ब्रिटेन में क्यों नाराज हैं 10 लाख हिंदू, चुनाव लड़ने वाली पार्टियों से क्या की है मांग
ब्रिटेन में चार जुलाई को आम चुनाव होने हैं. इससे पहले ब्रिटेन के हिंदुओं ने भावी सरकार के लिए अपनी मांगों को लेकर मैनिफेस्टो (घोषणापत्र) जारी किया है. यह पहला मौका है जब ब्रिटेन के हिंदुओं ने 32 पेज के डाक्यूमेंट के जरिये अपनी अपेक्षाओं को बताया है. ये उन सभी दलों के राजनेताओं के लिए है जो उनका वोट पाना चाहते हैं. मैनिफेस्टो का मसौदा सामूहिक रूप से ‘हिंदू फॉर डेमोक्रेसी’ द्वारा जारी किया गया है. इन मांगों में हिंदुओं के खिलाफ नफरत रोकना और मंदिरों की सुरक्षा शामिल है.
‘हिंदू फॉर डेमोक्रेसी’ 15 हिंदू संगठनों का एक समूह है, जिसमें बीएपीएस स्वामीनारायण संस्था, चिन्मय मिशन, विश्व हिंदू परिषद (VHP) का यूके चैप्टर, हिंदू काउंसिल यूके, हिंदू फोरम ऑफ ब्रिटेन, हिंदू मंदिर नेटवर्क यूके, नेशनल काउंसिल ऑफ हिंदू टेम्पल्स और इस्कॉन यूके शामिल हैं. अभी तक कंजर्वेटिव पार्टी के चार कैंडीडेट्स बॉब ब्लैकमैन, रॉबर्ट बकलैंड, रहिश सिंह और टेरेसा विलियर्स ने इस मैनिफेस्टो का समर्थन किया है. एक्स (पूर्व में टि्वटर) पर अपनी मांगों को साझा करते हुए समूह ने कहा कि उसने आने वाली सरकार से ‘सात प्रतिज्ञाओं’ की मांग की है.
ब्रिटेन में हिंदुओं की बड़ी आबादी
ब्रिटेन में दस लाख से अधिक हिंदू हैं. 2021 की जनगणना के अनुसार इंग्लैंड और वेल्स में हिंदुओं की संख्या 1,032775 है. यह कुल जनसंख्या का 1.7 प्रतिशत है. हिंदू ब्रिटेन का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है. यह ईसाई और मुस्लिम धर्म के बाद तीसरे स्थान पर आता है. जनगणना के अनुसार के मुताबिक ज्यादातर हिंदू ग्रेटर लंदन और साउथ ईस्ट में रहते हैं. यूनाइटेड किंगडम के तीन अन्य देशों में 50,000 से भी कम हिंदू आबादी है. 19वीं शताब्दी की शुरुआत से ही हिंदू यूनाइटेड किंगडम में बसने लगे थे. यह वो समय था जब भारत ब्रिटिश अंपायर का हिस्सा था.
क्या है ‘हिंदू घोषणा पत्र’ में
ब्रिटेन के हिंदुओं से सामूहिक रूप से लोकतंत्र के लिए ब्रिटिश सरकार से निम्नलिखित सात प्रतिज्ञाओं की मांग की है…
हिंदू विरोधी नफरत को धार्मिक घृणा अपराध के रूप में मान्यता देना और इसमें शामिल लोगों को दंडित करना
हिंदू पूजा स्थलों और मंदिरों की सुरक्षा करना
हिंदू आस्था विद्यालयों की स्थापना करके और पाठ्यक्रम बनाने में समुदाय के ‘विशेषज्ञों’ को शामिल करके ‘निष्पक्ष शिक्षा’ तक पहुंच
राजनीतिक दलों और अन्य सार्वजनिक संस्थानों में हिंदुओं का अधिक प्रतिनिधित्व
हिंदू पुजारियों के वीजा से संबंधित मुद्दों को निपटाना
सामाजिक सेवाओं में हिंदुओं को शामिल करना और ‘बुजुर्गों और विकलांगों की देखभाल का समर्थन करना’ और ‘धार्मिक मार्ग’ का संरक्षण
और क्या है घोषणा पत्र में
घोषणा पत्र’ में सांसदों से कहा गया है कि वे ब्रिटेन के हिंदुओं से संबंधित मुद्दों पर कानून बनाने से पहले हिंदू संगठनों से परामर्श करें. ब्रिटेन की सेवा करने वाले हिंदू सैनिकों के लिए एक स्मारक की वकालत की गई है और मांग की गई है कि अधिक श्मशान बनाए जाएं और मृत्यु के तीन दिनों के भीतर हिंदू दाह संस्कार की अनुमति देने के लिए कोरोनर की प्रक्रिया में तेजी लाई जाए. घोषणापत्र में उम्मीदवारों से यह पहचानने का भी आह्वान किया गया है कि ब्रिटेन के हिंदुओं का भारत से संबंध राजनीतिक के बजाय मुख्य रूप से आध्यात्मिक है और उम्मीदवारों से ‘जीवन के धार्मिक तरीके को समझने’ का आह्वान किया गया है.
यह बदलाव का समय है’
अपनी वेबसाइट पर एक बयान में ‘हिंदू फॉर डेमोक्रेसी’ ने कहा कि भले ही ब्रिटेन में हिंदुओं की संख्या दस लाख से अधिक है और वे महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं, लेकिन कई क्षेत्रों में उनका प्रतिनिधित्व कम है. बयान में आगे कहा गया है कि ब्रिटेन में हिंदुओं को राजनीति की ताकत को समझना होगा और बदलाव की तलाश करनी होगी. बयान के अनुसार, “हमें राजनीति के महत्व को पहचानना होगा, भले ही इसे अक्सर हमारे समुदाय में वर्जित विशय माना जाता है. यह बदलाव का समय है.”
एनएसएस ने की आलोचना
तथाकथित हिंदू घोषणापत्र की घोषणा के बाद, धर्मनिरपेक्षता की वकालत करने वाले एक सदी से भी अधिक पुराने संगठन, नेशनल सेक्युलर सोसाइटी (एनएसएस) ने इसकी आलोचना की और कहा कि आने वाली सरकार को इन मांगों को अस्वीकार कर देना चाहिए. एनएसएस ने कहा कि, अगर हिंदू संगठनों की मांगों को पूरा किया गया, तो जाति और महिला-संबंधी मुद्दों पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के काम को नुकसान पहुंचेगा. एनएसएस ने कहा कि ये मांगें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करेंगी क्योंकि वे हिंदू धर्म की किसी भी आलोचना को दबा देंगी.
एनएसएस के अनुसार “घोषणापत्र में ‘हिंदू विरोधी घृणा’ या ‘हिंदूफोबिया’ को ‘सनातन धर्म (हिंदू धर्म) और हिंदुओं के प्रति विरोधी, विनाशकारी और अपमानजनक दृष्टिकोण और व्यवहार के एक सेट’ के रूप में परिभाषित किया गया है जो पूर्वाग्रह, भय या घृणा के रूप में प्रकट हो सकता है. एनएसएस ने चेतावनी दी कि इससे हिंदू धर्म के बारे में बोलने की आजादी पर रोक लग सकती है क्योंकि यह लोगों को धर्म के बारे में नकारात्मक दृष्टिकोण व्यक्त करने से रोकेगा.