श्रीराम जन्मभूमि परिसर के स्वरूप को लेकर राय देंगे संत, नये सिरे से आत्मीयता स्थापित करने के प्रयास में विहिप
श्रीराम जन्मभूमि पर प्रस्तावित मंदिर का स्वरूप तो तय हो गया है, पर संपूर्ण जन्मभूमि के 70 एकड़ को किस तरह विकसित किया जाएगा, यह तय होना शेष है। इस संबंध में विश्व हिंदू परिषद संतों (विहिप) की राय लेगी। इस मसले पर विहिप ने 10-11 नवंबर को दिल्ली में केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक आहूत की है। बैठक में मंदिर निर्माण की भावी योजनाओं पर विमर्श के साथ श्रीराम जन्मभूमि परिसर के स्वरूप पर जोर होगा। हालांकि इसके लिए श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट तकनीकी तौर पर देश के दिग्गज वास्तुविदों की राय ले रहा है, पर श्रीराम जन्मभूमि परिसर की डिजाइन को अंतिम रूप देने के साथ विहिप की योजना एक तीर से दो शिकार साधने की है।
कोई शक नहीं कि श्रीराम और राममंदिर के मसले पर प्राणपण से अर्पित संतों की राय श्रीराम जन्मभूमि परिसर के स्वरूप को लेकर महत्वपूर्ण होगी, पर विहिप इसी बहाने मंदिर निर्माण की प्रक्रिया से संतों को जोड़ने, उनकी उपेक्षा की शिकायत दूर करने और उनका विश्वास हासिल करने का भी काम करेगी। यूं तो विहिप और संतों की आत्मीयता सर्वविदित रही है, पर जितनी संख्या में लोग मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे हैं, उतने समर्थकों को मंदिर निर्माण की प्रक्रिया से जोड़े रखना चुनौतीपूर्ण रहा है।
चाहे वह मंदिर निर्माण के लिए गठित श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट का सवाल हो या कोरोना के संक्रमण काल में प्रधानमंत्री के हाथों राम मंदिर के भूमिपूजन समारोह में आमंत्रण रहा हो। संतों को समायोजित करना विहिप के लिए टेढ़ी खीर रहा है। 15 सदस्यीय तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट में बमुश्किल पांच धर्माचार्यों को ही समायोजित किया जा सका है, जबकि भूमिपूजन समारोह में पूरे देश से मात्र 150 संतों को ही शामिल होने की इजाजत थी। ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि केंद्रीय मार्गदर्शक मंडल की बैठक विहिप और संतों के चिर-परिचित रिश्ते को नयी धार देगी।
मार्गदर्शक मंडल की बैठक के लिए अकेले रामनगरी से ही शताधिक संत आमंत्रित हैं। चाहे वे जगद्गुरु स्वामी रामदिनेशाचार्य हों, नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास हों या निर्वाणी अनी अखाड़ा के महासचिव गौरीशंकरदास। वे अपने अन्य कार्यक्रम स्थगित कर मार्गदर्शक मंडल की बैठक के लिए कमर कस चुके हैं और अगले पल इस तत्परता का औचित्य प्रतिपादित करते हुए कहते हैं, राम मंदिर निर्माण के प्रति हमारी जिम्मेवारी विहिप अथवा तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट से कम नहीं है और इस काम के लिए हमसे जो भी सहयोग मांगा जायेगा, उसे देकर हम संत स्वयं को धन्य समझेंगे।