भविष्य में अमेरिका से इजरायल के रिश्ते तय करेगा ईरान का मुद्दा, नेतन्याहू हैं इसको लेकर आशंकित
हाल ही में इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने गोपनीय तरीके से सऊदी अरब की यात्रा की थी। इजरायली मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सऊदी अरब के निओम शहर में उन्होंने सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस सलमान और अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपियो से मुलाकात की थी। इस दौरान इजरायली खुफिया एजेंसी मौसाद के प्रमुख भी उनके साथ थे। इस बैठक पर न ही इजरायल, न सऊदी अरब और न ही अमेरिका की तरफ से कुछ कहा गया है। लेकिन राजनीतिक हलकों में इसको लेकर कयासबाजी का दौर जरूर गर्म है। इस समूचे क्षेत्र और अमेरिका की राजनीति पर नजर रखने वाले जानकार जवाहरलाल नेहरू के प्रोफेसर एके पाशा इस मुलाकात के पीछे ईरान को सबसे बड़ी वजह मानते हैं। उनका मानना है कि ये मुलाकात ईरान से अमेरिका के संभावित रिश्ते और सऊदी अरब की ईरान के प्रति रणनीति और इजरायल की चिंता के मद्देनजर हुई थी।
उन्होंने बताया कि इजरायल को अमेरिका की आने वाली सरकार के प्रति संदेह है। ऐसा इसलिए है कि नेतन्याहू को इस बात की आशंका सता रही है कि बाइडन की सरकार ईरान के साथ दोबारा परमाणु समझौता कर सकती है या फिर पुराने समझौते को ही नए आयाम दे सकती है। ये दोनों ही स्थिति इजरायल के हक में नहीं हैं। नेतन्याहू को इस बात की भी आशंका है कि आने वाली अमेरिकी सरकार में इजरायल को पहले की बराबर समर्थन मिलेगा भी या नहीं। आपको बता दें कि ट्रंप प्रशासन में इजरायल और अमेरिका के बीच काफी नजदीकियां थीं। इजरायल के ज्यादातर मुद्दों पर उसको अमेरिका की सरकार का समर्थन हासिल था। नई सरकार में इसको लेकर उठने वाले सवाल कहीं न कहीं इजरायल और अमेरिका के भावी रिश्तों पर भी प्रश्नचिंह लगा रहे हैं।
प्रोफेसर पाशा का कहना है कि हाल में हुई नेतन्याहू की सऊदी अरब की यात्रा भी ईरान को लेकर भावी रणनीति के तौर पर हुइ थी। उनके मानें तो इजरायल चाहता है कि सऊदी अरब अमेरिका की नई सरकार के दबाव में आकर ईरान के प्रति अपनी नीतियों में किसी भी तरह का कोई बदलाव न करे। बदले में इजरायल ने भी सऊदी अरब को उनके खिलाफ न जाने का भरोसा दिलाया है। ये पूछे जाने पर कि क्या आने वाले दिनों में इजरायल और अमेरिका के बीच संबंधों में किसी तरह की गिरावट आएगी, पाशा का कहना था कि दोनों के संबंधों में ज्यादा गिरावट नहीं आएगी।
उनका कहना है कि अमेरिका को इस बात का अहसास हो चुका है कि यदि ईरान पर ज्यादा दबाव दिया गया तो वो प्रतिकूल कार्रवाई कर सकता है। ऐसे में हालात अमेरिका के लिए सही नहीं होंगे। वहीं समूचे क्षेत्र के लिए भी इस तरह के हालात सही नहीं होंगे और इससे चिंगारी भड़कने के आसार बढ़ जाएंगे। यही वजह है कि ट्रंप प्रशासन ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करने से पीछे हट गया था। अमेरिका जानता है कि हमला करने की सूरत में वो अपने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल कर सकता है। साथ ही यूएई जो कि अमेरिका का एक अच्छा दोस्त है, की कई योजनाओं पर पानी फेर सकता है। किसी तरह से छोटी सी चिंगारी के भड़कने पर भी खाड़ी में काफी तबाही हो सकती है।
अमेरिका को ये भी डर है कि ज्यादा दबाव डालने पर मुमकिन है कि ईरान चीन और रूस के करीब हो जाए। यदि ऐसा हुआ तो भी अमेरिका के लिए ये चिंता की बात होगी, क्योंकि चीन और रूस को ऐसी सूरत में अमेरिका के खिलाफ एक बड़ा प्रतिद्वंदी मिल जाएगा और वो ईरान को हथियार बेचने में भी सफल हो जाएंगे। आपको यहां पर ये भी बताना जरूरी होगा कि अमेरिका से अलगाव के बाद ईरान ने अपनी परमाणु क्षमता में इजाफा किया है।