अखंड सुहाग का हुआ शुरू पर्व, इस बार 16 की जगह 18 दिन का होगा गणगौर व्रत
गणगौर व्रत का पर्व धुलंडी के साथ शुरू हो गया. इसका समापन 18 दिन बाद अगले महीने 11 अप्रेल को होगा. तिथियों की घटत-बढ़त की वजह से इस बार 16 की जगह 18 दिन होगी पूजा.
इस दौरान कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए और विवाहित महिलाओं की ओर से सुख व सौभाग्य, अखंड सुहाग एवं समृद्धि की कामना के साथ गणगौर का पूजन किया जाता है.
पीहर जाकर होती है गणगौर की पूजा
राजस्थान की महिलाएं चाहे दुनिया के किसी भी कोने में हों, गणगौर के पर्व को पूरी उत्साह के साथ मनाती हैं. विवाहिता एंव कुंवारी सभी आयु वर्ग की महिलाएं गणगौर की पूजा करती है. होली के दूसरे दिन से सोलह दिनों तक लड़कियां प्रतिदिन प्रातः काल ईसर-गणगौर को पूजती हैं. जिस लड़की की शादी हो जाती है वो शादी के प्रथम वर्ष अपने पीहर जाकर गणगौर की पूजा करती है. इसी कारण इसे सुहागपर्व भी कहा जाता है. कहा जाता है कि चैत्र शुक्ला तृतीया को राजा हिमाचल की पुत्री गौरी का विवाह शंकर भगवान के साथ हुआ था. उसी की याद में यह त्योहार मनाया जाता है.
गीतों के जरिए प्रार्थना
गणगौर माता से प्रार्थना भी लोकगीतों के जरिए की जाती है. इन गीतों में स्त्रीमन की हर उमंग हर भाव को जगह मिली है. भावों की मिठास और अपनों की मनुहार लोकगीत पूजा के समय निभाई जाने वाली हर रीत को समेटे होते हैं. पूजन करने वाली समस्त स्त्रियां बड़े चाव से गणगौर के मंगल गीत गाती हैं- भंवर म्हाने पूजण दे गणगौर…. गौर-गौर गोमती ईसर पूजे पार्वती…. खोल ऐ गणगौर माता खोल किवाड़ी … ईशर जी तो पेचो बांधे गौराबाई पेच संवारियो राज ……जो बेहद सुहावने लगते हैं. ईसर-गौर के पूजन के इन दिनों में स्त्रियां उत्सवीय रंग में रंग जाती हैं.
पुरुषों को नहीं दिया जाता है प्रसाद
गणगौर महिलाओं का त्योहार माना जाता है इसलिए गणगौर पर चढ़ाया हुआ प्रसाद पुरुषों को नहीं दिया जाता है. गणगौर के पूजन में प्रावधान है कि जो सिन्दूर माता पार्वती को चढ़ाया जाता है,महिलाएं उसे अपनी मांग में सजाती हैं. शाम को शुभ मुहूर्त में गणगौर को पानी पिलाकर किसी पवित्र सरोवर या कुंड आदि में इनका विसर्जन किया जाता है.