कृषि कानून लागू कराने सुप्रीम कोर्ट पहुंचीं ग्रेटर नोएडा की दो राइस मिलें, सुधारवाद का किया समर्थन
तीन नए कृषि कानूनों के समर्थक भी धीरे-धीरे अपनी मांगें लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचने लगे हैं। पहले आटा मिलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर कृषि कानूनों को लागू करने की मांग की थी, अब उत्तर प्रदेश में ग्रेटर नोएडा की दो राइस मिलों (चावल मिलों) ने भी कानूनों का समर्थन करते हुए कोर्ट से सरकार को तीनों कानून लागू करने का आदेश देने की मांग की है। कहा है कि ये कानून किसान, व्यापारी और आम जनता सभी के लिए लाभकारी हैं, क्योंकि इनसे कृषि उत्पाद काफी सस्ते दाम पर उपलब्ध होंगे। राइस मिलों ने कोर्ट से यह भी अनुरोध किया है कि जब तक मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है तब तक मंडी समितियों को टैक्स वसूलने से रोक दिया जाए। कहा गया है कि याचिकाकर्ता राइस मिलों ने जो धान कानून लागू रहने के दौरान खरीदा था उसे भी वे कहीं ले जा नहीं पा रहे, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट से कानूनों पर रोक लगने के बाद से मंडी समिति उसे नई खरीद मान कर टैक्स वसूल रही हैं।
कृषि कानूनों के समर्थन में यह याचिका फारचून राइस लिमिटेड, फारचून एग्रोमार्ट प्राइवेट लिमिटेड और फारचून राइस लिमिटेड और फारचून एग्रोमार्ट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक अजय भलोथिया ने वकील डीके गर्ग के जरिये दाखिल की है। याचिका में केंद्र के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और कृषि उत्पादन मंडी परिषद उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश स्टेट एग्रीकल्चर मार्के¨टग बोर्ड को पक्षकार बनाया गया है। कहा गया है कि याचिकाकर्ताओं की राइस मिलें ग्रेटर नोएडा में हैं और उनका ओपेन मार्केट ऑक्शन यार्ड बुलंदशहर में है।
याचिका में जीवन और रोजगार के मौलिक अधिकार की दुहाई देते हुए कोर्ट से सरकार को तीनों कृषि कानूनों को लागू करने का निर्देश देने की मांग की गई है। कहा है कि नए कानूनों में उन्हें कुछ अधिकार दिए गए हैं। अगर वे कृषि मंडियों के बजाय कहीं और से कृषि उत्पाद खरीदते हैं तो उन्हें मंडियों को टैक्स या शुल्क नहीं देना होगा।
ऐसे में ये तीनों कानून किसान, व्यापारी तथा आम जनता सभी के लिए लाभकारी हैं, क्योंकि इससे सस्ती कीमत पर कृषि उत्पाद उपलब्ध होगा। अत: आम जनता के हित में यही होगा कि जब तक मामला कोर्ट में लंबित रहता है तब तक के लिए किसानों, व्यापारियों आदि को मंडी शुल्क अदा करने के लिए मजबूर न किया जाए, क्योंकि किसानों से सीधे खरीदने की मनाही है और उन लोगों के पास मंडियों से कृषि उत्पाद खरीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
खरीदे जा चुके कृषि उत्पाद पर भी मंडी समिति नयी खरीद मानकर शुल्क रही वसूल
कहा है कि कोर्ट ने 12 जनवरी को कानूनों के अमल पर अंतरिम रोक लगा दी थी। उसके बाद से राज्य मार्केट कमेटी व मंडी समिति उत्तर प्रदेश ने 1.50 फीसद और मध्य प्रदेश की मंडी समिति ने 0.7 फीसद की दर से उस खरीद पर भी मंडी शुल्क वसूलना शुरू कर दिया है जो कि कोर्ट के 12 जनवरी के रोक आदेश के पहले कानून लागू रहने के दौरान मंडी क्षेत्र से बाहर खरीदा गया था। कहा है कि उस पहले खरीदे जा चुके कृषि उत्पाद पर भी मंडी समिति नयी खरीद मानकर शुल्क वसूल रही हैं। अगर मंडी समितियों को शुल्क न दो तो वे व्यापारियों का धान और चावल जब्त कर लेती हैं। याचिका में कानूनी सवाल उठाते हुए कहा गया है कि जो कृषि उत्पाद कानून लागू रहने के दौरान और कोर्ट के रोक आदेश के पहले खरीदा गया है उस पर एपीएमसी एक्ट के मुताबिक, मंडी शुल्क कैसे वसूला जा सकता है।
किसान और व्यापारी को मंडी में उत्पाद बेचने और खरीदने के लिए मजबूर करने से मार्केट शुल्क व अन्य शुल्क के तौर पर 200 से 400 रुपये प्रति कुंतल अतिरिक्त खर्च आता है जिससे महंगाई बढ़ेगी। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि कानूनों में मंडी के बाहर से खरीदे गए अनाज पर मंडी शुल्क से छूट दी गई है। ऐसे में किसान और व्यापारी दोनों ही मंडी शुल्क अदा करने के इच्छुक नहीं हैं।