24 November, 2024 (Sunday)

Budget 2021-22: विशेषज्ञ की जुबानी जानिए कैसा होना चाहिए वर्ष 2021-22 का बजट, क्‍या करने होंगे उपाय

बजट निर्माण के हमारे दृष्टिकोण में कई खामियां हैं। आर्थिक विकास एक प्रक्रिया है, कोई आयोजन नहीं। नीति निर्धारक जब बजट में नीतियों में सुधार का प्रावधान करते हैं, तब इसे भूल जाते हैं। इस समय जबकि अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है, तब बजट आवंटन पर भी इसका प्रभाव दिखेगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को आवंटन से इतर एक ऐसे मजबूत ढांचे पर भी गौर करना चाहिए जो आवंटन को प्रभाव के रूप में तब्दील कर सके।

होना चाहिए परिवर्तनकारी बजट 

वित्त मंत्री के पास संसाधन हैं और उन्हें एक राय बनाते हुए आर्थिक परिदृश्य को बदलने वाला परिवर्तनकारी बजट प्रस्तुत करना चाहिए। इतिहास गवाह है कि त्वरित और सतत विकास में सामाजिकता ईंधन का काम करती है और सामाजिक-आर्थिक पिरामिड के विकास का शक्तिशाली यंत्र भी है। हमारी जनसांख्यिकी खपत का समर्थन करती है। मांग का सृजन कम हो रहा है, जबकि खपत में तेजी है। उपभोक्ता वर्ग विचलन की स्थिति में हैं। हमारी

राजकोषीय स्थिति ठीक है। इसके बावजूद तेल की कीमतों में कमी नहीं हो रही है।

निवेश को बढ़ावा देना चाहिए

सरकार को निवेश को बढ़ावा देना चाहिए और उपभोक्ताओं की जेब में पैसे डालने चाहिए। वित्त मंत्री को जीएसटी दर में कटौती के साथ-साथ मांग का सृजन करने वाले मध्यम वर्ग के हित में आयकर में कमी लाने की व्यवस्था करनी चाहिए। विकासशील बजट में खपत के विभिन्न चक्रों, मांग, नियोजन के अवसर, निवेश के साथ-साथ संपन्नता लाने की भी क्षमता होती है। विकास उपभोक्ताओं में आशा का संचार करता है, उद्यमियों में विश्वास पैदा करता है और निवेश को बढ़ावा देता है। वित्त मंत्री को आत्मनिर्भर भारत तक की सीमित नहीं रहना चाहिए। बजट दुनिया के लिए निवेश का रास्ता खोलने के साथ-साथ व्यावहारिक और तात्कालिकता पर केंद्रित होना चाहिए। वित्त मंत्री को वास्तविकता को स्वीकार करते हुए उसकी सराहना भी करनी चाहिए। मेक इन इंडिया पहल अवसरों का निमंत्रण तो देती है, साथ ही जटिल चुनौतियों को भी आमंत्रित करती है।

आलोचना की बजाय उन्हें इसके हल पर ध्यान देना होगा

अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाए जाने की आलोचना की बजाय उन्हें इसके हल पर ध्यान देना होगा। विकास में बड़ा योगदान देने वाले और सबसे ज्यादा रोजगार का सृजन करने वाले सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योग यानी एमएसएमई की समस्याओं का समाधान करना चाहिए और औपचारीकरण के बड़े लक्ष्य को हासिल करने के लिए भी काम करना चाहिए। औपचारीकरण से मध्यम कंपनियों का सृजन होता है जो बड़े संगठनों में क्षमता और मूल्यों का समावेश करती हैं।

रोजगार सृजन के प्रावधान करने होंगे

भारत में रोजगार की वृद्धि ने सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की रफ्तार को धीमा कर दिया है और स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। बजट में रोजगार सृजन के प्रावधान होने चाहिए। सरकार ने इस दिशा में काम शुरू कर दिया है, लेकिन रोजगार का सृजन करने वालों को इंस्पेक्शन राज व अन्य से सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। कारोबारी सुगमता में बेहतर करने के चलते भारत निवेश का पसंदीदा देश बना है, लेकिन अभी बहुत किया जाना बाकी है। हमारे कारोबारी सौदों को सिरे चढ़ने में इतना अधिक वक्त क्यों लगता है। हमारे टैक्स कानून इतने बोझिल क्यों हैं। वित्तमंत्री को इन दिक्कतों को दूर करने के साथ ग्रामीण इंफ्रा में संसाधनों का इस्तेमाल सुनिश्चित करना चाहिए। जल्दी पूरी होकर ये योजनाएं आर्थिक गतिविधियों को तेज करने में ऑक्सीजन का काम करेंगी।

संसाधन जुटाने पर ध्यान देना होगा

प्रति इकाई वृद्धि के मामले में सेवा क्षेत्र कम ही रोजगार सृजन कर पाता है। इसकी तुलना में मैन्‍यूफैक्‍चरिंग कहीं अधिक रोजगार सृजन करता है। वित्त मंत्री को चाहिए कि संसाधनों को इस दिशा में स्थानांतरित करें। कृषि क्षेत्र में लगी ज्यादा जनसंख्या को फैक्टरी से जोड़ने की जरूरत है। इससे एक दूसरे को फायदा पहुंचेगा। आज हमारे 10 क्षेत्र दुनिया से प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हैं। वित्त मंत्री को इन क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिए। इनमें सरकार के पर्याप्तसमर्थन से 1.2 करोड़ रोजगार सृजन किए जा सकते हैं। सरकार अभी विनिवेश पर जोर देती है। यह समस्या का समाधान नहीं, उससे दूर भागने जैसा है। वित्त मंत्री को सार्वजनिक उपक्रमों को बेचकर संसाधन जुटाने पर ध्यान देना होगा।

किसानों आंदोलन का समाधान

इन दिनों किसानों का आंदोलन चल रहा है। इस पेशे को आकर्षक और टिकाऊ हम तभी बना सकते हैं जब समाधान किसानों के साथ-साथ उनके माहौल के भी काफी करीब होगा। किसानों की खस्ताहाल उनकी घटती आय के चलते है। आज के कृषि माहौल में किसी किसान को एक न्यूनतम वेतनभोगी जितनी आय कमाने में कम से कम 20 साल लग जाएंगे। प्रधानमंत्री द्वारा घोषित किए गए कृषि सुधारों को लागू करने के लिए उन्हें संसाधन जुटाने चाहिए।

अब पुराना हो चुका सामाजिक सुरक्षा तंत्र

देश का सामाजिक सुरक्षा तंत्र ग्रामीण क्षेत्र और गरीबों को ध्यान में रखकर बनाया गया है जो अब पुराना हो चुका है। असंगठित क्षेत्र,बेरोजगार, महिला और आर्थिक रूप से तंगहाल किसानों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए। अभी देश इस मद में जीडीपी का तीन फीसद खर्च करता है, लेकिन ज्यादा जरूरी राशि नहीं बल्कि कैसे खर्च किया जा रहा है, ये है। कल्याणकारी योजनाओं के मद में एक रुपये देने के लिए अभी सरकार तीन रुपये खर्च कर रही है। वित्त मंत्री को समेकित सुरक्षा जाल बुनने की दरकार है। आर्थिक रूप से भी यह अच्छा रहेगा। लोक-लुभावन बजट पेश करने के चक्कर में उन्हें घुटने नहीं टेकने चाहिए। हर राजनीतिक विचारधारा को यह मानना चाहिए कि भारत इस हालत में नहीं है कि वह रोबिनहुड की तस्वीर पेश कर सके। इन सबके बावजूद जो लोग परेशान हैं, उनकी सुध अनिवार्य रूप से लेने की जरूरत है। बाजार में मांग बढ़ाने के लिए सरकार को कदम उठाने चाहिए।

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