01 November, 2024 (Friday)

कमजोर पड़ा डॉलर! 105 साल में पहली बार आई नौबत, अब यह है दुनिया की नई करेंसी

नई दिल्‍ली. ऐसी खबर तो आपने भी अक्‍सर सुनी होगी कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर या मजबूत हुआ. लेकिन, अब ताजा खबर ये है कि डॉलर खुद कमजोर होता जा रहा है. दुनिया में उसका रसूख कम हो रहा और दुनिया एक नई तरह की करेंसी की तरफ बढ़ रही है. आलम ये है क‍ि अब दुनियाभर की सरकारें डॉलर को छोड़ इस नई करेंसी के पीछे पागल हो रही हैं. आखिर यह नौबत क्‍यों और कैसे आई, इसकी पूरी पड़ताल हम इस खबर में करेंगे.

दरअसल, साल 1914 में पहला विश्‍व युद्ध शुरू होने के बाद से ही दुनिया में डॉलर की अहमियत बढ़ती रही है. युद्ध के समय अमेरिका के मित्र देश आयात के बदले में उसे सोना दिया करते थे. यही वजह रही कि अमेरिका के पास सबसे बड़ा गोल्‍ड रिजर्व तैयार हो गया. युद्ध खत्‍म होने के बाद ज्‍यादातर देशों ने अपनी करेंसी डॉलर के साथ जोड़ दी. इसके बाद गोल्‍ड की वैल्‍यू थोड़ी कम हो गई और डॉलर दुनिया की सबसे मजबूत करेंसी बन गया. सभी देशों ने अपना विदेशी मुद्रा भंडार डॉलर के रूप में बढ़ाना शुरू कर दिया. साल 1999 तक दुनिया के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में डॉलर की हिस्‍सेदारी बढ़कर 71 फीसदी पहुंच गई. हालांकि, यूरोपीय देशों ने अपने लिए समान मुद्रा अपना ली, जिसे यूरो कहा जाता है.

यूरो ने घटा दी अहमियत
यूरोपीय देशों की अपनी करेंसी होने और यूरो में कारोबार करने की वजह से डॉलर की अहमियत कुछ कम हो गई. अंतरराष्‍ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के अनुसार, 1999 में जहां कुल ग्‍लोबल रिजर्व में डॉलर की हिस्‍सेदारी 71 फीसदी थी, वहीं 2010 तक यह गिरकर 62 फीसदी और 2020 तक 58.41 फीसदी रह गई. हालांकि, अन्‍य करेंसी के मुकाबले डॉलर की मजबूती बनी रही. 1964 में जहां डॉलर के मुकाबले रुपया 4.66 के स्‍तर पर था, जो अब 83.4 रुपये पर आ गया है. यूरो की पोजिशन दूसरे नंबर है.

कमजोर पड़ा डॉलर का सिक्‍का
मौजूदा हालात ये है कि डॉलर की अहमियत तेजी से घट रही है. भारत सरकार और रिजर्व बैंक भी अन्‍य देशों के साथ अब रुपये में कारोबार पर जोर दे रहे हैं. अभी तक 20 देशों के साथ इसका करार भी हो चुका है. रूस और यूक्रेन युद्ध के बाद अमेरिका और यूरोप ने रूस पर प्रतिबंध लगा दिए. इस घटना के बाद लोकल करेंसी में कारोबार पर जोर दिया जाने लगा. भारत ने भी करीब 20 अरब डॉलर के बराबर कारोबार रुपये में किया. इतना ही नहीं अमेरिका ने रूस से डॉलर रिजर्व को भी अवैध करार दे दिया. इसके बाद अन्‍य देशों में भी यह डर बैठ गया कि उनके साथ भी ऐसा हो सकता है.

गोल्‍ड बन रहा नया ऑप्‍शन
रूस के साथ हुई इस घटना के बाद अन्‍य देशों ने रणनीति बदल दी. अब उनका जोर लोकल करेंसी में कारोबार करने और गोल्‍ड रिजर्व बढ़ाने पर है. भारत की बात करें तो अप्रैल के पहले सप्‍ताह में कुल विदेशी मुद्रा भंडार में गोल्‍ड की हिस्‍सेदारी 55.8 अरब डॉलर पहुंच गई. रिजर्व बैंक अब ताबड़तोड़ सोना खरीद रहा. आलम ये है कि एक हफ्ते में ही 1.24 अरब डॉलर का गोल्‍ड खरीद डाला. बीते साल के मुकाबले देश का सोने का भंडार 13 टन बढ़ चुका है. गोल्‍ड रिजर्व के मामले में भारत 9वें स्‍थान पर पहुंच गया है.

गोल्‍ड के पीछे दुनिया पागल
वर्ल्‍ड गोल्‍ड काउंसिल की रिपोर्ट बताती है कि साल 2021 में जहां दुनियाभर के देशों ने 450.1 टन सोना खरीदा था, वहीं 2022 में यह करीब तीन गुना बढ़कर 1135.7 टन पहुंच गया और 2023 में 1037 टन सोना खरीदा गया. बीते 2 से 3 साल में सोने की कीमत भी लगातार बढ़ी है. महज 6 साल के भीतर सोने की कीमत 68 फीसदी बढ़ चुकी है.

क्‍यों गोल्‍ड बन रहा नई करेंसी
दुनियाभर के देशों का जोर सोने की तरफ बढ़ रहा है और इसके तीन प्रमुख कारण हैं. पहला सोने की बढ़ती कीमत की वजह से देशों के मुद्रा भंडार की वैल्‍यू भी अपने आप बढ़ जाती है. दूसरा, अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ब्‍याज दरों में कटौती करने जा रहा है. ब्‍याज घटने से लोग फाइनेंशियल एसेट में निवेश करने के बजाए गोल्‍ड खरीदने पर ज्‍यादा जोर देंगे. तीसरी वजह ये है कि दुनिया में कारोबार और लेनदेन में गोल्‍ड का इस्‍तेमाल हो सकता है. जो देश लोकल करेंसी में ट्रेड नहीं करेंगे, उनके साथ गोल्‍ड में बिजनेस हो सकता है. ऐसे में माना जा रहा कि आने वाले समय में गोल्‍ड ही दुनिया की नई कॉमन करेंसी बन जाएगा.

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