22 November, 2024 (Friday)

रकुल प्रीत सिंह से खास बातचीत:बोलीं- कंटेंट के मामले में ऑडियंस का टेस्ट नहीं चेंज हुआ है, बल्कि उनकी अफोर्डेबिलिटी कम हो गई है

बॉलीवुड एक्ट्रेस रकुल प्रीत सिंह की हालिया रिलीज फिल्म ‘डॉक्टर जी’ और ‘थैंक गॉड’ रही, जबकि अपकमिंग फिल्मों में ‘छतरीवाली’ सहित दो और फिल्में आने वाली हैं। हाल ही में रकुल ने दैनिक भास्कर से बातचीत के दौरान अपनी पर्सनल-प्रोफेशनल लाइफ के बारे में बात की। साथ ही उन्होंने बताया कि वो जल्द ही ‘इंडियन 2’ और ‘लेडीज नाइट’ में भी दिखाई देने वाली हैं, लेकिन ये फिल्में कब रिलीज होंगी, इस बारे में उन्हें कुछ नहीं पता। आइए देखते हैं बातचीत के प्रमुख अंश :-

फिल्म रिलीज के समय कैसी खुशी और कैसा एक्साइटमेंट होता है?

खुशी और एक्साइटमेंट तो होती ही है। इसके अलावा नर्वसनेस भी होती है कि लोगों को फिल्म पसंद आएगी, आपका काम पसंद आएगा या नहीं आएगा। आपकी कितनी भी फिल्में रिलीज हो जाएं, पर हर फ्राइडे को वो एक नर्वसनेस तो जरूर होती है। लेकिन रिलीज के बाद मैं न हो जाती हूं। अगर अच्छा हो, तो उससे बहुत खुश मत हो और बुरा हो तो उससे बहुत ज्यादा दुखी भी मत हो। मैं जनरली कोशिश करती हूं कि एक ही खुशी के लेवल पर रहूं ताकि मैं खुश ही रहूं। मैं खुद को लकी मानती हूं कि मैं कम से काम काम तो कर रही हूं। अभी फिल्म न चले, पर मैंने 100% किया न! फिल्म का चलना या न चलना, मेरे हाथ में नहीं है, वो तो ऑडियंस के हाथ में है। एक्टर के हाथ में सिर्फ अपना काम होता है। मैं वही करती हूं। अब ऑडियंस भरोसे और भगवान भरोसे है।
वो क्या बातें लुभाती हैं, जब कोई प्रोजेक्ट सामने आता है?

कभी रोल बहुत एक्साइटेड करता है। हो सकता है कि रोल इतना बड़ा न हो, पर फिल्म की स्टोरी अच्छी लगती है, तब लगता है कि हमें इस फिल्म का हिस्सा बनना है। कई बार होता है कि डायरेक्टर या प्रोडयूसर के साथ काम करना है। कभी कोई एक्टर होता है, जिसके साथ काम करना चाहती हूं। कभी कोई कॉन्सेप्ट होता है, जैसे ‘थैंक गॉड’ है। जब मैंने इसका नरेशन सुना, तब लगा कि इस सोच के साथ मुझे अटैच होना चाहिए। आज के टाइम में हम लोग अपनी जिंदगी में इतना बिजी हो गए हैं कि हम अच्छे इंसान बनना भूल ही गए हैं। अच्छा इंसान क्या होता है, उसकी डेफिनेशन भूल गए हैं। मैंने जब स्क्रिप्ट पढ़ी, तब लगा कि हम सब सही हैं। लेकिन क्या हमें कभी गुस्सा नहीं आता? आता है। क्या हमें कभी जेलसी फील नहीं होगी, शायद होती है। क्या हमें कभी भ्रम नहीं होगा, शायद होता है। यही तो भगवान ने बोला है। भगवान की रियल टीचिंग वही है और हम कहीं न कहीं इसे भूल गए हैं। मुझे उस टाइम जो भी गट फीलिंग आती है, तो मैं उसके साथ जाती हूं।

बतौर एक्टर क्या लगता है कि किस तरह का कंटेंट लोगों को पसंद आएगा?

देखिए, ये हम सब जज करने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या चलेगा और क्या नहीं चलेगा। मैं कहना चाहूंगी कि ऐसा नहीं है कि हिंदी फिल्में नहीं चल रही हैं। मैं गलत भी हो सकती हूं, पर मुझे ये लगता है कि दो साल महामारी का था। हम लकी थे कि हमारे पास घर था, खाने के लिए खाना था। सोचना नहीं पड़ा कि अगले 6 महीने कैसे चलेंगे। लेकिन लोगों के जॉब चली गई, सैलरी आधी हो गई, सेविंग नहीं थी। आधे से ज्यादा दुनिया ने बहुत मुश्किल समय देखा है। अब दुनिया नॉर्मल हो रही है, तब क्या वो हर फ्राइडे आकर फिल्म देख सकते हैं या फिल्म देखने के लिए उनके पास पैसे कम हैं। ऐसे में वो महीने में सिर्फ एक फिल्म को चुनेंगे। अब हर सप्ताह फिल्में रिलीज भी ज्यादा हो रही हैं, क्योंकि 2 साल से नहीं हुईं। ये एक टेस्टिंग टाइम है। ऐसा नहीं है कि क्या नहीं चलेगा। वही फिल्में OTT पर बेहतर परफॉर्म कर रही हैं, तब ऐसा नहीं है कि ऑडियंस का टेस्ट बदला है। अगर फिल्में अच्छी न होतीं, तब वो OTT पर भी नहीं चलतीं, पर वहां तो चल रही हैं।

देखिए, जिस दिन सिनेमा डे था। उस दिन मिडिल क्लास फैमिली ने सेम सिनेमा को 500 गुना ज्यादा देखा। ऐसा नहीं है कि दर्शकों का टेस्ट चेंज हुआ है। लगता है कि लोगों की अफोर्डेबिलिटी कम हो गई है। कोविड कभी भी आ सकता है। अभी खतरा खत्म तो नहीं हुआ है। ऐसे में लोगों को लगता होगा कि पहले अपने सेविंग्स करो। फ्यूचर सिक्योर करो, हम फिल्म तो बाद में भी देख लेंगे। ये टेस्टिंग टाइम है, इसका सही जवाब कुछ नहीं है। हमने भी जो फिल्में की हैं, उसे हमने कोविड से पहले साइन किया था। अभी सब लोग समझ रहे हैं कि थिएटर में क्या चीजें लोगों को एक्साइट करेंगी। थोड़े टाइम बाद जब सारी बैकलॉक फिल्में डिस्प्लेड हो जाएंगी, तब महीने में एक-दो फिल्में आएंगी, फिर सब चलेंगी।
आप काम के साथ-साथ फैशन स्टाइल के लिए भी जानी जाती हैं। कितनी अवेयर रहती हैं?

मुझे लगता है कि मेरे लिए फैशन को लेकर सबसे इंपोर्टेंट कंफर्ट है। मैं वह जूते और कपड़े नहीं पहनती, जिसमें कंफर्टेबल नहीं हूं। मेरे फैशन और स्टाइल का श्रेय मेरी टीम को जाता है। दरअसल, मैं एकदम सिंपल रहना पसंद करती हूं। मुझे बाहर या एयरपोर्ट पर देखेंगे, तब सिंपल जींस और टी-शर्ट में ही रहती हूं। मैं एक नॉर्मल लड़की हूं, जिसका जींस-टी शर्ट, शॉर्ट-टी शर्ट है। मेरा कैजुअल कंफर्ट स्टाइल है। मैं बाहर जाती हूं, तब उस दिन क्या मूड कर रहा है, क्या रिलेटेबल है, उस तरह से कपड़े चूज करती हूं।

इस इंडस्ट्री में अफवाहें आती ही रहती हैं। लाइफ में अफवाहों को कैसे डील करती हैं?

मैं इन सारी चीजों को सुनती नहीं हूं। जब सच मुझे पता है, मेरे आसपास लोगों को पता है, तब किसी चीज से फर्क नहीं पड़ता है। मेरे पेरेंट्स को पता है, मुझे पता है, मेरे फ्रेंड्स को पता है, उसके अलावा कोई कुछ भी सोचे, मुझे क्या। हालांकि कभी-कभी बहुत गुस्सा आता है। लेकिन जैसे हमारी फिल्म कहती है कि गुस्सा करने की जरूरत नहीं है।

फिटनेस को लेकर क्या दिनचर्या होती है?

वो तो मेरे जीवन से जुड़ा एक अभिन्न हिस्सा है। ये उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना लोगों को भोजन करना जरूरी होता है। क्योंकि जिम के बगैर मेरा दिमाग काम नहीं करता है। जैसे मेरी तबीयत ठीक नहीं है, इसलिए 2 दिन जिम नहीं किया, तो मुझे अच्छा नहीं लगता है। वो मेरी लाइफ का बहुत इंपोर्टेंट हिस्सा है, क्योंकि माइंड बॉडी बैलेंस बहुत इंपोर्टेंट है। ऑफकोर्स, मैं सब कुछ खाती हूं, पर जंक फूड नहीं खाती। ज्यादातर मैं घर का ही खाना खाने को कोशिश करती हूं।
जिम में कितना समय देती हैं और उसमें क्या-क्या करती हैं?

मैं रोजाना 1 घंटा जिम जाती हूं। उसमें स्टेंथ ट्रेनिंग हो गई, कभी कार्डियो हो गया तो कभी योग हो गया। मैं इस तरह सब कुछ मिक्स करती रहती हूं।

पहली बार पोस्टर पर दिखने का अनुभव कैसा रहा?

उतना तो याद नहीं है, पर फोटो, पोस्टर देखकर अच्छा लगता है। दरअसल, करियर शुरू किया था, तब इतना मालूम ही नहीं था कि कैसा लगना चाहिए, क्या फील होना चाहिए, ये कैसा लगता है, ऐसा कुछ नहीं था। हां, एक्साइटमेंट थी। मुझे ये याद है कि जब पहली फिल्म ‘यारियां’ आई थी। उस फिल्म के आने से पहले गाने रिलीज हो रहे थे, तब बहुत एक्साइटमेंट हुई थी, क्योंकि पहली बार अपने गाने टीवी पर देख रही थी। उस दौरान बहुत अलग फील हो रहा था।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *