किसानों के लिए खुला बाजार, सरकार का ऐतिहासिक कदम साबित होगा मील का पत्थर
किसानों को उनकी फसल का वाजिब दाम दिलाने और महंगाई पर नियंत्रण के लिए जरूरी है बिचौलियों को सिस्टम से बाहर करना और उपज के लिए बाजार खोलना। नए कृषि कानूनों के माध्यम से केंद्र सरकार यही करने जा रही है। देश के किसानों को ‘एक देश-एक मंडी’ की सौगात देते हुए मोदी सरकार ने उपज कहीं भी बेचने की आजादी दी है। नए कृषि कानून सरकारी मंडियों को बंद नहीं करते, बल्कि उनका एकाधिकार तोड़ते हैं जो किसानों के हित में है। अभी तक उपज की खरीद एवं बेचने के दाम आढ़तिये तय करते हैं। किसान और खरीदार उनके अलावा कहीं नहीं जा सकते।
नए कानून रास्ता खोलते हैं कि व्यापारी सीधे किसान से माल खरीद लें। इससे बिचौलियों का धंधा पिटेगा तो व्यापारी को भी उपज के ज्यादा दाम चुकाने पड़ेंगे, क्योंकि अन्य प्रतिस्पर्धी भी माल लेने के लिए खड़े होंगे। इसलिए यह व्यापारी बनाम किसान का मसला नहीं है। यह सिर्फ मंडी में जमे चंद आढ़तियों या बिचौलियों के एकाधिकार को खत्म करने का मसला है।कृषि मंडी परिषदों के नियम उत्पादों को विभिन्न स्थानों पर बेचने में बाधक बन रहे थे। इसलिए मंडी परिषद नियमों में सुधार की आवश्यकता लंबे समय से महसूस हो रही थी।
संसद सदस्य हुकुमदेव नारायण यादव की अध्यक्षता में गठित कृषि की स्थायी संसदीय समिति ने तीन साल के अध्ययन के बाद जनवरी 2019 में स्पष्ट अनुशंसा की थी कि किसानों के पारिश्रमिक का उचित मूल्य निर्धारण तब तक नहीं किया जा सकता, जब तक कि उपज की बिक्री के लिए बाजार न बढ़ाए जाएं। आज वक्त की जरूरत है कि किसान उस चक्रव्यूह को तोड़कर बाहर निकलने की कोशिश करें, जिसमें उनको जानबूझकर गरीब रखा जाता रहा है।
हालांकि किसान अब भी अपना उत्पाद मंडी परिषद को बेचने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन अब उन्हें अपना उत्पाद कहीं भी बेचने की आजादी है। जहां उन्हें ज्यादा दाम मिलें। इससे ‘फ्यूचर ट्रेडिंग’ का विकास होगा। इसमें किसानों से बोआई के समय या बोआई से पहले ही उनकी पूरी फसल खरीद ली जाती है।
आज देश के किसान के लिए बाजार खोला जा रहा है तो विरोध किया जा रहा है। जो आढ़तिये आलू, प्याज, टमाटर एवं दूसरे कृषि उत्पाद किसानों से खरीदकर सीधे कंपनियों को बेचते हैं वे ‘पूंजीपतियों के गुलाम’ नहीं हुए, पर अगर अब यही कृषि उत्पाद किसान इन कंपनियों को सीधा बेचेंगे तो वे ‘पूंजीपतियों के गुलाम’ हो जाएंगे। यह कुतर्क नहीं तो और क्या है? 1991 के बाद सारे बाजार का उदारीकरण हो गया, पर कृषि बाजार को 29 साल प्रतीक्षा करनी पड़ी। मोदी सरकार ने इन कृषि सुधार कानूनों के माध्यम से अब सीधे कंपनियों से किसानों का नाता जोड़ दिया है। सरकार का यह ऐतिहासिक कदम किसानों के लिए मील का पत्थर सिद्ध होगा।