भविष्य की जरूरतों के हिसाब से हो तैयारियां



भविष्य की जरूरतों के हिसाब से हो तैयारियां
-डॉ. श्रीनाथ सहाय
कोरोना की दूसरी लहर का कहर थम नहीं रहा है। संक्रमित लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। कोरोना की प्रचण्डता के सामने स्वास्थ्य सेवाएं लड़खड़ाती हुई दिख रही हैं। केंद्र और राज्य सरकारें अपने स्तर से कोरोना की रोकथाम में जुटी हैं, लेकिन कोरोना संक्रमितों का आंकड़ा नित नए रिकार्ड छू रहा है। कोविड 19 ने एक पुनरूश्च राज्य के समक्ष बडी चुनौती पेश की है। यह माना जा रहा था कि 2021 कोरोना के सफाए का साल होगा, लेकिन मार्च माह में संक्रमितों की बढती संख्या ने इस अनुमान को मिथ्या साबित कर दिया है। दैनंदिन मरीजों की संख्या में वृद्धि हो रही है। गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों की तादाद तो बढ़ी ही है, मृतकों की संख्या में भी इजाफा डरा रहा ळें
बीते बुधवार को 3 लाख 79 हजार 164 नए कोरोना मरीजों की पुष्टि हुई। अब तक एक दिन में मिले नए मरीजों का यह सबसे बड़ा आंकड़ा है। इससे पहले बीते 27 अप्रैल को सबसे ज्यादा 3.62 लाख मरीजों की पहचान हुई थी। सरकारी अमले का सारा जोर वर्तमान स्थिति को सुधारने में है। लेकिन जिस तरीके के हालात हमारे सामने हैं उसमें यह बात काफी हद तक जरूरी है कि भविष्य की आवश्यकताआंे को ध्यान में रखरक हमें अपनी तैयारियां करनी चाहिए।
इस समय सबसे ज्यादा हाहाकार आक्सीजन को लेकर देशभर में मचा है। ऑक्सीजन के संकट के कारण बीते कुछ दिनों के भीतर ही हजारों जानें चली गईं। बवाल मचा तो आनन-फानन में युद्धस्तर पर प्रयास किये जाने लगे। विदेशों तक से आयात किया जाने लगा। निजी क्षेत्र के उद्योगों द्वारा भी अपने काम की ऑक्सीजन अस्पतालों को दी जा रही है। देश भर में ऑक्सीजन उत्पादन में जबरदस्त वृद्धि हो रही है। सरकारी और निजी अस्पताल अपने यहाँ संयंत्र लगाने में जुटे हुए हैं जिससे भविष्य में ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होने पर चिकित्सा व्यवस्था इस तरह विकलांग होकर न खडी हो जाये। इसके अलावा छोटे घरेलू सिलेंडर भी तेजी से बाजार में आ रहे हैं।
देश में ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है, लेकिन यह खराब तत्वों द्वारा पैदा की गई स्थिति है। काले बाजार के कारोबारी इस जटिल व्यवसाय में शामिल हो गए हैं, क्योंकि अस्पतालों में ऑक्सीजन की भारी मांग है। जब मांग बढ़ जाती है तो वे सक्रिय हो जाते हैं। हमारे देश में भ्रष्टाचार चरम पर है। भ्रष्ट लोगों की आम लोगों के जीवन में कोई दिलचस्पी नहीं है, वे चाहे मरें या जिएं। इन्हें तो केवल अपने पैसे और अपने जीवन से मतलब होता है। ऐसे लोग इस देश को दीमक की तरह चाट रहे हैं। इसलिए सरकार को ऐसे संदिग्ध तत्वों पर पकड़ मजबूत करनी चाहिए क्योंकि वे राष्ट्र के विकास में बाधक बनते हैं। सी जानकारी है उसके मुताबिक जनवरी में विभिन्न राज्यों के सरकारी अस्पतालों में 162 संयंत्र लगाने के लिए उक्त कोष से 200 करोड़ रु. जारी किये गये किन्तु अपवाद स्वरुप छोड़कर या तो संयंत्र का काम शुरू नहीं हुआ अथवा मंथर गति से चल रहा है।
गत दिवस प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी ने देश के 551 जिलों के सरकारी अस्पतालों में आक्सीजन संयंत्र लगाने के लिए फिर राशि स्वीकृत कर दी है जिनके प्रारम्भ हो जाने के बाद से देश के तकरीबन सभी हिस्सों में आक्सीजन की आपूर्ति और परिवहन आसान हो जाएगा। हालाँकि जिस तरह की परिस्थितियां बीते कुछ दिनों में बनीं उसके बाद इसे आग लगने पर कुआ खोदने का प्रयास ही कहा जाएगा लेकिन दूसरी तरफ ये भी सही है कि जो राज्य पूर्व में धन मिलने के बावजूद समय रहते आक्सीजन संयंत्र नहीं बना सके उनसे उसका कारण तो पता किया जाना ही चाहिए ।
कुल मिलाकर रेमिडिसिविर इंजेक्शन के बाद अब ऑक्सीजन देश में सबसे चर्चित विषय बन गया। ये अच्छी बात हुई कि जिस तेजी से समस्या पैदा हुई उतनी ही तेजी से उसका समाधान निकालने की कोशिशें भी सफल हो रही हैं। इस दौरान एक बार फिर ये साबित हो गया कि भारत की मिट्टी में उद्यमशीलता और सृजनशीलता समाई हुई है। लेकिन उसी के साथ जो सबसे बड़ा दुर्गुण ये है कि उसका उपयोग समय पर नहीं हो पाने से अक्सर जरूरत के समय वह काम नहीं आती।
कोविड-19 और भ्रष्टाचार की लहर साथ-साथ दौड़ रही है। एक तरफ जहां लोगों को कोरोना ने परेशान किया है वहीं दूसरी तरफ भ्रष्टाचार ने भी कोई कमी नहीं छोड़ी। चाहे वो मास्क, सैनिटाइजर या अन्य दवाइयों की बिक्रीय बंद शिक्षण संस्थानों द्वारा फीस वसूल करने, भर्तियों के फर्जीवाड़े या ट्रैफिक चालान काटने में ही क्यों न हो। अब तो अस्पतालों में ऑक्सीजन व वैक्सीन की कमी के चलते इन्हें मनचाहे दामों में बेचकर लोगों की मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा है।
आज कोरोना महामारी के संकट में कुछ लोग बेईमानी, लालच और कालाबाजारी जैसी बुरी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दे रहे हैं। कोरोना की दूसरी भयावह लहर इनसानों को बुरी तरह से लील रही है। वहीं कोरोना से बचाव के लिए न केवल दवाओं की कालाबाजारी की जा रही है, मनमाने दाम भी वसूले जा रहे हैं और कोई दवाओं को लूट रहा है। कहीं लापरवाही से ऑक्सीजन आपूर्ति रुक रही है, कहीं अस्पताल वाले पैसे जमा न कराने पर शवों को नहीं दे रहे हैं। ऐसे कृत्य विकट व विषम समय में गिरावट का प्रमाण देते हैं। इस आपदा के दौरान रेमडेसिविर इंजेक्शनों की कालाबाजारी ने यह तो साबित कर दिया है कि आपदा को लाभ के अवसर में बदलने की कोशिश में इन लोगों का कितना नैतिक पतन हो चुका है। इस आपदा के दौरान भी लाभ-हानि के गणित में मानवीय मूल्यों को कलंकित कर रहे हैं। चंद लोगों की वजह से न केवल मानवता शर्मसार हो रही है बल्कि सरकार के सारे प्रयास धूल-धूसरित हो रहे हैं। सरकार को अब सख्त कदम उठाने चाहिए।
भारत में कोरोना वायरस का एक बड़ा उछाल है। यह अब नियंत्रण से बाहर लग रहा है। लॉकडाउन अब संभव नहीं है क्योंकि इससे हमारे देश की अर्थव्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी और यह बेरोजगारी तथा भुखमरी पैदा करेगा। इसलिए हमें कोविड और अर्थव्यवस्था के बीच संतुलन बनाना होगा। इसके लिए दोनों पक्षों, सरकार और जनता द्वारा प्रयास किया जाना चाहिए। टीकाकरण को और ज्यादा तेज गति से किया जाना चाहिए। जनता को इस महामारी को राष्ट्रीय खतरे के रूप में लेना चाहिए। सावधानी की जरूरत है। सवाल ये है कि क्या इससे कोई सबक लिया जाएगा या फिर जैसी कि आशंका जताई जा रही है तीसरे हमले के समय भी हम ऐसे ही असहाय खड़े रहेंगे ? जितनी फुर्ती ऑक्सीजन के उत्पादन और परिवहन में अब जाकर दिखाई जा रही है ऐसी ही आपाताकालीन तैयारियों के लिए जरूरी अन्य क्षेत्रों में भी दिखाई जानी चाहिये क्योंकि ये देश के सुरक्षित भविष्य की सबसे बड़ी जरूरत बन गई है।
-लेखक राज्य मुख्यालय लखनऊ, उत्तर प्रदेश में मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं।
——————————–