कोरोना काल में तमाम बंदिशों के बीच ‘संवेदना’ में व्यक्त हो रही बाल मन की व्यथा, पढ़ें- क्या चिंता करने वाली बात
कोरोना काल में तमाम बंदिशों और वैकल्पिक उपायों में बच्चों को परेशानी खुलकर सामने आने लगी है। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की हेल्पलाइन ‘संवेदना’ में 15 दिन में देश भर के 5500 बच्चों की व्यथा पहुंच चुकी है। ज्यादातर शिकायतें ऑनलाइन कक्षाओं से हैं। एक बच्चे ने शिकायत की है कि कक्षा में मैडम बोलने ही नहीं देती हैं। हर बार सिर्फ माइक म्यूट करने को कहती हैं। पूरी क्लास में चुप रहने से बोर हो जाता हूं। कभी-कभी तो नींद आने लगती है। वहीं सरकारी स्कूल के एक बच्चे का दर्द है कि मैडम समझाती नहीं हैं। बस टेप रिकॉर्डर की तरह शुरू हो जाती हैं।
टेली काउंसिलिंग सेवा ‘संवेदना’ कोरोना काल में बच्चों में मानसिक तनाव को दूर करने के लिए शुरू की गई। आयोग ने हेल्पलाइन नंबर 1800-1212-830 जारी किया है। 15 दिन पहले शुरू हुई हेल्पलाइन में मध्य प्रदेश से करीब 800 बच्चों ने अपनी समस्या बताई है। इसमें भोपाल के करीब 300 बच्चे शामिल हैं। इसमें भी ज्यादा परेशानी पहली से आठवीं तक के बच्चों की है। वहीं नौवीं से 12वीं के बच्चे कोरोना से संबंधित प्रश्न भी पूछ रहे हैं।
माता—पिता झगड़ते हैं
..कैसे करें ऑनलाइन पढ़ाई हेल्पलाइन में मौजूद काउंसलर बच्चों की समस्याओं का उनके माता-पिता से बातचीत कर निराकरण रहे हैं। इसमें कई बच्चे यह भी शिकायत कर रहे हैं कि उनके माता-पिता आए दिन झगड़ा करते रहते हैं, जिससे ऑनलाइन कक्षा में पढ़ाई नहीं हो पाती है। हेल्पलाइन सोमवार से शनिवार तक सुबह 10 से दोपहर एक बजे तक और दोपहर तीन से रात आठ बजे तक खुली रहती है।
केस—1 भोपाल से एक निजी स्कूल के पांचवीं के छात्र ने बताया कि ऑनलाइन कक्षा में उसे कुछ समझ में नहीं आता है। उसने पूछा कि स्कूल कब खुलेंगे, ताकि वह दोस्तों के साथ पढ़ाई कर सके। केस—2 भोपाल से 11वीं की छात्रा ने पूछा कि उसके पापा कोरोना संक्रमित हो गए थे। इस कारण उसे बाहर निकलने से डर लगता है। वह शंका समाधान के लिए भी स्कूल नहीं जा पा रही है।
इस तरह की समस्याएं भीं – खेलने या साइकिल चलाने के लिए भी माता-पिता बाहर नहीं जाने देते हैं। – फ्लैट में रहने वाले बच्चों को ज्यादा समस्या, वीडियो गेम और टीवी देखने में भी मन नहीं लग रहा। – शिक्षक की डांट को भाई-बहन और माता-पिता भी जान जाते हैं। काउंसलर की सलाह – अभिभावक व शिक्षक बच्चों की भावनाओं को समझें। – शिक्षक हर बच्चे से अलग से भी बातचीत करें, अभिभावक भी बात करें। – बच्चों के व्यवहार में बदलाव को नजरअंदाज न करें।
ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान बच्चों की भावनाओं को समझना होगा। इसके साथ ही शिक्षकों को धैर्य रखना होगा। यह कहना है शिक्षत अरविंद भूषण श्रीवास्तव का। वहीं, मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग के सदस्य, ब्रजेश चौहान का कहना है कि ‘संवेदना’ में ऑनलाइन कक्षा में होने वाली समस्याओं और कोरोना संक्रमण से संबंधित कॉल अधिक आ रहे हैं। उनकी काउंसलिंग की जा रही है।