23 November, 2024 (Saturday)

वो CJI जिन्होंने इस्तीफा देकर लड़ा चुनाव, क्या जीत पाए थे इलेक्शन?

कलकत्ता हाईकोर्ट के पूर्व जज और पश्चिम बंगाल के तमलुक सीट से बीजेपी उम्मीदवार अभिजीत गंगोपाध्याय पर चुनाव आयोग ने एक्शन लिया है. उन्हें 24 घंटे के लिए चुनाव प्रचार से रोक दिया है. अभिजीत गंगोपाध्याय पर चुनाव प्रचार में विवादित टिप्पणी का आरोप था. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस्तीफा देकर बीजेपी में शामिल होने वाले अभिजीत गंगोपाध्याय जज रहते लगातार सुर्खियों रहते थे. बंगाल में शिक्षक भर्ती केस पर उनके फैसले के बाद ममता बनर्जी सरकार से ठन गई थी.

CJI कोका सुब्बा राव
गंगोपाध्याय पहले जज नहीं जो इस्तीफा देकर चुनाव लड़ रहे हैं. पूर्व CJI कोका सुब्बा राव (Koka Subba Rao) का मामला तो बहुत चर्चित रहा है. सुब्बाराव 30 जून 1966 को अमल कुमार सरकार के रिटायर होने के बाद भारत के मुख्य न्यायाधीश बने. उन्होंने सीजेआई की कुर्सी संभालने के सालभर के भीतर ही इस्तीफा दे दिया. उस वक्त उनके रिटायरमेंट में 3 महीने का समय बचा था.

सुब्बाराव ने CJI बनने के कुछ महीने के भीतर ही ‘गोकलनाथ केस’ में मशहूर फैसला दिया. कहा कि संसद के पास संविधान में दिए गए मूलभूत अधिकारों को छीनने का कोई अधिकार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट का यह जजमेंट एक तरीके से सरकार की हार कही गई.

जाकिर हुसैन से हारे चुनाव
1967 में उसी साल देश में चौथा लोकसभा चुनाव हुआ और कांग्रेस 283 सीटों के साथ सत्ता में लौटी. इसके ठीक 2 महीने बाद सुब्बा राव ने इस्तीफा सौंप दिया. कोका सुब्बाराव उन दिनों संवैधानिक अधिकारों पर खुलेआम बोलते थे. उनकी पहचान एक मुखर जज की थी. इस्तीफे के बाद मीनू मसानी की स्वतंत्र पार्टी ने उन्हें यूनाइटेड अपोजिशन की तरफ से राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का आग्रह किया. राव के मुकाबले कांग्रेस ने जाकिर हुसैन को कैंडिडेट बनाया. चूंकि कांग्रेस में सत्ता में थी तो उसका पलड़ा भारी था. जाकिर हुसैन चुनाव जीत गए और सुब्बा राव को मुंह की खानी पड़ी

हालांकि चुनाव के बाद भी वह अखबारों में तीखे लेख लिखते रहे. 1975 में जब इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी लगाई तो कोका सुब्बा राव उसके मुखर आलोचकों में से एक थे.

जस्टिस बहरूल इस्लाम
एक और मशहूर उदाहरण जस्टिस बहरूल इस्लाम का है, जो सुप्रीम कोर्ट के जज हुआ करते थे. साल 1983 के लोकसभा चुनाव से सिर्फ 6 हफ्ते पहले उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद कांग्रेस के टिकट पर असम के बरपेटा से चुनाव लड़े. बहरूल इस्लाम छात्र जीवन से राजनीति से जुड़े थे. 1948 से लेकर 1956 तक असम के सोशलिस्ट पार्टी का हिस्सा थे. इसके बाद उन्होंने 1956 में कांग्रेस ज्वाइन की और अलग-अलग पदों पर रहे थे. बाद में 1962 और 1968 में दो बार कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा भेजा. बहरूल दिग्गज वकील भी थे

लोकसभा नहीं गए तो कांग्रेस ने राज्यसभा भेजा
1972 में उन्होंने राज्यसभा की सदस्यता छोड़ दी और गुवाहाटी हाई कोर्ट के जज बन गए. वहीं से 1980 में सुप्रीम कोर्ट आए. फरवरी 1983 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया और अगले ही दिन कांग्रेस के टिकट पर नॉमिनेशन फाइल कर दिया. हालांकि उस वक्त असम में हालात बिगड़ गए और बारपेटा सीट पर चुनाव नहीं हो पाया. बाद में 1983 में ही कांग्रेस ने उन्हें तीसरी बार राज्यसभा भेजा था.

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