पछेती झुलसा रोग से बचाव को आलू के साथ मक्का की सह फसली खेती करें : डॉ. हरीशचंद



कानपुर । चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के मक्का वैज्ञानिक डॉ हरीशचंद सिंह ने बताया कि उत्तर प्रदेश में आलू लगभग सभी जनपदों में उगाया जाता है। आलू की बढ़ती कीमतों एवं मांग को देखते हुए इसके क्षेत्रफल में और इजाफा होने की संभावना है। उन्होंने बताया कि यदि किसान भाई आलू की 2 लाइनें छोड़कर कूंड़ में संकर मक्का की बुवाई करते हैं तो दूने से भी अधिक लाभ प्राप्त होने की संभावना रहती है ।उन्होंने किसान भाइयों को सलाह दी है कि आलू में प्रथम पानी लगाने से पूर्व प्रति कूंड़ छोड़कर तीसरे कूंड़ में मक्का का बीज बो दें। तत्पश्चात प्रथम सिंचाई करना है। उन्होंने यह भी बताया कि सिंचाई के पानी से जो भुरभुरी मिट्टी कुंड में गिरेगी उसी से बीच ढक जाएगा और अंकुरण भी अच्छा होगा। इससे आलू की फसल पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ेगा। डॉ हरीश चंद्र सिंह ने बताया कि प्रदेश में प्रतिवर्ष हजारों हेक्टेयर भूमि पर बोया गया आलू पछेती झुलसा रोग के कारण नष्ट हो जाता है। आलू के साथ यदि मक्का की सह फसली खेती करते हैं तो इस समस्या का समाधान हो जाता है। क्योंकि मक्का का पराग जब आलू की पत्तियों पर गिरता है तो झुलसा के स्पोर इस पर चिपक जाते हैं और पत्तियों पर नहीं पहुंचने के कारण पूरी फसल सुरक्षित हो जाती है यदि किसान चाहे तो हरा भुट्टा तोड़कर बाजार में बेच भी सकते हैं या पक्का भुट्टा तोड़कर दाना निकालकर बेच सकते हैं। डॉ सिंह ने एक अन्य विकल्प के तौर पर बताया कि आलू की खेती को लाभदायक बनाने के लिए आलू के साथ धनिया की सह फसली खेती भी की जा सकती है। जिस की पत्तियों को बाजार में बेचकर आलू खोदने से पहले आमदनी प्राप्त हो सकती है। आलू के साथ खीरा, लौकी कुम्हड़ा का बीज बो देने से फरवरी-मार्च में ही किसानों को खीरा लौकी के फल प्राप्त होने लगते हैं। और अगेती होने के कारण इसका मूल्य भी अच्छा मिलेगा। आलू के साथ इनकी बुवाई करने से खीरा लौकी में चूर्णी फफूंद रोग नहीं लगता है।