी कहना है कि अफगानिस्‍तान से वापसी के बाद जिस तरह के हालात पैदा हुए हैं उनको देखते हुए अमेरिका को अपने समर्थित देशों का भरोसा चाहिए था। यही वजह है कि आकस का गठन किया गया है। अब अमेरिका आस्‍ट्रेलिया को ऐसी अत्‍याधुनिक न्‍यूक्लियर सबमरीन देगा। अमेरिका इस संगठन को लेकर पूरी तरह से आशांवित है और यही वजह है कि वो आलोचना करने वाले देशों की कोई परवाह भी नहीं कर रहा है। आस्‍ट्रेलिया की बात करें तो आपको बता दें कि चीन से उसकी कई मुद्दों पर तनातनी चल रही है। दक्षिण चीन सागर के मुद्दे पर वो भी अमेरिका के साथ है।

आपको यहां पर ये भी बता दें कि दक्षिण चीन सागर के ऊपर से उड़ते आस्‍ट्रेलिया की वायु सेना के विमानों पर चीन की तरफ से कई बार चेतावनी बतौर हमला तक किया गया है। कोरोना उत्‍पत्ति को लेकर भी आस्‍ट्रेलिया के साथ खड़ा हुआ है। आस्‍ट्रेलिया को मिलने वाली परमाणु पनडुब्बियों की बात से चीन का चिंतित होना स्‍वभाविक है। प्रोफेसर पंत का कहना है कि आकस के गठन से अमेरिका ने ये संदेश देने की भी कोशिश की है कि वो अपने समर्थित देशों को बीच में नहीं छोड़ेगा। वहीं, अमेरिका के समर्थन के बाद आस्‍ट्रेलिया भी चीन पर काफी आक्रामक हो गया है। आस्‍ट्रेलिया का कहना है कि वो चीन की आक्रामकता को बर्दाश्‍त नहीं करेगा।

प्रोफेसर पंत नहीं मानते हैं कि आकस के गठन के बाद क्‍वाड हाशिये पर चला जाएगा। उनका कहना है कि जापान और आस्‍ट्रेलिया के साथ अमेरिका का काफी पुराना सुरक्षा करार है। आकस की सफलता का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि इसके गठन से चीन बुरी तरह से तिलमिलाया हुआ है। चीन पर लगाम लगाने के लिए क्‍वाड और आकस दोनों ही कारगर भूमिका में दिखाई देंगे।

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