Chakka Jam in Meerut: कृषि आंदोलन को संजीवनी देने की एक और कोशिश, मेरठ में छह स्थानों पर होगा चक्का जाम
कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के गाजीपुर बार्डर पर चल रहे कृषि आंदोलन को चार माह से अधिक समय होने जा रहा है। लेकिन किसान संगठन कृषि कानूनों के विरोध में अड़े हुए हैं। किसानों की सरकार से कई बार वार्ता हुई। लेकिन सभी बेनतीजा रही। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले कई किसान संगठनों ने कृषि कानूनों को अपनाने से साफ इंकार कर दिया है। वहीं, किसान आंदोलन में किसानों की संख्या लगातार घटने से किसान संगठनों में बेचैनी का माहौल बन रहा है। किसान संगठनों ने इन चार माह के भीतर आंदोलन, ज्ञापन, चक्का जाम से लेकर ट्रेन रोकी। लेकिन नतीजा नहीं निकला।
गेहूं कटाई और बसंतकालीन गन्ना बुवाई का समय
मार्च माह के अंतिम दिनों में यह समय गेहूं फसल पकने की तैयारी में है। एक तरफ किसान जहां गेहूं कटाई करने की तैयारी में जुटेगा तो वहीं बसंतकालीन गन्ना की बुवाई भी करने का उपयुक्त समय आ गया है। वहीं, खरीफ फसलों में खीरा, करेला, लौकी, बैंगन आदि सब्जियों को लगाने का समय भी शुरू हो गया है। ऐसे में मूल किसान आंदोलन से दूर ही है। किसान संगठनों के पदाधिकारियों ने कृषि कानूनों को काला कानून जबकि केंद्र सरकार ने किसानों के हित में कानून को ऐतिहासिक बताया है।
मेरठ में छह स्थानों पर होगा चक्का जाम
भारतीय किसान यूनियन मेरठ के जिलाध्यक्ष मनोज त्यागी ने बताया कि कृषि कानूनों के वापस होने तक आंदोलन जारी रहेगा। उन्होंने बताया कि शुक्रवार को जिले में छह प्रमुख स्थानों पर भाकियू के पदाधिकारी व कार्यकर्ता चक्का जाम करेंगे। इसमें परतापुर, दौराला, मवाना, जानी, जंगेठी व दबथुवा शामिल हैं। उन्होंने बताया कि चक्का जाम की कमान संभालने के लिए भाकियू के पदाधिकारियों ने कमर कस ली है। जिलाध्यक्ष स्वयं गाजीपुर बार्डर पर तैनात रहेंगे। जबकि जिले के अन्य पदाधिकारियों को मेरठ की कमान सौंपी गई है।