22 November, 2024 (Friday)

बंगाल में ‘इंडिया’ गठबंधन टूटने से भाजपा को नुकसान

लोकसभा चुनाव 2024 में अगर किसी राज्य में सबसे ज्यादा कड़ा मुकाबला देखने को मिल रहा है तो वह है पश्चिम बंगाल. यहां लोकसभा की कुल 42 सीटें हैं. बीते 2019 के चुनाव में यहां की 18 सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी. भाजपा लगातार दावा कर रही है कि वह इस बार अपनी सीटों की संख्या बढ़ाकर 25 तक ले जाएगी. लेकिन, जमीनी स्तर पर गणित इतना स्पष्ट नहीं है. रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि राज्य की कई सीटों पर इस बार त्रिकोणीय मुकाबला है. यहां तृणमूल कांग्रेस अकेले चुनाव लड़ रही है. वह इंडिया गठबंधन से अलग हो गई थी. कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन तीसरे मोर्चे के रूप में कई सीटों पर अच्छी टक्कर दे रहा है. ऐसे में तृणमूल विरोधी वोटों के बंटने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

प्रतिष्ठित न्यूज एजेंसी पीटीआई ने कोलकाता से लगी दमदम लोकसभा सीट के बारे में रिपोर्ट छापी है. इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि 2019 के मुकाबले इस बार तृणमूल उम्मीदवार और मौजूदा सांसद सौगत रॉय के लिए राह आसान दिख रही है. इसके पीछे का मूल कारण यहां से माकपा के बड़े नेता सुजान चक्रबर्ती का मैदान में उतरना है. कई चुनावी जानकार यहां तक दावा कर रहे हैं कि अगर तृणमूल विरोधी ठीक-ठाक वोट चक्रबर्ती के पक्ष में आ जाएं तो वह सौगत रॉय से जीत छीन भी सकते हैं. उनका कहना है कि चक्रबर्ती ने इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय बना दिया है.

दमदम में खेल!
इस सीट पर तृणमूल उम्मीदवार रॉय चौथी बार मैदान में हैं. लेकिन उनको पता है कि 2014 की तुलना में 2019 में उनकी स्थिति कमजोर हुई थी. उनकी जीत के मार्जिन में करीब-करीब एक लाख वोटों की कमी आई थी. रॉय का दावा है कि माकपा की ओर से मजबूत उम्मीदवार उतारे जाने से केवल इतना होगा कि इस बार वामपंथी वोटर्स भाजपा की ओर नहीं जाएंगे. इससे अधिक कुछ नहीं होगा.

भाजपा के साथ गए वामपंथी वोटर
कोलकाता में सेंटर फॉर स्टडीज इन सोशल साइंसेस में राजनीतिक विज्ञानी मैदुल इस्लाम बताते हैं कि बीते चुनावों में वामपंथी वोटरों के एक बड़े तबके ने एक मजबूत विकल्प की तलाश में भाजपा को वोट किया. उन्होंने कहा कि इस चुनाव में राज्य की कम से कम 20 सीटों पर कांग्रेस-वाम दल गठबंधन ने चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया है. इसमें से एक सीट दमदम भी है. इस बार भाजपा के लिए यह परीक्षा की घड़ी है कि वह इस चुनाव में 2019 का अपना वोट शेयर बनाकर रखे.

इस्लाम की तरह ही एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक सुभोमय मैत्र ने भी अपनी राय जाहिर की. उन्होंने कहा कि इस बार माकपा का वोट शेयर पिछले बार के 14 फीसदी से बढ़ने की उम्मीद है. यह तृणमूल के लिए राहत और भाजपा के लिए परेशानी की बात है.

उन्होंने कहा कि त्रिकोणीय मुकाबले में विजेता उम्मीदवार का फैसला 30 फीसदी के करीब वोटों से हो जाता है. इस तरह अगर कोई उम्मीदवार पांच में से एक मतदाता को भी अपने पक्ष में करने में कामयाब हो जाए तो उसकी लॉटरी लग सकती है. ऐसे में दमदम सीट से सुजान चक्रबर्ती के बाजी मारने की पूरी संभावना है.

राम मंदिर के नाम पर मिलेगा वोट
हालांकि, इस सीट से भाजपा के उम्मीदवार शीलभद्र दत्ता इस लॉजिक से इत्तेफाक नहीं रखते. शीलभद्र पहले तृणमूल में ही थे. वह इस इलाके की एक सीट से विधायक रह चुके हैं. वह दिसंबर 2020 में भगवा पार्टी में शामिल हो गए थे.

उनका कहना है कि लोग माकपा को क्यों वोट देंगे? उस पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में उपयोगिता खत्म हो गई है. उनका कहना है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के कारण इस सीट पर भाजपा का प्रदर्शन बेहतर होगा. जमीन पर जनता वाम दल को टीएमएस से अलग नहीं देखती. उन्होंने कहा कि जनता देश में एक मजबूत सरकार चाहती है. इस चुनाव में एक ही मुद्दा है मोदी. वोटर या तो मोदी को या फिर उनके खिलाफ वोट करेंगे.

टीएमसी-भाजपा एक
वहीं माकपा उम्मीदवार चक्रबर्ती का कहना है कि अब मतदाताओं को समझ में आने लगा है कि टीएमसी और भाजपा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. ये दोनों जन विरोधी हैं. उन्होंने कहा कि बीते 2021 के विधानसभा चुनाव और स्थानीय निकाय चुनाव में वाम दलों का वोट प्रतिशत बढ़ा था.

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *