दीवाली पर हुई आतिशबाजी की बदौलत 1 वर्ष कम हो गई 68 करोड़ लोगों की जिंदगी!
तमाम अपील और आदेश को दरकिनार कर दिल्ली व उसके आसपास की गगनचुंबी इमारतों में रहने वाले लोगों ने दीपावली पर इतनी आतिशबाजी चलाई कि हवा के जहरीले होने का बीते चार साल का रिकार्ड टूट गया। दीपावली की रात दिल्ली में कई जगह वायु की गुणवत्ता यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स 900 के पार था। बीते एक महीने से एनजीटी से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में जहरीली हवा के जूझने के तरीकों पर सख्ती से आदेश हो रहे थे। आतिशबाजी न करने की अपील वाले अनेक विज्ञापन दिए गए थे। दावे तो यह भी थे कि पटाखे बिकने ही नहीं दिए जा रहे हैं। लेकिन समूचे दिल्ली एनसीआर में कानून की धज्जियां उड़ते सभी ने देख लिया। अकेले गाजियाबाद के जिला अस्पताल में उस रात सांस उखड़ने के 550 रोगी पहुंचे थे।
यह बात मौसम विभाग बता चुका था कि पश्चिमी विक्षोभ के कारण बन रहे कम दबाव के चलते दीवाली के अगले दिन बरसात होगी। हालांकि दिल्ली एनसीआर में थोड़ा ही पानी बरसा और उतनी ही देर में दिल्ली के दमकल विभाग को 57 ऐसे फोन आए जिसमें बताया गया कि आसमान से कुछ तैलीय पदार्थ गिर रहा है जिससे सड़कों पर फिसलन हो रही है। असल में यह वायुमंडल में ऊंचाई तक छाए ऐसे धूल-कण का कीचड़ था जो लोगों की सांस घोंट रहा था। यदि दिल्ली में बरसात ज्यादा होती तो अम्ल-वर्षा के हालात भी बन जाते। सनद रहे अधिकांश पटाखे सल्फरडाइ ऑक्साइड और मैग्निशियम क्लोरेट के रसायनों से बनते हैं, जिनका धुआं इन दिनों दिल्ली के वायुमंडल में टिका हुआ है। इनमें पानी का मिश्रण होते ही सल्फ्यूरिक एसिड बनने की आशंका होती है। यदि ऐसा होता तो हालात बेहद भयावह हो जाते।
स्वास्थ्य के साथ आर्थिक निवेश पर असर की भी आशंका : यह बात अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के लिए चिंता का विषय बन गई है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की हवा बेहद विषाक्त है। इसके कारण राजनयिकों, निवेश आदि के इस इलाके में आने की संभावना कम हो जाती है। एक्यूआइ 500 होने का अर्थ होता है कि यह हवा इंसान के सांस लेने लायक बची नहीं। जो समाज किसान की पराली को हवा गंदा करने के लिए कोस रहा था, उसने दो-तीन घंटे में ही कोरोना से उपजी बेरोजगारी व मंदी, प्रकृति के संरक्षण के दावों, कानून के सम्मान सभी को कुचल कर रख दिया और हवा के जहर को दुनिया के सबसे दूषित शहर के स्तर को भी पार कर दिया।
यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि केवल एक रात में पूरे देश में हवा इतनी जहर हो गई कि 68 करोड़ लोगों की जिंदगी एक साल कम हो गई। दीवाली की आतिशबाजी ने दिल्ली की आबोहवा को इतना जहरीला कर दिया गया कि बाकायदा एक सरकारी सलाह जारी की गई थी कि यदि जरूरी न हो तो घर से नहीं निकलें। फेफड़ों को जहर से भर कर अस्थमा व कैंसर जैसी बीमारी देने वाली हवा में मौजूद छोटे कणों की निर्धारित सीमा 60 से 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जबकि दीपावली के बाद यह सीमा कई जगह एक हजार के पार तक हो गई। ठीक यही हाल न केवल देश के अन्य महानगरों का रहा, बल्कि प्रदेशों की राजधानियों का भी था।
लाइलाज बनती प्रदूषण की समस्या : सनद रहे कि पटाखे जलाने से पैदा हुए करोड़ों टन कचरे का निबटान भी बड़ी समस्या है। यदि इसे जलाया जाए तो भयानक वायु प्रदूषण होता है। यदि इसके कागज वाले हिस्से को रिसाइकिल किया जाए, तो भी जहर घर व प्रकृति में आता है। और यदि इसे डंपिंग में यूं ही पड़ा रहने दिया जाए तो इसके विषैले कण जमीन में जज्ब हो कर भूजल और जमीन को स्थाई व लाइलाज स्तर पर जहरीला कर देते हैं।
यह जान लें कि दीपावली पर परंपराओं के नाम पर कुछ घंटे जलाई गई बारूद कई-कई साल तक आपकी ही जेब में छेद करेगी, जिसमें दवाओं और डॉक्टर पर होने वाला व्यय प्रमुख है। हालांकि इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं कि आतिशबाजी चलाना सनातन धर्म की किसी परंपरा का हिस्सा है, यह तो कुछ दशक पहले विस्तारित हुई एक सामाजिक त्रासदी है। आतिशबाजी पर नियंत्रण के लिए अगले साल दीपावली का इंतजार करने से बेहतर होगा कि अभी से ही आतिशबाजियों में प्रयुक्त सामग्री और आवाज पर नियंत्रण, दीपावली के दौरान हुए अग्निकांड, बीमार लोगों, बेहाल जानवरों की कहानियां प्रचार माध्यमों व पाठ्य पुस्तकों के जरिये आम लोगों तक पहुंचाने का कार्य शुरू किया जाए।
प्रकृति पूजा का संदेश : यह जानना जरूरी है कि दीपावली असल में प्रकृति पूजा का पर्व है। यह समृद्धि के आगमन और पशु धन के सम्मान का प्रतीक है। ऐसे में आतिशबाजी का धार्मिकता से भी कोई खास संबंध नहीं दिखता है। इस बार समाज ने कोरोना संक्रमण, आर्थिक मंदी और पहले से ही हवा के जहर होने के बावजूद दीपावली पर जिस तरह मनमानी दिखाई, उससे स्पष्ट है कि अब आतिशबाजी पर पूर्ण पाबंदी के लिए अगले साल दीपावली का इंतजार करने के बनिस्पत, सभ्य समाज और जागरूक सरकार को अभी से काम शुरू करना होगा। पूरे साल पटाखों के दुष्प्रभाव के सच्चे-किस्से, उससे हैरान-परेशान जानवरों के वीडियो, उससे फैली गंदगी से कुरूप हुई धरती के चित्रों आदि को व्यापक रूप से प्रसारित-प्रचारित करना चाहिए। विद्यालयों और आरडब्लूए में इस पर पूरे साल कार्यक्रम करना चाहिए, ताकि अपने परिवेश की हवा को स्वच्छ रखने का संकल्प महज रस्म-अदायगी न बन जाए, बल्कि उस पर अमल भी हो।