नारद मुनि भगवान शिव एवं पार्वती विवाह का रिश्ता लेकर आए थेः सुरभिजी



गोठांव, रायबरेली। गोठांव धर्मार्थ सेवा समिति द्वारा नौ दिवसीय दिव्य श्री राम कथा के तीसरे दिन कथावाचिका मानसचातकी वैदेही (सुरभिजी) ने शिव पार्वती विवाह का प्रसंग का मनोरम वर्णन करते हुए विविध चरणों का भावपूर्ण चित्रण किया। कथा में माता पार्वती के मन में भगवान शंकर के प्रति प्रेमपूर्ण अगाध श्रद्धा,माता पार्वती द्वारा भगवान शंकर की तपस्या से लेकर विवाह संपन्न होने तक के विभिन्न प्रसंगों की प्रस्तुति की गई।सुरभि जी ने कहा कि नारद मुनि भगवान शिव एवं पार्वती विवाह का रिश्ता लेकर आए थे। उनकी माता इसके खिलाफ थी उनका मानना था कि शिव का कोई ठौर ठिकाना नहीं है। ऐसे पति के साथ पार्वती का रिश्ता निभना संभव नही है। उन्होंने इसका विरोध भी किया लेकिन, माता पार्वती का कहना था कि वे भगवान शिव को पति के रुप में स्वीकार कर चुकी है तथा उनके साथ ही जीवन जीना चाहेंगी। इसके बाद दोनों का विवाह हो सका। कथा के दौरान शिव-पार्वती विवाह का झांकी के माध्यम से सजीव प्रस्तुतिकरण भी किया गया। भगवान शंकर की बारात, माता पार्वती के सौंदर्य, प्रेमानुभूति तथा विभिन्न प्रसंगों में आए उतार-चढ़ावों की संगीतमय प्रस्तुति और इस दौरान गाये गये भजन ‘‘हाथ की रेखा देखकर बोला वो नारद जोगी मतवाला, जिससे तेरा ब्याह रचेगा वो होगा डमरु वाला’’
ने उपस्थित श्रद्धालुओं का मन मोह लिया। लोग पूरी कथा के दौरान भाव-विभोर होकर इसका लुत्फ उठाते रहे।
वैदेही जी ने भगवान के समय-समय पर इस वसुंधरा पर अवतरित होने के प्रयोजन के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु ने विभिन्न रूपों में इस भारत भूमि पर अवतार लेकर दुराचारियों पापियों और धरती पर बढ़ते हुए पाप का अंत किया। श्रीराम का अवतार भी रावण रूपी पापी का संहार करने और इस भूमि पर मर्यादा की रक्षा करने के लिए हुआ। इसी लिए राम को मर्यादा पुरुषोत्तम कहा जाता है । जीवन में राम नाम स्मरण का महत्व समझाते हुए कहा कि जीवन रूपी नैया को पार करने के लिए राम नाम ही एक मात्र सहारा है। वर्तमान दौर में ऐसा कोई मनुष्य नहीं है जो दुखी न हो। लेकिन, इसका मतलब यह नहीं होता है कि हम भगवान का स्मरण करना ही छोड़ दें। जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहेंगे। राम नाम का स्मरण करने मात्र से हर एक विषम परिस्थिति को पार किया जा सकता है। लेकिन, अमूमन सुख हो या दुख हम भगवान को भूल जाते हैं। दुखों के लिए उन्हें दोष देना उचित नहीं है। कथा समाप्त होने पर आरती के बाद श्रद्धालुओं में प्रसाद वितरीत किया गया। मुख्य यजमान ने सपरिवार विधिवत पूजन अर्चन कर अनेकों श्रृद्धालुओं के साथ कथा श्रवण का लाभ प्राप्त किया।